विराट प्रज्ञापुरुष गुरुदेव जिनके पाँच स्थूल-शरीर अभी भी हमारे बीच हैं।

July 1997

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परमपूज्य गुरुदेव के जीवन की हर श्वास गायत्री महाशक्ति को अर्पित थी। जीवनभर वे इसी के लिए संघर्ष करते रहे कि गायत्री महामन्त्र जन-जन तक पहुँच जाए। इसके लिए उन्हें प्रतिकूलताओं से, कट्टरवाद से कितना टकराना पड़ा है, यह सभी जानते हैं। गायत्री उन्हें सिद्ध थी। जीवन के दृश्यमान स्वरूप का पटाक्षेप स्थूलशरीर के पंचतत्वों में विलीन होने के रूप में उनने गायत्री जयन्ती के कि नहीं किया, यह मात्र एक संयोग नहीं, एक सुनियोजित जीवन-साधना है। पंचमुखी गायत्री के पंचकोशों को पूज्य गुरुदेव ने जाग्रत कर अपने जीवन में उनका न केवल साक्षात्कार किया, औरों को भी इस महत्साधना का मार्ग दिखा गए। ऐसा कहा जाता है कि गुरुदेव पाँच शरीरों से जीते थे। कई घटनाक्रम ऐसे मिले हैं जिनसे ज्ञात होता है कि जिन तिथियों में वे किसी स्थान पर थे उसी समय अपनी लीला कहीं और भी किसी को परामर्श देने के रूप में एवं कहीं प्रवचन देने के रूप में दिखा रहे थे। वे एक दीखते हुए भी पाँच थे- परम वन्दनीया माताजी जिन्हें उनकी अभिन्न सहचरी होने का अवसर मिला है-लिखती हैं-मैं नहीं जानती कि इन घटनाओं में कितनी सच्चाई थी, पर इतना अवश्य कह सकती हूँ के वे जीवन भर पाँच शरीरों के जितना भिन्न-भिन्न प्रकार के पाँच कार्यों का सम्पादन एक साथ करते थे।” वे लिखती हैं कि उनके स्थूल शरीर की उपलब्धि देखकर नहीं लगता कि एक व्यक्ति एक शरीर से इतना काम कभी कर सकता है। पाँच शरीर कैसे ? इसकी व्याख्या वन्दनीया माताजी ने उनकी दिनचर्या का विस्तृत विश्लेषण करके अखण्ड-ज्योति नवम्बर 1971 के अंक में की है।

(1) 6 घण्टे प्रतिदिन उपासना नियमित करते थे। गायत्री मन्त्र की उनकी सिद्धि का स्रोत था-तप की पूँजी का विराट भण्डागार-24 लक्ष के 24 महापुरश्चरणों के रूप में। इसके बावजूद उनकी नित्य की यह साधना कभी भी न छूटी। आखिरी श्वास तक चलती रही।नित्य वे कमाते थे-सोते समय तक खाली हो जाते थे।

(2) 1970-71 तक उनके पास देश-विदेश के प्रायः 400-500 पत्र आते थे।इनको स्वयं खोलना, लगभग 100 के उत्तर स्वयं देना विभिन्न जटिलताओं से भरे शेष पत्रों का जवाब कार्यकर्ताओं को नोट कराना। किसी भी पत्र को 24 घण्टे से अधिक न रोककर पूर्णतः समाधानपरक उत्तर तुरन्त भिजवा देना, व्यवस्था-बुद्धि की कुशलता का परिचायक था। यह कार्य जो एक व्यक्ति के लिए 10 घण्टे से कम में नहीं निपट सकता, कैसे चुटकियों में निबट जाता था, कोई कल्पना नहीं कर सकता। बाद में 1980-81 तक वे शान्ति कुँज में भी इसी कार्य को कराते रहे-सारे पत्र फिर परम वन्दनीय माता जी की ओर से जाते थे।आज उन दिनों के पत्रों से संख्या पाँच-छह गुनी अधिक हो गयी है एवं लगभग सौ व्यक्तियों का पत्राचार विभाग उसे सम्भालता है। सोचा जा सकता है कि पूज्यवर ने कितने व्यक्तियों के बराबर कार्य एक दिन में किया होगा।

