श्रद्धा आस्तिकता का प्राण - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

July 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गुरुपूर्णिमा 27 जुलाई 1980 को शाँतिकुँज परिसर में दिया गया प्रवचन

उसे मस्तक पर लगा लेंगे और वापस घर चले जायेंगे। परन्तु वह भी नहीं मिला। गोबर भी दिखलाई नहीं पड़ा। हमें बहुत दुःख हुआ कि ऐसे महादेव, जो किसी दूसरे से ताल्लुक नहीं रखते हैं, इनसे हमारा क्या मतलब है। हमारा स्वास्थ्य भी खराब होने लगा था। हमने सोचा कि अब वापस चलना चाहिये और मैं चल पड़ा। वापसी में मैं नास्तिक हो गया। शंकर भगवान पर में बहुत आक्रोश था कि व लोगों की श्रद्धा को महत्व नहीं देते हैं। अगर खुद नहीं आ सकते तो गणेश को, अपनी सवारी को ही भेज देते या उनके गोबर को ही दिखा देते। कहीं ऐसे भी शंकर भगवान होते हैं क्या? हम नास्तिक हो गये और घर वापस आ गये। हमारे घर में हर वर्ष रामायण का पाठ होता था। उस वर्ष भी रामायण हुआ। हमें रामायण के पाठों ने नास्तिक होने से बचा लिया। आज मैं आपके सामने एक आस्तिक व्यक्ति हूँ तथा आस्तिकता का प्रचार करता हूँ।

रामायण ने हमें नास्तिकता से कैसे बचा लिया? रामायण में एक श्लोक है जो रामायण का सार है- भक्ति का सार है और वह है-

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वासरुपिणौ। याभ्याँ विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तस्थमीश्वरम्॥

इस प्रकार तुलसीदास जी ने साफ शब्दों में बतला दिया कि भवानी और शंकर कैसा होना चाहिये। वह होना चाहिये- श्रद्धा, विश्वास के रूप में। उसी रूप में हमें उन्हें पूजना चाहिये। उन्होंने पार्वती-श्रद्धा शंकर-विश्वास के बारे में हमारे मस्तिष्क को साफ कर दिया। गोस्वामी जी ने साफ शब्दों में कह दिया कि भगवान व्यक्ति नहीं हो सकते हैं। भगवान एक सिद्धान्त का नाम है, आदर्श का नाम है। भवानी हो सकती है तो इनसान की श्रद्धा तथा शंकर हो सकते हैं तो इनसान का विश्वास- यह तथ्य हमें भलीभाँति समझ लेना चाहिये।

श्रद्धा ही आदमी का प्राण है, यही आस्तिकता का प्राण है। आध्यात्मिकता का, दैवी अनुदानों का, चमत्कार का, आत्मसाक्षात्कार का प्राण यह श्रद्धा ही है। श्रद्धा का ही चमत्कार हमारे जीवन में हुआ है। पन्द्रह वर्ष की उम्र में ही हमारे गुरु ने दर्शन दिया था, रास्ते दिखलाये थे। उस समय हम बहुत ही भावुक हो गये थे और कहा था कि आप हमें हुकुम दीजिये, हम उसका पालन करेंगे। हम आपका वचन मानेंगे ओर रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाय, पर वचन न जाई, की तरह आपके आदेशों का, वचनों का पालन करेंगे। हमने आपको अपना गुरु, मार्गदर्शक बाँस माना है, हम आपके हर आदेश का पालन करेंगे। हम उन लोगों में से नहीं हैं, जो पैर पीछे हटाकर भाग गये। आप आदेश दें, हम पालन करेंगे। हम घटिया वाले, छोटे वाले आदमी नहीं हैं, जो रोज वायदा करते हैं, कसमें खाते हैं और सम आने पर मुकर जाते हैं। हम शानदार आदमी हैं। हमने आपसे शादी की है और वह ऐसी नहीं है जो आये दिन हुआ करती है।

एक महिला ने एक अन्य महिला से पूछा कि तुम शादी क्यों नहीं करती हो तुम्हारी तो उम्र हो गयी है। उसने कहा कि हमने तीन नौकर पाल रखे हैं तो हमें शादी की क्या जरूरत है? हमने एक तोता पाल रखा है, जिसने कसम खाने की बातें सीख रखी हैं, वह रोज रटता रहता है कि तेरी कसम, तुमसे बड़ा मेरा कोई नहीं। तुमसे ज्यादा कोई प्यारा नहीं। वह मर्द की तरह कसम खाता रहता है। दूसरी हमने एक बिल्ली पाल रखी है, जो खाने के समय आ जाती है, उसके बाद वह आवारागर्दी में सारा दिन घूमती रहती है। कभी सिनेमा में, तो कभी सर्कस में चली जाती है, ताश खेलती है, यार-दोस्तों में डोलती रहती है, परन्तु खाना खाने के समय आ जाती है और खाना खाने के बाद फिर चली जाती है।

