मुक्तक-
गुरु शिष्य का सम्बन्ध शाश्वत, छूटता है कब?
कृपासिन्धु- बिन्दुओं से, रूठता है कब?
बस हमें अनुकूल अपने, बना लो गुरुवर,
आप जिसको गढ़ें, अनगढ़ छूटता है कब॥
तुम्हारी शरण में आये
तुम्हारी शरण में आये, गुरुवर सुधार लेना।
सन्देश आपका दें, हमको वो शक्ति देना॥
जो व्रत यहाँ लिये हैं, संकल्प जो किये हैं।
उनको निबाह लें हम, हमको वो शक्ति देना॥
जो दीप तुमने पाला, जिससे हुआ उजाला।
वह ज्योति सबको बाँटे, हमको वो शक्ति देना॥
रस ज्ञान का बहाया, अमृत हमें पिलाया।
हम तृप्ति दें सभी को, हमको वो शक्ति देना॥
तुमने ही चेतना का, अन्तर में कमल टाँका।
सद्गन्ध सबको बाँटे, हमको वो शक्ति देना॥
आयी विदा की बेला, पर प्राण कब अकेला।
मन में तुम्हें बसा लें, हमको वो शक्ति देना॥
लोक- नृत्यों से हमें उल्लास
मिलता है और यह शिक्षा मिलती है कि
जीवन का आनन्द केवल भौतिक पदार्थों
की उपलब्धियों में ही नहीं है। -पं.जवाहरलाल नेहरू