गुरु चरणन की लगन
गुरु चरणन की लगन मोहे लागी।
गुरु चरणन की नित दरशन की॥
बीती रैन बिखर गये बादल, रे पंछी उठ जाग चला चल।
बिछ गई पथ पर ये ज्योति किरण की॥
तज दे ममता तोड़ दे बन्धन, कर दे तन मन प्रभु को अर्पण।
साध यही है तेरे जीवन की॥
आया शरण में दे दो शरण, चरण कमल सब दरपण की।
जैसे बन में पपीहा मन में, आस करे नित बसन की॥
हे दुःखहारी जग हितकारी, वह शक्ति दो भव तरणन की।
विश्व विधाता संकट त्राता, विनय सुनो अब दीनन की॥
दोहा- सेवा अपना धर्म है, सेवा ही आधार।
सद्गुरु की वाणी यही, कर दे बेड़ा पार॥
यदि गायन सुन्दर हो तो, श्रेय उन्हीं को मिलना चाहिए, जिन्होंने इनका भाषानुवाद प्रारम्भ में किया और दुबारा करने का आदेश मुझे दिया।
- परम वन्दनीया माताजी