इस प्रकार एक तिहाई यह बिल्ली है और एक तिहाई तोता है। एक तिहाई और रह जाता है और वह मेरा कुत्ता है। यह दिन भर जब देखो तब गुर्राता रहता है, भौंकता रहता है। यह हमारे ऊपर भी गुर्राता है और आने-जाने वालों पर भी। यही बात तो शादी के बाद भी होती है। शादी के बाद दूल्हे छोटी-छोटी बातों में कसम खाते रहते हैं और उसके बाद भूल जाते हैं। उन्हें खाने को मिल गया, इसके बाद घर से गायब। सारा समय सिनेमा में, मटरगस्ती में बिता दिया। उन्हें इस बात की कोई चिन्ता नहीं है कि हमारे बच्चे और पत्नी कैसे हैं। एक तीसरा काम और करते हैं कि तब कोई व्यक्ति हमारे मायके से आता है तो गुर्राते रहते हैं। यह भी तो पति का काम है। सहेली, आपने देखा न, यह तीनों काम हमारे पूरे हो जाते हैं तो फिर हम शादी किस बात के लिये करें? शादी होनी है तो ठीक से होनी है। जो फेरे लिये हैं, जो वायदे किये हैं, उसे जीवनपर्यन्त निभाना है। यह है हमारी शादी, जो हमने गुरु के साथ की है।

साथियों, चौबीस साल के चौबीस महापुरश्चरण पूरे करने के बाद हमारे गुरु ने, मार्गदर्शक भगवान ने हमें हिमालय बुलाया। हमने कहा कि आपने उस दिन जो हमें आदेश दिया था, उसका तो हमने पालन किया। उसके बाद हमने आपसे कोई पूछ-ताछ नहीं की। जिस प्रकार आप बतलाते चले गये, हम पालन करते चले गये। आज हम आपके पास आ गये हैं, आप आदेश करें। हमारे गुरु ने कहा कि आपने पूछा नहीं और हमने बतलाया नहीं। उन्होंने कहा कि हमने आपको पहले दिन ही कहा था कि हम आपको देवता बनाना चाहते हैं। हम आपको महान बनाना चाहते हैं। हम आपको इनसान के जीवन तक सीमित नहीं रहने देना चाहते। हम आपको भगवान के दर्जे तक पहुँचाना चाहते थे, सो वह हमें आपको इन दिनों बनाने का प्रयास किया और आप सफल हो गये।

हमने कहा- गुरुदेव आप हमारे पास ही क्यों आये और हमें क्यों परेशान किया? उन्होंने बतलाया कि हम बहुत दिनों से एक शिकारी कुत्ते की तरह से घूमते रहे और तुम्हें खोजते रहे। जब तुम मिल गये तो हमने पकड़ लिया। इसी तरह हम बिना बुलाये सूँघते- सूँघते आपके घर जा पहुँचे। शिकारी कुत्ते इसी प्रकार सूँघते-सूँघते घर पर पहुँच जाते हैं और हत्यारों को, चोरों को पकड़ लेते हैं तथा पुलिस के हवाले कर देते हैं। हमने पूछा कि आपने क्या चीज सूँघी है? उन्होंने कहा हमने आपके अन्दर एक चीज सूँघी है और वह है आपकी श्रद्धा। श्रद्धा से रहित आदमी के पास भगवान कहाँ से आ जायेगा? देवता कहाँ से आ जायेगा? मंत्र कहाँ से आ जायेगा? श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ एवं सारे कर्मकाण्ड प्राणहीन, खोखले जीवन की तरह हैं। इससे मनुष्य को कोई लाभ कदापि नहीं मिल सकता है। श्रद्धा नहीं है तो यह सब ढकोसला है। यह सब मन बहलाव है। श्रद्धा के बिना सब बेकार है।

हमारे गुरुदेव ने कहा कि ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमने एक ऐसे इनसान की तलाश की जिसके अन्दर श्रद्धा जीवन्त थी। उन्होंने बतलाया कि जहाँ श्रद्धा जीवन्त है, उसके लिये सारी मंजिलें खुली हुईं हैं। अगर किसी व्यक्ति की श्रद्धा खत्म हो गयी तो उस आदमी में कोई जान नहीं है। उसके आध्यात्मिक विकास का फिर कोई रास्ता नहीं है। हमने आपके अन्दर देख लिया कि आपके अन्दर श्रद्धा का बीज विद्यमान है और अगर उसे ठीक ढंग से उगाया जा सका तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। हमने आपकी श्रद्धा को देख लिया था, इसलिये आपको साधना सिखा दी थी। हमने कहा कि साधना तो आपने एक ही सिखाई थी न कि आप 6 घंटे गायत्री महामंत्र का जप करें और छाछ एवं जौ की रोटी खायें। उन्होंने कहा कि बेटा, यह तो हमने एक प्रतीक के रूप में आपको बतलाया था। दूसरी चीजें जो सिखलायी थीं वह यह कहा था कि आप अपने आपको मोड़ दीजिये। लोगों का बहाव जिधर चल रहा है, उस ओर से अपने आप को मोड़ लीजिये। क्योंकि आप जानते नहीं हैं कि दुनिया के लोगों के जायके जीभ के जायके के साथ खत्म होते हैं। हमने आपको जायके से मन मोड़ने को कहा था। हमने कहा था कि आप ताकत के जखीरे को रोकिये तथा उस शक्ति के बहाव को रोकिये और उसे अच्छे कार्य में लगाइये। हमने आपके जायके को बन्द करने के लिये यह कर्मकाण्ड कराया था। यह जायके लोभ, मोह, वासना, तृष्णा के भी हो सकते हैं। यह सूक्ष्म किस्म के जायके हैं। स्थूल किस्म के जायके वे हैं तो जबान से जाते हैं और जिनका लोग मजे लेते हैं। इस जायके के चक्कर में आदमी छोटा हो जाता है। उसकी शक्ति खत्म हो जाती है। इसलिये हमने आपको यह कर्मकाण्ड कराया था।

