मुक्तक-
गुरु अनुशासन पाल के शिष्य होत है धन्य।
कृपा पात्र गुरु के बने, सच्चे भक्त अनन्य॥
गुरुजी की महिमा अपरम्पार
गुरुजी की महिमा अपरम्पार, कोई पावे न पार।
पावे न पार कोई पावे न पार, गुरुजी......॥
जन्म लिया आँवलखेड़ा में, भरती हुए राष्ट सेवा में।
जेल गये कई बार, कोई पावे न पार॥
लिखा पढ़ा स्कूल में थोड़ा, अधिक ज्ञान स्वाध्याय से जोड़ा।
रची पुस्तकें तीन हजार, कोई पावे न पार॥
मालवीय जी ने दीक्षा दीन्हीं, दादा गुरु से प्रतिभा लीन्हीं।
किये अनन्त उपकार, कोई पावे न पार॥
भेदभाव बिलकुल तज दीन्हाँ, भंगिनी कि सेवा खुद कीन्हाँ।
कियो पूर्ण उपकार, कोई पावे न पार॥
चौबीस बरस तपस्या कीन्ही, विश्वामित्र की पदवी लीन्हीं।
भयो शक्ति संचार, कोई पावे न पार।।
शान्तिकुञ्ज से मिशन बढ़ाया, जग में नव प्रकाश फैलाया।
भयो मिशन विस्तार, कोई पावे न पार॥
वीणा वादन तत्वज्ञः, श्रुति जाति विशारदः।
तालज्ञश्चाप्रयासेन, मोक्ष मार्गं नियच्छति।।
जो व्यक्ति गीत, वाद्य, श्रुति, जाति, ताल आदि में विशारद होता है, उसके लिए ही मोक्ष प्राप्ति संभव है।
- (महर्षि याज्ञवल्क्य)