चुभन सहकर भी उगाने
चुभन सहकर भी उगाने फूल, पथ पर जो चला है।
पास उसके ही सुखद जीवन, बिताने की कला है॥
जो किया करता उपेक्षा, खन्दकों वाली घुटन की।
औ नहीं परवाह करता, जो कसौटी की तपन की॥
स्वर्ण बन संसार में वह, धैर्यशाली ही ढला है॥
जो किया करता सतत् संघर्ष, पथ की उलझनों से।
और भरता माँग जीवन, की अपेक्षित साधनों से॥
दर्प बाधा विघ्न का उस, आदमी ने ही दला है॥
हर सफलता के लिए, व्यवधान आते राह में हैं।
जीत उनको ही मिले, आनन्द ऐसी चाह हैं॥
साहसी के मार्ग का हर विघ्न, भय खाकर टला है॥
यों सुकृत कर जिन्दगी को, जो मनुज सुन्दर बनाते।
वे विवेकी और पुरुषार्थी, सदा सम्मान पाते॥
आँधियों से जो लड़ा दीपक, सुबह तक वह जला है॥
यों करो कुछ और सबकी, जिन्दगी सुन्दर बनाओ।
प्यार की मृदु गंध वाले, फूल उपवन में खिलाओ॥
जो जिया ऐसे सही ढंग, से वही समझो पला है॥