हमने आपको पहले ही दिन कहा था कि हम आपको देवता बनायेंगे। इस हेतु हम साधना करायेंगे। सही साधना हमने आपसे करायी है। आप तो केवल यह कहते हैं कि जौ की रोटी और छाछ खिलाया था, जिसमें कोई तथ्य नहीं था। हमने तो आप को पहले ही दिन कहा था कि आपको देवता बनायेंगे। भगवान बनायेंगे और उसी क्रम में आपसे साधना करायी थी। अब आप यह किसी से मत कहना कि जौ की रोटी खिलायी थी। बाल्मीकि ने मिट्टी खायी थी। आपने भी जौ खाया या मिट्टी- यह किसी से मत कहना।

हमारे गुरुदेव ने कहा कि एक दूसरी बात हमने आपसे यह कही थी कि जिसके द्वारा मनुष्य को सिद्धियाँ मिलती हैं, आध्यात्मिक जीवन का विकास होता है, वह है भीतर का जायका। भीतर का बहाव, लोगों का रहन-सहन लोगों का विचार इसमें आदमी बहता हुआ चला जाता है। उसे कुछ पता नहीं चलता है। इस तरह के बहाव-बाड़ के बहाव की तरह होते हैं, जिसमें छप्पर, हाथी, मुर्दे बहते, पेड़ बहते हुये चले जाते हैं, हमने कहा था कि आपको पानी के बहाव को रोकना चाहिये। आप लोगों की बातों को मत सुनना। आप लोगों की बातों को सुनेंगे तो आगे बढ़ना मुश्किल हो जायेगा। आप लोगों की बातों को सुनना, परन्तु उनके रास्ते पर मत चलना। अगर लोगों के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया तो ये लोग आपको बर्बाद कर देंगे। ये लोग आपको ऐसी जगह पर लेकर जा पहुँचेंगे, जहाँ से आपको आना मुश्किल हो जायेगा।

लोगों का रिवाज क्या है? लोगों के द्वारा विवाह आदि में कितना खर्च होता है? लोगों के प्रसन्नता व्यक्त करने एवं न करने के प्रति अध्यात्मवादी को कठोर हो जाना चाहिये। इस मामले में गाँधीजी के तीन बन्दरों की कहानी से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये। आपको दुनिया वालों की बातें सुनने की अपेक्षा अपने कान बन्द कर लेने चाहिये। यह मत सुनिये कि दुनिया वाले क्या कहते हैं। यह दुनिया वाले बहुत तेजी के साथ बर्बाद करने में लगे हुए हैं। उनकी ओर आपको ध्यान नहीं देना चाहिये। इस बर्बादी के कारण आपके कुटुम्बी, दोस्त, मित्र भी हो सकते हैं। उनकी सलाह पर अगर आप चलेंगे तो आप ऊंचे रास्ते पर नहीं चल सकते हैं।

हमने अपने गुरु के आदेश पर अपने अन्दर विद्यमान श्रद्धा के बीज को आगे बढ़ाने के लिये उनके दो आदेशों को पालन किया है। पहला यह कि योगी, तपस्वी को हर काम में हर बात में ‘यस’ नहीं कहना चाहिये, बल्कि पहले सोचना चाहिये, उसके बाद कार्य करना चाहिये। अगर आपने बीबी से कहा- ‘यस’ तथा मित्र से कहा- ‘यस’ तो ये लोग आपको तबाह कर देंगे। अतः आम दूसरा काम यह कीजिये कि ‘नो’ करना भी सीखिये। यह भी आदेश हमारे गुरु ने दिया। हमने उनके हर आदेश का पालन किया। हमने कभी भी अपने रिश्तेदारों, मित्रों, दोस्तों की बातों को ‘यस’ नहीं किया है। अरे भाई, साला है और यह कहता है कि चलिये सिनेमा देखाकर लायेंगे, तो आप ‘यस’ न करें। हमारे गुरु ने कहा कि योगी-तपस्वी हर परिस्थितियों में ‘यस’ नहीं करते हैं। वे तप करने के लिये धूप में, गर्मी में, अग्नि में खड़े हो जाते हैं तथा अपने को तपाते हैं। यह तितिक्षा होती है। अध्यात्मवादी उसे कहते हैं तो अपने भीतर वाली गलती को, भीतर वाली कमियों को निकाल बाहर करते रहते हैं उनसे हमेशा लड़ते रहते हैं, अन्यथा ये सारी चीजें आदमी को खा जाती हैं। अतः इसे अवश्य रोकने का प्रयास करना चाहिये।

