टिकेगा कहाँ तक धरा पर
टिकेगा कहाँ तक धरा पर अँधेरा।
नई रोशनी ले सुबह आ रही है॥
क्षितिज पर किरण, जाल बिखरा अभी है,
तिमिर के कुहासे ये जलकर रहेंगे।
मेहनत के पुतले ने आशा के पौधे,
पसीने से सींचे हैं उगकर रहेंगे॥
ये संशय के बादल बिखरने लगे हैं,
श्रम की सलौनी जमीं आ रही है॥
सृजन की कहानी अधूरी रही कब,
जहाँ साधना है नहीं दूर मंजिल।
भले राह काँटों भरी हो चुभन हों,
जहाँ चाह है नहीं राह बोझिल॥
निराशा के स्वर अब नहीं टिक सकेंगे,
उमड़ती लहर जोश की आ रही है॥
बढ़ो आज संकल्प लेकर सृजन का,
युगों से जमे इस पतन को भगाओ।
मिटा दो सभी भेद दुर्भाव जग से,
सभी को उठाओ हृदय से लगाओ॥
समय भ्रान्ति का चुक गया आज समझो,
नयी क्रान्ति दौड़ी चली आ रही है॥