छोड़ दो छोड़ दो वासना
छोड़ दो छोड़ दो वासना छोड़ दो।
दोष दुर्गुण जनित कामना छोड़ दो॥
दोष दुर्गुण हमें खोखला कर रहे,
जिन्दगी के हरे बाग को चर रहे।
हर कज़ा में मज़ा का वे दम भर रहे,
मर रहे मौत से पर नहीं डर रहे॥
आज भी वक्त है, रास्ता मोड़ दो॥
छोड़ मीठे फलों, सब्जियों घास को,
खा रहे दीन पशुओं के हम मांस को।
पेट दिखता नहीं जीभ के दास को,
मूर्खता ही बताते हैं उपवास को॥
भोग में ही मज़ा है, ये भ्रम तोड़ दो॥
शान ही हम समझते है व्यभिचार में,
मानते हैं बड़प्पन अनाचार में।
लाज आती नहीं भ्रष्टाचार में,
है अहं ही हमारे हर व्यवहार में॥
मान जाओ पतन में नहीं होड़ लो॥
रूढ़ियों के प्रथाओं के पीछे पड़े,
बढ़ गया है जमाना वहीं हम खड़े।
टूटते जा रहे हैं मगर हैं अड़े,
शेखियाँ झाड़ने हम चने पर चढ़े॥
भ्रष्ट चिन्तन तनिक ज्ञान से जोड़ दो॥