मित्रों, हम देख रहे हैं कि इन दो हमार आदमियों में गाँधी बनने की क्षमता वाले कम से कम दो सौ आदमी बैठे हैं। इसमें से कई आदमी सरदार पटेल, नेहरू एवं शास्त्री बन सकते थे, परन्तु केवल दो सुराखों ने इनको खा लिया। इनमें बहुत से आदमी हमें ऐसे दिखाई पड़ रहे हैं जिन्हें हम यदि मोर्चे पर खड़े कर दे तो वे इन्हें न जाने कहाँ से कहाँ ले जा सकते हैं। आप में से हमें ऐसे व्यक्ति दिखलायी पड़ रहे हैं, जिन्हें गुरु गोविन्द सिंह होना चाहिये था, परन्तु ये नहीं हो सके। इसके लिये दो ही सुराख जिम्मेदार हैं। एक हैं- भीतर वाली कमजोरियाँ- जिसे हम हमेशा बतलाते रहते हैं। वह हैं हमारी इन्द्रियाँ- जिससे हमने कभी ‘नो’ कहना ही नहीं सीखा। दूसरे वाले हैं- हमारे कुटुम्बी- जिनसे भी हमने ‘नो’ कहना ही नहीं सीखा, आप उन्हें ‘नो’ कहिये। आप कहिये कि हम आपकी सलाह को नहीं मान सकते। आप हमें मजबूर न करें कि हम उस रास्ते पर चलने के लिये तैयार हो जायें।

मित्रों, पन्द्रह वर्ष की आयु से ही बराबर चौबीस साल तक हमें अकेले ही खड़े रहना पड़ा। हमारे रिश्तेदारों ने इसका बहुत विरोध किया, पुरातनपंथियों ने तो हमारा विरोध बाद में किया। नारियों के गायत्री अधिकार के बारे में उन्होंने विरोध बाद में किया। गायत्री का अधिकार केवल ब्राह्मणों को है, ऐसे शब्दों का प्रयोग प्रतिगामी लोगों ने बाद में किया, परन्तु असली विरोधी तो हमारे सम्बन्धी, रिश्तेदार पहले थे, जिन्होंने हमेशा बरगलाने की कोशिश की, हमारी हिम्मत तोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने ऐसे-ऐसे कटाक्ष कसे- आक्षेप लगाये, सलूक किया था जिससे हमारी हिम्मत टूट जानी चाहिये थी, परन्तु हम हमेशा उनके आदेशों को ‘नो’ करते रहे।

हमारे गुरुदेव ने जो हमें बतलाया, हमने उसका पालन किया है। आप जानते हैं कि तब बच्चा पैदा होता है तो वह पहले जीभ के द्वारा ही दूध का जायका लेता है। इस जीभ को नियंत्रित करने के लिये हमने चौबीस साल तक जौ की रोटी और छाछ लिया है। नमक, शक्कर क्या होता है, इसका स्वाद जीभ ने चखा ही नहीं वस्तुतः जीभ ये ही संयम शुरू होता है। इसे जायकेदार बनाने के लिये लोग हमें सलाह देते रहे, पर हमने उनको मना कर दिया कि हमें आपकी- सलाह की आवश्यकता नहीं है। हमने अपने जीवन में यह निश्चय कर लिया था कि हमें अपने गुरु- मार्गदर्शक सत्ता की सलाह माननी चाहिये, जिसके द्वारा हमारा कल्याण हो सकता है। बाकी को हमेशा ‘नो’ कहा है। हमने लोगों से कहा कि आम कृपा कीजिये तथा हमें अपने रास्ते पर चलने दीजिये।

मित्रों! इसी तरह हम निरन्तर 24 साल तक चलते रहे। हमें सहयोगियों की कमी कभी भी नहीं रही। हमें हमेशा सहयोग मिलता रहा। आपको मालूम होना चाहिये कि दैवी शक्तियाँ हमेशा इस प्रकार की आत्मा या व्यक्तित्व की तलाश करती रहती है तथा उन्हें सहयोग देने के लिये आतुर रहती है। हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप अपने विचारों को बदल दे तब भगवान की अनुकम्पा बादलों की तरह से आपके ऊपर बरसने लगेगी। बादल जब बरसते हैं तो यह तलाश करते हैं कि नदियाँ कहाँ हैं जिन्हें हम भरदें। हमारे गुरु इसी तरह से हमारे, पास चले आये थे। गुरु किसी व्यक्ति को नहीं कहते हैं। गुरु एक शक्ति है, गुरु एक फिलॉसफी-दर्शन हैं गुरु के बारे में शास्त्र कहते हैं- “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुगुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः॥” तो क्या आप ब्रह्मा हो सकते हैं? नहीं। क्यों? अच्छा तो आप एक बच्चे को बना दीजिये। चलिये बच्चा नहीं बन सकता तो एक जूँ बनाकर दिखा दीजिये। ब्रह्मा ने तो सारी सृष्टि बना दी है, पर आप कुछ नहीं बना सकते हैं। हमने गुरुत्व को समझने की कोशिश की है, आपको भी समझने का प्रयास करना चाहिये। अध्यात्म की जितनी भी सामर्थ्य हैं, सिद्धियाँ हैं, वह एक व्यक्ति के मार्गदर्शन पर टिकी हुई है और उसका नाम गुरु है, जो व्यक्ति की चतुर्मुखी प्रतिभा को विकसित कर देता है। सारा चमत्कार श्रद्धा का ही है। हमने जो कुछ भी पाया है, वह केवल श्रद्धा का ही है।

