तप के बल पर आ जाते हैं
तप के बल पर आ जाते हैं, बड़े- बड़े भूचाल।
सूरज को भी हतप्रभ कर देता, तपसी का भाल॥
जब सूरज तपता है,जलनिधि भी जलधर बन जाता।
सूरज के तपने से हिमनद, का भी हिम गल जाता॥
सोने जैसी तपकर काया भी कुन्दन हो जाती।
दूध तपा तो स्वयं मलाई, है ऊपर को आती॥
तप सम्भव कर देता सब कुछ, तप में बड़ा कमाल॥
आप तपे हैं इतना, तप के ही पर्याय हुए हैं।
अरे तपस्वी! तप ने भी आ तेरे चरण छुए हैं॥
केवल तन मन नहीं तपाये, जीवन, प्राण तपाए।
तेरे तप ने दधीचि से भी, आगे कदम बढ़ाए॥
तप की गाथाएँ बौनी है, इतना हुआ विशाल॥
तेरा तप फिर कैसे, अपना रंग नहीं लाएगा।
अब तेरा संकल्प कौन सा, पूर्ण न हो पाएगा॥
तेरे संकल्पों ने तपसी, हमको शिल्प किया है।
तूने हमको अपने दुर्लभ, तप का अंश दिया है॥
यह कैसे भूलेंगे तूने हमको किया निहाल॥
हम भी निज स्नेह लुटायें, जग की जलन मिटाने।
और मनुजता के घावों को, शीतलता पहुँचाने॥
तेरे हैं इसका परिचय हम देंगे आचरणों से।
जैसे सूरज का परिचय मिलता, उसकी किरणों से॥
देते रहना हमें तपस्वी गरिमा भरी उछाल॥
हम ‘उज्ज्वल भविष्य’ के आने तक चलते जाएँगे।
और हमारे प्राणों के दीपक, जलते जाएँगे॥
नई सदी के अभिनन्दन में, आगे खड़े दिखेंगे।
दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ने, हम सब खड़े दिखेंगे॥
पहनाएँगे महाकाल को, सत्कर्मों की माल॥