जब कि हम भटके हुए थे
जब कि हम भटके हुए थे, वह ज़माना याद है।
आपका गुरुदेव! तब, सद्पथ दिखाना याद है॥
देख तक पाते न थे हम, जबकि अपने आपको।
थे समझ बैठे सुखद, संसार के सन्ताप को॥
तब हृदय में ज्ञान का, दीप जलाना याद है॥
पाप जीवन के हमारी, शान्ति को हरते रहे।
आदतें बिगड़ी हुई थीं, गलतियाँ करते रहे॥
गलतियाँ कर माफ, सीने से लगाना याद है॥
प्यार से समझा बुझा, सद्पथ दिखाया आपने।
और निज कर्तव्य पर, चलना सिखाया आपने॥
साथ चलकर लड़खड़ातों, को चलाना याद है॥
धर्म संस्कृति के लिए, शुभ भावनाऐं दी हमें।
दीन- दुखियों के लिए, संवेदनाएँ दी हमें॥
प्राण में जन वेदना का, छलछलाना याद है॥
दिख रही है इस निराशा, बीच आशा की किरण।
आप ही गुरुदेव! मेटेंगे- तिमिर का आवरण॥
दीप से दीपक जला, वादा निभाना याद है॥
मुक्तक- मम् वन्दना सद्गुरु चरण, परम् मृदुल सुकुमार।
जीवों के उद्धार को, धरा मनुज अवतार॥