कुछ कहा ना सुना
कुछ कहा न सुना, तृप्त मन कर दिया।
सद्गुरु! आपने धन्य ही कर दिया॥
सद्गुरु! है अनूठी कृपा आपकी,
शिष्य की हैसियत देखते ही नहीं।
अन्यथा हम अकिंचन जनों पर प्रभो!
आँख कोई नजर फेंकती ही नहीं॥
जब नहीं था कोई भी सहारा प्रभो।
तब हमें आपने नाथ अपना लिया॥
स्वार्थ के ही सगे हैं सहारा सभी,
स्वार्थ की सिद्धि ही है कसौटी जिन्हें,
किन्तु हित शिष्य का ही जिसे इष्ट है,
है मिली वह कृपा दृष्टि दुर्लभ हमें,
आपकी उस कृपा दृष्टि ने ही प्रभो,
हर समय, हर तरह हित हमारा किया॥
आपकी हैसियत से मिली हैसियत,
बिन दिए दक्षिणा शिष्य हम बन गए,
गण बना ही लिया है महाकाल ने,
बस इसी गर्व से वक्ष भी तन गये,
किन्तु गुरुदेव! इस दिव्य अनुदान से।
भार हम पर बहुत ही बड़ा धर दिया॥
लोकहित में समयदान धनदान दे,
हम करेंगे सुखों में कटौती प्रभो,
ज्ञानयज्ञ की मशालें लिए हाथ में,
देंगे अज्ञानतम की चुनौति प्रभो।
कर सकें लोग युगऋषि के शिष्यत्व,
लोकसेवी का हमने है जीवन दिया॥