साथियों! हमसे जो 24 साल तक अनुष्ठान करने को कहा गया था, उसमें डर था कि हम उसे कैसे कर पायेंगे, परन्तु यह हमारी श्रद्धा का ही फल है, जो हम उसे पूरा कर पाये। इतना ही नहीं आगे भी हमारी श्रद्धा बढ़ती ही गयी। हमारे गुरु ने जब गायत्री का मंदिर बनाने के लिये कहा तो उसके लिये हमने जो जमीन ली, वह एक बगीची थी। उसे खरीदने से लेकर बनाने तक का सारा काम हमारी श्रद्धा के द्वारा ही पूरा हो सका। देश के कोने-कोने से हमें इस कार्य हेतु सहयोग मिलना शुरू हो गया। पहले हमारी हैसियत क्या थी, परन्तु गुरु के साथ जुड़ जाने पर हमारी हैसियत हमारे मार्गदर्शक के कारण बढ़ गयी। हमने अपने गुरु से कहा कि हमारा बजट इतना नहीं है। हमारे बाँस ने कहा कि आपका बजट नहीं है तो क्या हुआ, हमारा बजट तो है। आप काम शुरू करें। हमने वह बगीची 6000 रुपये में खरीद ली, जिसमें एक इमारत भी थी। मंदिर की तरह भी कुछ बना था। एक कुआँ भी था। उन्होंने कहा कि एक आयोजन भी करना होगा। जिसमें चार लाख व्यक्तियों के ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था बनानी होगी। हमने कहा कि आप तो कहते ही चले जाते हैं, पर बजट का क्या होगा? उन्होंने कहा कि आपके बजट से कोई मतलब नहीं है। यह हमारा बजट है, जिसमें पाँच दिनों तक चार लाख आदमियों को भोजन कराना होगा। इतने लोगों में एक रुपये के हिसाब से बीस लाख रुपये खर्च होंगे। दूसरे समय के भोजन में 20 लाख। इस तरह 40 लाख भोजन में और यज्ञ एवं अन्य व्यवस्था में करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे। पर आप इसकी चिन्ता मत कीजिये। हमने अपने बाँस से कहा कि हम तो ब्राह्मण हैं। हमारे बाप-दादों ने दक्षिणा में इक्कीस रुपये माँगे हैं, परन्तु हमने कसम खायी है कि हम इनसान के आगे कभी भी नहीं माँगेंगे और न हाथ फैलाएँगे । इस सम्बन्ध में हम अपनी जबान नहीं खोलेंगे। अगर आपने हमसे कहा कि आप रसीद बुक लेकर के जाइये और दुकान-दुकान जाकर अठन्नी माँगकर लाइये, तो यह हमसे नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि आप तो काम चलने दीजिये।

बेटे, सन् 1958 के विराट यज्ञ का सारा काम हो गया। उस दिन से हमारा संगठन भी बन गया। हमारा मनोबल भी बढ़ गया। हमें विश्वास हो गया कि हमारे साथ एक समर्थ सत्ता है। यह है हमारी श्रद्धा-गुरु के प्रति! गुरु श्रद्धा है, विश्वास है। इसमें हम एक व्यक्ति के प्रति श्रद्धा जाग्रत करते हैं। कमजोरियाँ किसमें नहीं होती हैं। हमारा गुरु? एक व्यक्ति है, एक पत्थर है, किन्तु एकलव्य के तरीके से हमने उसे भगवान बना दिया है। यह है हमारी श्रद्धा। हमारे लिये गोबर गणेश ही महान है।

आपने तो देवी की पूजा की, चाय पिलाया, दूध चढ़ाया, परन्तु आपकी देवी ने कभी भी- थैंक यू वेरी मच नहीं कहा। कम से कम थैंक यू ही कह देती, पर वह भी नहीं कहा-उसने वह तो चुपचाप बैठी रहती हैं। हम नमस्कार करते रहते हैं, परन्तु वह जवाब तक नहीं देती हैं। अगर आप एक आदमी को नमस्कार करें तो वह जवाब दे देता है। कोई व्यक्ति लेखन भी कर रहा हो, तो वह यदि हाथ नहीं उठा सकता तो कम से कम अपना सिर तो हिला देता है, परन्तु देवी कभी भी कुछ नहीं कहती हैं। वह खाना खाती रहती हैं, तो यह भी नहीं कहती हैं कि आप भी आ जाइये और थोड़ा -सा भोजन कर लीजिये। वह देवी केला खिलाने पर भी कुछ नहीं कहती। यह तो आपकी श्रद्धा है जो आप खिलाते रहते हैं और वह आपकी भावना को उसी प्रकार स्वीकार करती रहती है। किन्तु हमने अपनी श्रद्धा को कायम रखा है, जिसके कारण देवी ने हमें दर्शन लाभ देना शुरू कर दिया है। हमने जो दीपक जलाया है, वह क्या है? आग है, परन्तु हमारी श्रद्धा दूसरे प्रकार की है। हमने उसे कभी भी आग के रूप में नहीं, प्रकाश के रूप में, एक ज्योति के रूप में दर्शन किया है। वह है हमारी श्रद्धा। यह श्रद्धा ही है जो न जाने क्या ये क्या कराती और क्या ये क्या बना देती है। हमारा वह दीपक चमत्कार दिखाता है। वह दीपक हमारी सिद्धि का प्रतीक है। वह दीपक हमारी प्रगति का प्रतीक है और न जाने क्या-क्या है।

