जागो- जागो भारत की नारी
जागो- जागो भारत की नारी, भारत पर है विपदा भारी।
तुमने कब से राम न जाये, कब से गोद न कृष्ण खिलाये।
महावीर गौतम को तुमसे, कब से नहीं देश ने पाये॥
शीश उठा है फिर अनीति का, अब तो इसकी करो तैयारी॥
कब नानक निर्माण करोगी, गुरु गोविन्द सिंह कब दोगी।
शिवा प्रताप छिपाये बैठी, बोलो कब तक और रहेगी॥
दया, विवेकानन्द सुतों की, तुम ही महिमामय महतारी॥
भूल गई अपना ही परिचय, अपनी गरिमा पर ही संशय।
तुमने जो अनुदान दिये हैं, उनकी गाथा तो है अक्षय॥
किसी क्षेत्र में भी तो तुमसे, पड़ा नहीं कोई भी भारी॥
नारी फिर से आगे आओ, वैसे ही परिवार बनाओ।
सामाजिक विकृतियों को फिर,तुम चण्डी बन चटकर जाओ॥
दुर्गा का आवाहन करती, सुर संस्कृति विकृति की मारी॥