तपोभूमि की तप ऊर्जा को
तपोभूमि की तप उर्जा को, आओ वरण करें।
युग- महर्षि की तपस्थली को, आओ नमन करें॥
दुर्वासा के तप की गरिमा, इसके है कण- कण में।
गायत्री मंत्रों की महिमा, गुंजित हैं क्षण- क्षण में॥
वातावरण दिव्य है इसका, चिंतन मनन करें॥
हम अपना व्यक्तित्व तपाएँ, तपोभूमि में आकर।
और साधना सफल बनाएँ, यहाँ सिद्धियाँ पाकर॥
और लोकमंगल में अपनी, आहुति हवन करें॥
यहाँ ज्ञान के स्रोत फूटते, जग पावन करने को।
यहाँ ज्ञान गंगा बहती है, जग का तम हरने को॥
जन- जन तक पहुँचाने इसको, हम व्रत वरण करें॥
कर जीवन साधना गढ़ें, व्यक्तित्व साधकों जैसा।
सप्त क्रान्ति में हाथ बटायें, सृजन सैनिकों जैसा॥
कोई मोर्चा शपथ पूर्वक, आओ चयन करें॥
समयदान दें, अंशदान, सक्रिय हम हो जाएँ।
युग- साहित्य को, जन मानस औ घर- घर तक पहुँचायें॥
युग सृष्टा के संकल्पों हित, दृढ़ संगठन करें॥