गंगा गायत्री दोनों का
गंगा गायत्री दोनों का पतित, पावनी नाम है।
कोटि- कोटि जन का दोनों को, बारम्बार प्रणाम है॥
सगर सुतों के हित भागीरथ, गंगा भू पर लाये थे।
जन हित में सहयोगी बनने, शिवजी आगे आये थे॥
जन पीड़ा हरने को हिमनग, गलता आठों याम है॥
गंगा दशमी को गायत्री का भी, उर द्रवित हुआ।
जन मानस अज्ञान ग्रसित था, तब ज्ञानामृत स्रवित हुआ॥
आज ज्ञान गंगा के भगीरथ, गुरुवर श्रीराम है॥
भागीरथ सा तप गायत्री की, करुणा को पिघलाया।
और ज्ञान गंगा को घर- घर, जिनके तप ने पहुँचाया॥
मानवता को मुक्ति दिलाने, जिसका तप निष्काम है॥
गायत्री के चिर साधक ने, इस दिन महाप्रयाण किया।
सूक्ष्म और कारण सत्ता ने, लेकिन यह विश्वास दिया॥
जब तक स्वर्ग न बनता वसुधा, शान्तिकुञ्ज ममधाम है॥
वेद है ज्ञान साम है गान। गान का सीधा- सीधा सम्बन्ध भाव संवेदना से है।
- सामवेद