मित्रों, आज गुरुपूर्णिमा का पर्व है। यह पर्व केवल श्रद्धा का है। हमारे मार्गदर्शक ने कहा था कि हम तुम्हें देवता बनायेंगे। यह हम अपने मुख से क्या कहें, ये बैठे हुए लोग स्वयं समझते हैं। हमने समाज को दिया है, यह हम अपने मुख से क्या कह सकते हैं? हमारे शरीर छोड़ने के बाद आप लोग याद करेंगे कि एक ऐसा भी इनसान धरती पर आया था जिसने संसार के हर व्यक्ति को प्यार दिया था। मोहब्बत दी थी। लोगों को दिशाएँ दी थीं, प्रेरणाएँ दीं और लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया था। आप कहेंगे कि उसका सबूत क्या है? सबूत यही है कि हमारा प्यार लौट कर हमारे पास आ जाता है। आप विश्वास करें या न करें, पर हमारा ही प्यार हजारों, लाखों आदमियों में ‘रिप्लेक्ट’ होता है और वह इस कदर वापस हमारे ऊपर आ जाता है जिसे देखकर लगता है कि हम इस बेकार की दुनिया में नहीं रहते हैं, वरन् हम प्यार की दुनिया में रहते हैं, हम मोहब्बत की दुनिया में रहते हैं। हमें लगता है कि हम श्रेय की दुनिया में, सद्भावना की दुनिया में रहते हैं। हमारी दुनिया ऐसी है कि उसका क्या कहना। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ऐसी दुनिया भगवान हर किसी भाग्यवान को दे।

आप लोग इतनी दूर से हमारे पास आते हैं। आप क्या लेकर आते हैं? मोहब्बत लेकर आते हैं, प्यार लेकर आते हैं और पैसा खर्च करके आते हैं। आप अपनी पत्नी के जेवर तक बेचकर आते हैं, और न जाने कितनी परेशानी उठाकर हमारे पास आते हैं। यह क्यों होता है? बेटे, हमारी मोहब्बत और प्यार तुम्हें खींचकर यहाँ ले आता है। गुरुजी! मेरा तो एकदम मन नहीं था, परन्तु एक व्यक्ति ने कहा कि गुरुपूर्णिमा में तो चलना ही चाहिये और हम खिंचते हुए आपके पास चले आये, हम यहाँ पर अपनी मोहब्बत आपके ऊपर बिखेरते हैं और वह आपके दिलों पर हावी हो जाती है। हमने मोहब्बत दी है, उत्साह दिया है और आप लोगों को उछाल दिया है। ऊपर से नीचे आना पानी का नैसर्गिक गुण है। आज लोग इसी प्रकार मनुष्य को नीचे गिरा देते हैं, परन्तु हमने हर व्यक्ति को नीचे से ऊपर उठाया है। उसे उछाल दिया है।

आप लोगों को मालूम है कि उछालने में बहुत शक्ति लगती है। इसमें गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध शक्ति लगानी पड़ती है। हमने आदमी को उछालने का प्रयास किया है। लाखों आदमियों को हमेशा उछाला है- गेंद के तरीके से, राकेट के तरीके से। हमने उछालने की यह ताकत अपने गुरु से पायी है। यह हमारी श्रद्धा का चमत्कार है। हमने बालों से भभूत नहीं निकाली है, बाजीगरी नहीं दिखाई है। लानत है उन बाजीगरों को जो अध्यात्म के नाम पर इस तरह के तमाशा दिखलाते हैं। बेटे, हम क्यों तमाशा दिखलायेंगे, हम कोई बाजीगर हैं क्या? हम किस लिये चमत्कार दिखलायेंगे? आप हमारी प्रशंसा करें और आप अचंभे में पड़ जायेंगे, यह हमारा काम नहीं है। अचंभे में पड़ना बच्चों का काम है। न हम बाजीगर हैं और न आपको बच्चा समझते हैं। यह उछालने का हमारा चमत्कार है। आदमियों के कष्टों को हमने दूर किया है। आदमी आजकल थक गया है। हार गया है। वह मूर्छित हो गया है। आज आदमी को प्यार की जरूरत है, मोहब्बत की जरूरत है, जो मनुष्य की पीठ थपथपा कर यह कह सके कि हम आपके कन्धे से कन्धा मिलाकर चलेंगे। ऐसे लोग भी इस संसार में दिखलाई नहीं पड़ते हैं, जो लोगों के आँसू पोंछ सकें, उनसे दो शब्द प्यार के बोल सकें, दुख-दर्द बंटा सकें।

