गीत संजीवनी-14

खेलो खुशी से भैया

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खेलो खुशी से भैया, होली में दिल मिला लो।
खुशियों का रंग डालो, पिचकारियाँ चला लो॥

कैसा उछल रहा है, दिल हर्ष से सभी का।
ऐसा मचल रहा है, मौसम ये भीगा भीगा॥
मौसम भी है गुलाबी, होली के गीत गालो॥

फागुन की ये हवायें, रंगो की ये घटायें।
मदहोश कर रही हैं, दुनिया की ये फिजाएं॥
संगीत की धुनों पर, उत्साह फिर लगा लो॥

नाराजगी हटाओ, दल में हमारे आओ।
तुम भी हमारे जैसे हर रंग में नहाओ॥
नकली खुशी से हटकर, असली खुशी मना लो॥

पक्षी भी आज के दिन, फागुन के गीत गाते।
धरती गगन दिशायें, उल्लास में नहाते॥
मन का गुबार फेंको, इन पर भी दृष्टि डालो॥

हमारे साधु- सन्तों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, सन्त तुकाराम, नरसी मेहता ऐसी कृतियाँ कर गये जो हमारे और संसार के साहित्य में सर्वदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेंगी। -- डॉ.राजेन्द्र प्रसाद

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