(3) उनके द्वारा किया गया लेखन उनके वजन की तौल से दुगुना है। मात्र 1959 से 1971 तक लिखे कार्य एवं फिर हिमालय यात्रा से लौटकर 1972 से लेकर 1990 में अन्तिम श्वास तक लिखे गये कार्य को कोई देखे तो आश्चर्यचकित होकर रह जायेगा।कोई यदि यह कार्य पूरे चौबीस घण्टे भी करे तो जीवनावधि के सौ तो क्या तीन सौ वर्षों में भी पूरा नहीं कर सकता। 2700 पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन आर्ष-ग्रन्थों का भाष्य, भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों से लेकर वैज्ञानिक आध्यात्मवाद एवं आध्यात्मिक समाजवाद जैसे गूढ़ विषयों पर संदर्भों सहित लेखन, प्रज्ञापुराण की रचना, गायत्री यज्ञ विधा का विज्ञान-सम्मत प्रस्तुतीकरण एवं जीवन-विद्या के विभिन्न पक्षों पर बहुमुखी लेखन वे जीवन भर करते रहे। अपने स्वयं के हाथों से उनने अगस्त 1969 की अखण्ड ज्योति पत्रिका के ‘युगपरिवर्तन के छोटे किन्तु महान शस्त्रागार’ लेख में लिखा है-चेतना के उच्चतम स्वर से अवतरित हुए, अन्तःकरण की करुणा में धारण किये गये, बौद्धिक तीक्ष्णता से सँवारे गए इन विचारों में कितनी आभा है-कितनी रोशनी है, यह कहने की नहीं, अनुभव करने की बात है जिनने इन्हें पढ़ा-तड़प कर रह गए। रोते हुए आँसुओं की स्याही से जलते हृदय ने इन्हें लिखा है, सो इनका प्रभाव होना ही चाहिए, हो रहा है और होकर रहेगा।” यदि यह कहा जाए कि गुरुदेव का एक शरीर लेखनी की साधना में रत रहा।

परमपूज्य गुरुदेव के पाँच स्थूल शरीर.

परमपूज्य गुरुदेव अक्सर चर्चा प्रसंगों में अपने निकटस्थ घनिष्ठ शिष्यगणों के समक्ष वार्तालाप करते हुए कहते थे. श्रम पाँच स्थूल शरीर हैं. पाँच सूक्ष्म शरीर है। पाँच स्थूल तो वे हैं जो मेरी स्थापनाएं हैं जिन्हें केन्द्रीय संचालन तंत्र के रूप में माना जा सकता है। इन्हीं शरीरों के विभिन्न अंग-अवयव भिन्न भिन्न शक्ति पीठों प्रज्ञासंस्थानों प्रज्ञा पीठों चलते-फिरते प्राणवान कार्यकर्ताओं के रूप में सारे भारत व विश्व भर में फैले हैं। पाँच सूक्ष्म शरीर साधना के बाद से ही कार्य कर रहे हैं पाँच वीरभद्रों की चर्चा प्रस्तुत स्थल शरीरों के रूप में उनकी स्थापनाओं के बाद करेंगे। ये पाँच स्थापनाएं पाँच स्थूल शरीर इस प्रकार हैं:-

;क्द्ध युगतीर्थ आँवल खेड़ा ;ख्द्ध अखण्ड ज्योति संस्थान घीयामण्डी मथुरा ;फ्द्ध गायत्री तपोभूमि मथुरा ;ब्द्ध शाँतिकुँज गायत्रीतीर्थ सप्त सरोवर हरिद्वार ;भ्द्ध ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान हरिद्वार।

