गीत संजीवनी-14

आओ हिलमिल होली

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आओ हिलमिल होली खेलो रे, भर प्रेम- भाव का रंग।
भर प्रेम- भाव का रंग, भर आत्मभाव का रंग॥

भेदभाव का भूत भगाएँ, ऊँच- नीच को छोड़।
घृणा, द्वेष के दुर्भावों से, लें अपना मुँह मोड़॥
मानव होकर, मानव का मुख, करें नहीं भदरंग॥

स्नेह और ममता के जल में, रंग ममता का घोल।
प्रेमभाव का रंग बरसाएँ, मीठी वाणी बोल॥
कीचड़, गोबर पोत मुखों पर, करें नही हुड़दंग॥

श्रम की चलो गुलाल उड़ाएँ, सबके मुख पर लाली।
नाच उठे खुशियों से, श्रमिकों की टोली मतवाली॥
स्नेह और सहयोग करें सब, सबमें एक तरंग॥

गहरा रंग चढ़े सब पर ही, ऐसा युग निर्माणी।
दोष, दुर्गुणों, दुष्प्रवृत्तियों की, हो खत्म कहानी॥
नवयुग की होली सब खेलें, सद्भावों के संग॥

संगीत सुर का सागर है, संगीत जीवन का रस है।

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