दर्शन बहुत किये गुरु
दर्शन बहुत किये गुरु मुख के, गुरु चरणों की ओर निहारो।
सुनते सुनते कभी न हारे, तो गति से भी तो मत हारो॥
गुरु मुख थका सुनाकर अब तक,हमने सुनने का सुख पाया।
इससे सुन उससे की बाहर, दो कानों का लाभ उठाया॥
दर्शन श्रवण किये गुरु दर्शन, कितना समझे तनिक विचारो॥
बीत चलो बिसारें अब तो, गुरु चरणों का ध्यान करें हम।
जो मंजिल गुरु गति ने नापी, अपने डग उस डगर धरें हम॥
अपने को अपने पथदर्शक के, पथ पर अविलम्ब उतारो॥
महापुरुष जिस पथ पर चलते, वह ही पथ उत्तम होता है।
जितने तर्क कुतर्क उभरते, उतना ही पथ भ्रम होता है॥
चरण पादुकाएँ कहती है, चलने का उत्साह उभारो॥
सत्पथ पर चलने वाले ही, चरण सदा पूजे जाते हैं।
सच्चे अनुयायी चरणों से, दिव्य प्रेरणाएँ पाते हैं॥
गुरु चरणों की कृपा चाहिए तो, उनकी गति को न नकारो॥
हिमगिरी- सा ऊँचा सागर सा गहरा, गुरु पाया हो जिसने।
फिर भी ऊँचा चिन्तन श्रेष्ठ चरित्र, न अपनाया हो जिसने॥
मत ऐसा दुर्भाग्य बुलावो, मत ऐसा सौभाग्य बिसारो॥