परमपूज्य गुरुदेव के इन गाँवों स्थूल शरीरों को समझने से पूर्व यह समझ लें कि क्-क्क् में आज से प्रायः त्त्म् वर्ष पूर्व जन्मी हमारी गुरुसत्ता ने सुनियोजित ढंग से अपनी जीवनावधि को चार भागों में बाँट दिया। ;अद्ध क्-क्क् से क्-ख्म् तक की पन्द्रह वर्ष की बाल्यकाल की अवधि जब उनकी गुरुसत्ता से उनका साक्षात्कार हुआ ;आद्ध क्-ख्म् से क्-ब्क् तक की पन्द्रह वर्ष की अवधि जिनमें स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय प्रवेश करने से लेकर जेल जाने तक गायत्री महापुरश्चरण आरंभ करने से लेकर बापू कवीन्द्र रवीन्द्र व श्री अरविन्द जैसे महापुरुषों के साथ ड. का क्रम एवं अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। यह कार्य विभिन्न जेलों आँवलखेड़ा व आगरा के ग्रामीण क्षेत्रों से आगरा नगर में सम्पन्न हुआ व क्-ब्क् में वे मथुरा प्रयाण कर गए। ;इद्ध क्-ब्क् से क्-स्त्रक् तक की तीस वर्ष तक की अवधि जिसमें अखण्ड ज्योति संस्थान एवं गायत्री तपोभूमि की स्थापना हुई। परमवन्दनीया माताजी उनके जीवन में आयीं तीन बार वे क्.क् वर्ष के लिए हिमालय गए। ख्ब् लक्ष के अनुष्ठानों की महापूर्णाहुति सम्पन्न हुई क्-भ्त्त् का ऐतिहासिक सहस्रकुण्डीय महायज्ञ हुआ जो थी गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार बना। इसी अवधि में गायत्री महाविज्ञान लिखा गया एवं आर्षग्रन्थों का आदि से अंत तक भाष्य कार्य सम्पन्न किया गया। युग निर्माण योजना के सूत्रपात से लेकर भारत भर में गायत्री परिवार के शाखाओं की स्थापना इसी अवधि में हुई। ;ईद्ध क्-स्त्रक् से क्−− की अंतिम बीस वर्ष की अवधि जब वे मथुरा से विदाई लेकर हरिद्वार होकर हिमालय चले गए। बाद में क्-स्त्रख् की जून में लौटकर उनने ऋषि परम्परा का बीजारोपण कर गायत्री तीर्थ के रूप में एक सिद्धपीठ की स्थापना का संकल्प लिया। इस अवधि में प्राण-प्रत्यावर्तन से लेकर कल्पसाधना संजीवनी साधनाएँ नारी जागरण वानप्रस्थ युगशिल्पी शिक्षण सत्र सम्पन्न हुए। स्वयं पूज्यवर प्रवासी भारतीयों के लिए संदेश लेकर फ् माह के लिए क्-स्त्रख् के अंत से क्-स्त्रफ् के प्रारंभ तक विदेश यात्रा पर पानी के जहाज से गए। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान व शक्तिपीठ निर्माण की प्रक्रियाएँ नारी जागरण अभियान के अंतर्गत देव कन्याओं की पूरे भारत में प्रव्रज्या एवं प्रज्ञापुराण सृजन जैसा महत्कार्य इसी अवधि में हुआ। सूक्ष्मीकरण साधना में प्रवेश उनने शक्तिपीठ उद्घाटन प्रवास के तुरन्त बाद किया एवं यही भावी निर्धारण का आधार बना। राष्ट्रीय एकता सम्मेलन विराट दीपयज्ञों की क्राँतिकारी शृंखला से लेकर क्रान्तिधर्मी साहित्य का निर्माण इसी अवधि में सम्पन्न हुआ। ख् जून क्−− गायत्री जयन्ती को उनने पूर्व घोषणा के साथ महाप्रयाण किया।

इसी प्रकार क्भ् वर्ष क्भ् वर्ष फ् वर्ष एवं ख् वर्ष के चार खण्डों में उनका अस्सी वर्षीय जीवन बाँटा जा सकता है। पूज्यवर ने अप्रैल क्−− में लिखा कि कोई यह न समझे कि दीप बुझ गया और प्रगति का क्रम रुक गया। दृश्य शरीर रूपी गोबर की मशक चर्मचक्षुओं से दिखे या न दिखे विशेष प्रयोजनों के लिए नियुक्त किया गया यह प्रहरी अगली शताब्दी तक पूरी जागरूकता के साथ अगली जिम्मेदारी वहन करता रहेगा। उपरोक्त पंक्तियों के परिप्रेक्ष्य में यदि हम उनकी स्थापनाओं को पाँच स्थूल शरीरों को समझने का प्रयास करें तो ज्यादा ठीक रहेगा।

युगतीर्थ आँवलखेड़ा.

आश्विन कृष्ण त्रयोदशी विण् संवत् क्-म्त्त् सन् क्-स्त्रक् के ब्रह्ममुहूर्त में एक युग पुरुष इस ग्राम में जो आगरा जिले में आगरा से जलेसर मार्ग पर प्रायः पन्द्रह मील दूरी पर स्थित है जन्मा। पं. रूपकिशोर शर्मा एवं माता दानकुँवरि जी के घर जन्मा यह बालक अपनी लीला बाल्यकाल से ही अमराइयों में सहपाठियों के साथ साधना करने दलित वर्ग के पिछड़े वर्ग के समुदाय में जाकर उनकी सेवा करने के रूप में दिखाने लगा। हिमालय की तीव्र पुकार एक दिन घर से भगाकर काठगोदाम तक ले गए जहाँ से संबन्धी वापस ले आए। क्ख् वर्ष की आयु में मदनमोहन मालवीय जी से दीक्षा लेकर गायत्री ब्राह्मण को कामधेनु है का शिक्षण प्राप्त कर बालक श्रीराम ने क्भ् वर्ष की आयु में अपनी मार्गदर्शक सž से साक्षात्कार किया एवं जीवन की राह गन्तव्य अपना वास्तविक स्वरूप सभी का बोध हो गया।

