दीप मन के जलाओ
(धुन- ज्ञान गंगा नहाले)
दीप मन के जलाओ मन वाले।
थाल पूजा सजाओ तन वाले।।
तुझे मिला मानव का मन है, देवों को दुर्लभ यह तन है।
कुछ करके दिखा जीवन वाले, दीप मन के जलाओ....।।
दीप बनाने तन की माटी, संयम से वह मन की बाती।
ज्ञान घृत तो पिला चिन्तन वाले,दीप मन के जलाओ....।।
काम, क्रोध की चले न आँधी, लोभ, मोह की छले न चाँदी।
भ्रष्ट पथ से न हो पूजन वाले, दीप मन के जलाओ....।।
तन मन से दीनों की सेवा, भोग लगा भावों की मेवा।
सार्थक तो बना साधक वाले, दीप मन के जलाओ....।।
दीनों को लख छलक उठे मन, सेवा करने ललक उठे मन।
वरदान समझले धनवाले, दीप मन के जलाओ....।।
संग ले जाता कोई नहीं धन, जाता है मरघट में सब जन।
लकड़ी वाले चन्दन वाले, दीप मन के जलाओ....।।