हममें से अधिकांश इतिहास पढ़ते हैं परंतु कुछ लोग होते हैं जो इतिहास गढ़ते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इतिहास गढ़ने वाले ये सभी महावीर साधन सम्पन्न होते हों। इनमें से कितने ही असुविधाओं में ही पलते हैं और आगे बढ़ते हैं। संकल्प के धनी इन इतिहास पुरुषों के समक्ष सुविधाहीनता अपने घुटने टेक देती है और ये अपने लक्ष्य तक पहुंचकर ही दम लेते हैं। महर्षि अगस्त्य ने देखा कि भारत के उत्तर और दक्षिण को जोड़ने में विंध्याचल सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने संकल्प किया कि विंध्याचल को झुकना ही पड़ेगा और संसार ने देखा कि आकाश को छूने की आकांक्षा रखने वाला वह अहंकारी विंध्य पर्वत उनके सामने जो नत मस्तक हुआ तो आज तक वैसा ही पड़ा हुआ है। भारत के ऋषियों-मनीषियों ने मानस मंथन कर ज्ञान का जो अमृत कुंभ प्राप्त किया है उसकी बूंदें विश्व के हर मानव को मिलना चाहिए—ऐसा एक विचार उन उदारमना के अंतःकरण में प्रस्फुटित हुआ। परंतु उद्दंड समुद्र बाधा बनकर खड़ा हो गया। महर्षि ने कहा कि मैं समुद्र को ही सुखा डालूंगा और सचमुच उनके ज्ञान प्रचारकों के लिए समुद्र सूख ही सा गया। ज्ञान के अमृत कण सुदूर विश्व तक पहुंच गए।
इतिहास का एक बड़ा सत्य यह भी है कि साधनों की विपुलता या तो मनुष्य को दुराभिमानी बना देती है या आलसी और निकम्मा। जीने का मजा तो तभी है जब अपनी राह स्वयं बनाई जाय और मंजिल तक पहुंचकर ही दम लिया जाय। ऐसे ही लोग इतिहास गढ़ते हैं और इतिहास पुरुष कहलाते हैं।
हम भी इतिहास पुरुष न सही पर इतिहास तो गढ़ ही सकते हैं। यह संभव है कि हमारे द्वारा गढ़े गए इतिहास का प्रकाश हमारे घर-परिवार, सुहृद-संबंध, इष्ट–मित्र, मोहल्ला-नगर, जनपद-अंचल तक ही सीमित रह जाय। परंतु कर्मवीरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है और फिर कुछ न करने से कुछ करना तो अच्छा ही होगा। अतः आइए! इस लघु-पुस्तिका में संकलित कुछ इतिहास पुरुषों के चरित्रों को पढ़कर उस पर मनन-चिंतन कर कुछ करने की प्रेरणा ग्रहण करते हुए संकल्प शक्ति अर्जित की जाय।
—प्रकाशक