मित्रों! हमने लोगों को हिम्मत दी है, सहायता की है। पता नहीं भगवान ने हमारी जेब में क्या-क्या दिया है? परन्तु हमने इनसान के लिये अपनी जेब को हमेशा खाली किया है। हमने कुछ भी बचाकर नहीं रखा। तप, पैसा, ज्ञान जो भी रखा था, हमने उसे बाँटने का प्रयास किया है। हम हमेशा अपने दिमाग को, अपनी जेब को खाली करके तब सोये हैं, हमें गहरी नींद आती है। चार घंटे हम इस तरह सोते हैं जैसे नशे की दवा खाने पर भी लोग नहीं सो पाते हैं। हम इसलिये सोते हैं, क्योंकि हम खाली होकर सोते हैं। हम इसलिये खाली होकर सोते हैं कि हमने अपने जीवन की धाराओं को किसी के सुपुर्द कर दिया है। हमने यह कहा है कि यह बाँस खाली है, आप इसे बजा सकते हैं। हमने उसे अपने बाँस को ओठों से लगा दिया है। हमने यह कह दिया है कि आपकी जैसी मर्जी हो वैसा इसे बजायें। हम आपके हैं, आप जैसा चाहें उपयोग करें। हम सर्वतोभावेन आपके हैं।

जब पाँच हार्सपावर की मोटर से पानी ऊपर चढ़ जाता है, तो नीचे वाला स्रोत यह कहता है कि लीजिये पानी लीजिये। हम इसी तरह खाली हाथ होते रहते हैं और पुनः भरते रहते हैं। हम इसी तरह लोगों की मदद करते रहते हैं। उनकी आँखों के आँसू पोछते रहते हैं। आप किसी से मालूम कर लेना कि आप आचार्यजी के पास गये तो क्या आप खाली हाथ आये? आप किसी से भी पूछ लेना- हर आदमी यही कहेगा कि भला आचार्यजी के पास से हम खाली हाथ आ सकते हैं क्या? आपको हर आदमी यही कहेगा कि हम गुरुजी के पास जाते हैं और फायदा लेकर आते हैं। देवता वे होते हैं जो देने में समर्थ होते हैं। हम अपने गुरु के रास्ते पर चलते चले गये और हमें फायदा हुआ है। उन्होंने हमें कहा था कि तुम्हें देवता बनायेंगे। सो उन्होंने बनाया। भगवान को हमने नहीं देखा है, परन्तु हमने देखा है कि भगवान हमारे अन्दर घुसता हुआ चला जाता है।

भगवान के द्वारा बड़ा-बड़ा काम होता है। युग बदलने का काम होता है। प्रज्ञावतार का काम भी भगवान का ही काम हैं यह इनसान का काम नहीं है। इनसान छोटे-छोटे मारकाट एवं झंझटों को ठीक नहीं कर सकता है। उनकी व्यक्तिगत समस्यायें ही हल नहीं होती हैं। नगरपालिका के अध्यक्ष हैं, उनसे अपने क्षेत्र की सफाई का काम ही पूरा नहीं होता है। 28 आदमी मिलकर नगरपालिका की व्यवस्था नहीं संभाल पाते हैं। जिले का डीएम. और एसपी. अपने जिम्मे का काम पूरा नहीं कर पाते हैं। फिर इतने तमाम लोगों की तमाम समस्याओं का समाधान इनसान कैसे कर पायेगा। वास्तव में जो काम इनसान के बलबूते का नहीं होता है, वह काम भगवान अपने जिम्मे रखते हैं। भगवान प्रेरणा, प्रकाश और सुव्यवस्था का नाम है। प्रेरणा और प्रकाश के द्वारा उसकी व्यवस्था चलती है। हमारे गुरु हमेशा हमें प्रेरणा देते रहते हैं। उन्होंने हमें अनुदान दिया है, हमारे सामने अनेकों साधन दिये हैं।

आप पूछ सकते हैं कि क्यों गुरुजी हमें भी ऐसा गुरु मिल सकता है? हम कहते हैं कि आप में से हर एक व्यक्ति को ऐसा गुरु मिल सकता है, परन्तु शर्त एक है- आपकी श्रद्धा। आप इसे न पैदा करना चाहते हैं और न आपको इस पर विश्वास है। आपको चालबाजी और जालसाजी पर विश्वास है, श्रद्धा पर विश्वास नहीं है। हमने श्रद्धा पर विश्वास किया है। हमारे लिये हमार गुरु पत्थर का हो या हिमालयवासी हो- हमने उसे श्रद्धा के रूप में देखा है और पाया है। वह हमारे आगे-आगे चलता है, बातें करता रहता है, हमारी हर समस्या को हल करता है। हम आपको यह बताना चाहते हैं कि किस प्रकार हमारा बाँस हमको सामर्थ्यवान बनाता चला जा रहा है। हम चाहते हैं कि आपको भी हम सामर्थ्यवान बना दें, परन्तु आप में श्रद्धा ही नहीं है। स्वामी विवेकानन्द को अपनी सत्ता और शक्ति रामकृष्ण परमहंस ने स्वयं सौंप दी थी। हम भी यही चाहते हैं कि आप सभी हमारे बच्चे बड़े हो गये हैं और अपनी जिम्मेदारी संभालने योग्य हो गये हैं। अतः हम अपनी सारी शक्ति आपको देकर निश्चिन्त हो जायें।

