जिन्हें देखकर जग सहज
जिन्हें देख कर जग सहज मुस्कुराये, दहकती हुई वे मशालें बनें हम।
अँधेरा जिन्हें देखकर थर- थराये, उसी हौसले के उजाले बनें हम॥
मशालें सहज ही दहकती नहीं है,
अनायास लपटें लहकती नहीं है।
उजाला अगर बाँटने की ललक है,
प्रबल ज्वाल मन में जगाते चलें हम॥
जिन्हें देख कर जग सहज मुस्कुराये, दहकती हुई वे मशालें बनें हम॥
लगातार जलने को बेचैन हो मन,
लपट से लिपटने को तत्पर रहें हम।
कहीं मन्द पड़ने न पाये उजाला,
सतत रक्त का स्नेह डाले चलें हम॥
जिन्हें देख कर जग सहज मुस्कुराये, दहकती हुई वे मशालें बनें हम॥
मशालें जलाना अथक साधना है,
ज्वलन ही जहाँ मात्र आराधना है।
अगर ईष्ट है ज्योति जग को दिखाना,
सतत ही ज्वलन धर्म पाले चलें हम॥
जिन्हें देख कर जग सहज मुस्कुराये, दहकती हुई वे मशालें बनें हम॥
मशालें जली हैं न जय बोलने से,
मशालें जली है, हृदय खोलने से।
जलायी गई स्वर्ण लंका कि जिस से,
उसी आग की अब मिसालें बने हम॥
जिन्हें देख कर जग सहज मुस्कुराये, दहकती हुई वे मशालें बनें हम॥