कृपा दृष्टि अब कहाँ मिलेगी
कृपा दृष्टि अब कहाँ मिलेगी, सोच सोच छाती फट जाती।
और कहाँ मिल पायेगी अब, माँ वाली करुणा की छाती॥
कृपा दृष्टि के वरद हस्त बिन, मस्तक अब सूना सूना है।
करुणा के अभिसिंचन के बिन, दिल का दर्द हुआ दूना है॥
बाँह पिता की, गोदी माँ की, पाये बिन अब चैन न आती॥
कौन बताये अब पथ सीधा, मन उलटे पथ पर जाता है।
करुणा की धारा के बिन तो, मन का मैल न छूट पाता है॥
पग- पग पर है गर्त पतन के, पग- पग पर है दुर्गम घाटी॥
जग में अपनी संतानों को, क्या अनाथ ही रहने दोगे।
और चिढ़ाने वाले जग को, क्या मनमाना कहने दोगे॥
माता पिता बिना यह दुनियाँ, करती है उपहास चिढ़ाती॥
लौट नहीं सकते हो तन से, भावभरा निज मन तो दे दो।
बाँहें और गोद दुर्लभ हैं, अन्तर संवेदना तो दे दो॥
मन समझा लेंगे इतने में, पगले! यह है उनकी थाती॥
भाव ले चलेंगे सत्पथ पर, संवेदन निर्मल कर देगा।
‘संरक्षक ऋषि युग्म हमारा’ यह विश्वास हृदय कर लेगा॥
सूक्ष्म और कारण सत्ता तो, और अधिक करुणा छलकाती॥