कथा प्रज्ञा पुराण की सुनो
कथा प्रज्ञा पुराण की सुनो, ज्ञान की पावन धारा है।
मिटेगा जीवन से अज्ञान, यही विश्वास हमारा है॥
रचियता हैं इसके युग व्यास, ज्ञान का जिनने किया प्रकाश।
हो रहा आलोकित आकाश, मिट रहा सकल अंध विश्वास॥
प्राण का हो अभिनव संचार, दिया वह अमृत धारा है॥
सम्मुनत बने व्यक्ति परिवार, परस्पर बढ़े स्नेह सहकार।
स्वस्थ तन, मन से उच्च विचार, ऊर्ध्वगामी हों दूर विकार॥
जगत में जितने सुख के सूत्र, समाहित इसमें सारा है॥
कथा में गंगा, गायत्री, कथा में राम और सीता।
समाहित सविता सावित्री, पिरोये कृष्ण और गीता॥
करे निर्मल मति विमल सुजान, बढ़ाती भाई चारा है॥
कथा में मीरा की श्रद्धा, भरा है तुलसी का विश्वास।
संत गुरु नानक और कबीर, भक्ति के पुञ्ज भक्त रैदास॥
सभी के जीवन शिक्षण का, अलौकिक संगम न्यारा है॥
नाद के बिना ज्ञान नहीं होता। वादन के बिना शिव नहीं
होता। परम ज्योति नादरूप ही है। स्वयं विष्णु नादरूप हैं।
- वाङमय