हमारे गुरु ने हमसे कहा था कि आप अगर श्रद्धा कायम रखेंगे तो हमारा अनुदान कभी खाली नहीं जायेगा। आज गुरुपूर्णिमा के इस पावन पर्व पर हम आपको एक बात बतलाना चाहते हैं कि आपकी आध्यात्मिक उन्नति, चमत्कार इसके बिना-अर्थात् श्रद्धा के बिना कदापि सम्भव नहीं है। ऐसे बहुत से श्रद्धावान शिष्य हुए हैं, जितने अपने एक बूँद दवा के द्वारा हजारों लोगों की बीमारियों को ठीक कर दिया है। उन्हें लाभ पहुँचाया है। यह श्रद्धा का ही चमत्कार है। हमारी दवा में श्रद्धा है जो अमृत है। हमारे जीवन में सफलता की यही कहानी है। हमने श्रद्धा के साथ अपने मार्गदर्शक को अपनाया है। हमें अपने गुरु के प्रति, आचार्यों के प्रति, भगवान के प्रति, आस्तिकता के प्रति अटूट श्रद्धा है। हम कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखते। अकेले चलते हैं। हमारे साथ हमारी श्रद्धा और विश्वास चलता है और हम सफल होते हैं।

साथियों, हम हर काम में सफल होते चले जाते हैं। हमने नैष्ठिक साधक बनाने का संकल्प लिया है और वह पूरा हो रहा है। हमने अपने 6 हजार गायत्री परिवार की शाखाओं के अंतर्गत गायत्री चरणपीठ बनाने का संकल्प लिया है। पहले हमने चौबीस गायत्री शक्तिपीठ बनाने का संकल्प लिया था, जो अब 2400 के निर्माण के रूप में बदल गया है। हम अपने मरने तक एक लाख चरणपीठ बना लेंगे। आप नहीं जानते हैं कि हमारे पीछे कौन-सी शक्ति है। आपको मालूम नहीं है कि हमारा कोई काम, कोई संकल्प अधूरा नहीं रहा है। हमारी श्रद्धा ने उन्हें जकड़कर रखा है। यह हमारे साधु-ब्राह्मण जीवन का फल है। आज इसका संसार में अभाव है। आज संतों का अभाव है। कहीं भी कोई संत दिखाई नहीं पड़ रहा है। आज वे रहते तो हमें चरणपीठ बनाने की क्यों आवश्यकता पड़ती। वे गाँवों में अशिक्षा की समस्या दूर कर देते। सामाजिक कुरीतियों को निकालने में सफल हो जाते। हम अगले दिनों संतों की- ब्राह्मणों की एक नई पीढ़ी का निर्माण करेंगे, उन्हें नव-निर्माण की ओर अग्रसर करेंगे।

आप हमें कभी भी व्यक्ति नहीं समझना, आप हमें एक शक्ति समझना। सारे काम समय पर हो जायेंगे। हम अकेले नहीं काम करते हैं। हमारी पाँच शक्तियाँ काम करती हैं। आदिवासियों की समस्या हम हल करेंगे। हमने झाबुआ में आदिवासी सम्मेलन बुलाया है। उसमें हम हर समस्या का समाधान करेंगे। आप देखना हम आगे चलकर सामाजिक कुरीतियों का समाधान किस तरह से करते हैं। आप आगामी दिनों हमारा चमत्कार देखना। हमारी सरकार निरक्षरता का समाधान नहीं कर सकी। हमें देश के, मुल्क के लोगों को साक्षर बनाना है। हमें अभी बहुत काम करना है। हम अभी नहीं मरेंगे। हमने तो कह दिया है कि हमें जब चलना होगा तो टेलीफोन करके आपको बुला लेंगे।

बेटे, इन समस्याओं को हल केवल मनुष्य के दिन और दिमागों के बदलने से होगा। हम अगले दिनों असंख्यों मनुष्यों के दिल और दिमागों को बदल डालेंगे। हमारे बाँस ने कहा था कि हम तुम्हें भगवान बनायेंगे। इसका मतलब यह नहीं था कि वे मुझे पूजा- उपासना कक्ष तक सीमित कर देंगे, बल्कि वह प्राणऊर्जा हमारे अन्दर भर देंगे हो कि हम भगवान जैसे कार्य, दिल-दिमाग बदलने जैसा कार्य सहज में कर सकें। हम भगवान के ‘टूल्स’ हैं, आप हमें भगवान कहें तो हमें आपत्ति हो सकती है। टूल्स कहने पर नहीं। आप बुद्ध को और गाँधी को चाहें तो भगवान कह सकते हैं।

हमारा बाँस- हमारा भगवान जब भी हमें आवश्यकता पड़ी है, दोस्त के तरीके से- गुरु के तरीके से आया है, उसने मदद की है। हमने श्रद्धा के बल पर उसे पकड़ लिया है। हो सकता है कि हमारा गुरु सूक्ष्म हो, परन्तु माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखकर हमने उसे बड़ा बना दिया है। वह महान है, उसकी शक्ति महान है। आप चाहें तो उसी तरीके से अपने अन्दर ला सकते हैं तथा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हम आपको यह बतलाना चाहते हैं कि आप भगवान के रास्ते पर चलना, भगवान आपके रास्ते पर चलेंगे। अर्जुन भगवान के रास्ते पर चले तो भगवान भी अर्जुन के रास्ते पर चले। हम


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118