जिसकी तरफ निहारा तुमने
जिसकी तरफ निहारा तुमने, वह जीवित मधुमास बन गया।
जिस पर कर दी कृपादृष्टि वह, पूरब का आकाश बन गया॥
तुम थे स्वयं सिन्धु करुणा के, सब जल धाराओं के आश्रय।
पास तुम्हारे आ जायें बस, मानव हो जाता था निर्भय॥
तुम्हें समर्पित हर जीवन, लहरों का चिर उल्लास बन गया॥
जिसको समझा पात्र उसे ही, लोकहितों की दीक्षा दी है।
जिसे बनाया कंचन उसे सौख्य कम, अधिक तितीक्षा दी है॥
जिसने ऐसा ताप पी लिया, वही तुम्हारा खास बन गया॥
और चलाया जिसको अपने, साथ उँगलियाँ पकड़ पकड़ कर।
जिसके प्राणों में भर दिये, साधनायुक्त तपे अपने स्वर॥
उसका क्रिया- कलाप तुम्हारे, संग शाश्वत इतिहास बन गया॥