चलनी में दूध लगाता है
(धुन- नर से नारायण)
चलनी में दूध लगाता है, तो दूध सभी बह जाता है॥
कैसा भी तन हो कसा हुआ, भोगों में हो पर फँसा हुआ।
तो गन्ने सा पिल जाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
कितना ही धन हो पास मगर, बरबादी का हो आदि अगर।
खर्चा अजगर बन जाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
कितना ही लम्बा जीवन हो, आलस्य, प्रमादों का क्रम हो।
जाता है, जैसा आता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
आता जिसको व्यवहार नहीं, पाता है वह तो प्यार नहीं।
घर में भी उपेक्षा पाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
पढ़ लिखकर भी कड़वी वाणी, जैसे हो सागर का पानी।
जो गले उतर ना पाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
दोषों के रहते व्यर्थ मनुज, कर सकता घोर अनर्थ मनुज।
दुर्गुण राक्षस कहलाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।
हम दोष, दुर्गुणों को छोड़े, अपने को सद्गुण से जोड़े।
देवत्व उदय हो जाता है, ...चलनी में दूध लगाता है।।