आज जहाँ पर एक भव्य स्मारक ग्रेनाइट के एक चबूतरे एक विराट कीर्ति स्तंभ तथा जीव सागर के चौदह पृष्ठों रत्नों के रूप में ग्रेनाइट पर अंकित सुनहले पृष्ठों की शब्दावली के रूप में अंकित विद्यमान है यहाँ कभी एक भव्य हवेली थी। इसी के एक कक्ष में गुरुदेव का जन्म हुआ था। ठीक उसी स्थान पर एक चबूतरा बनाया गया है जहाँ नित्य हजारों व्यक्ति आकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में जहाँ सक्रियता से कार्य किया गया बैठकें की गयीं दविश पड़ने पर भागने के लिए गुप्त मार्ग बनाया गया. वह स्थान अब पुनः वैसा ही बना दिया गया क्योंकि कालक्रम के साथ भारी बरसात में यह ढह गया था। अपने ही हाथ से रोपा गया एक नीम का पेड़ व हाथों से खोदा मीठे पानी का कुआँ इसी परिसर में स्थित है उनकी याद बराबर दिलाता है। ख् बीघे से अधिक जमीन उनने आँवलखेड़ा से आगरा आने पर गरीबों में बाँट दी एवं एक भाग पर माताजी के नाम माँ दानकुँवरि इंटर कालेज स्थापित किया गया। क्-म्फ् से यह सक्रिय है व न जाने कितने बालक सुशिक्षित हो निकल चुके हैं। आगरा से मथुरा व मथुरा से हरिद्वार आने तक पूज्यवर ने जन्मभूमि को अधिक महत्व न दिया किन्तु शिष्यों एवं वंदनीया माताजी के आग्रह पर वे एक बार क्-स्त्र-त्त् में गाँव गए एवं जाने के बाद वहाँ एक गायत्री शक्तिपीठ एक कन्या इंटर कालेज एवं एक चिकित्सालय की रूपरेखा बनायी। गायत्री शक्तिपीठ अब एक विराट आकार ले चुका है एवं आसपास के प्रायः क्त्त् मील की परिधि तक के व्यक्तियों के लिए संस्कारित सिद्धपीठ है। इसी परिसर में स्थापित इंटर कालेज अब कन्या डिग्री कालेज बन गया है जो कि पूज्यवर का स्वप्न था।

क्-भ् की अर्द्धमहापूर्णाहुति जिसमें प्रायः साठ लाख लोगों व राजतंत्र से लेकर संस्कृति प्रबुद्ध वर्ग की प्रतिभाओं ने भागीदारी की एक ऐतिहासिक आयोजन बनकर रह गया। नवंबर माह कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित इस आयोजन से गायत्री परिवार ने एक नई करवट ली है। पिछले दिनों फ् बिस्तरों का एक सामुदायिक चिकित्सा केन्द्र यहाँ आरंभ हो चुका है। इसे एक आदर्श ग्राम घोषित किया गया एवं सभी योजनाएँ यहीं सक्रियता से चल रही हैं। एक स्वावलंबन विद्यालय एवं जड़ी-बूटी शोध संस्थान की स्थापना शक्तिपीठ परिसर में अभी होनी है। यह पूज्य गुरुदेव का प्रथम शरीर है। यहाँ से आगरा फ्रीगंज होकर वे मथुरा पहुँचे।

अखण्ड-ज्योति संस्थान

अखण्ड-ज्योति संस्थान घीयामण्डी मथुरा-क्-ख्ब् में प्रज्ज्वलित अखण्ड-ज्योति दीपक के साथ पूज्य गुरुदेव आगरा से मथुरा आए। दो तीन मकान बदलने के बाद वे वर्तमान मकान में जिसे भुतहा करार दिया गया था। पूज्यवर को यहाँ से अपनी प्राणचेतना के विस्तार हेतु अखण्ड ज्योति पत्रिका के प्रकाशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना था। क्-फ्त्त् में प्रारंभ की गयी किन्तु व्यवस्थित रूप में बसंत पंचमी क्-ब् में फ्रीगंज आगरा से आरंभ की गयी यह पत्रिका श्हैण्डशेड् कागज पर पैर से चलाने वाली मशीनों पर छपने लगी। छोटी−छोटी किताबें भी लागत मूल्य पर छापी जाने लगीं। प्रेम की पाती पत्रिका व पूज्यवर की चिऋयों के माध्यम से जन−जन तक जाने लगी। यह व्यक्तिगत स्पर्श जो पूज्यवर एवं वंदनीया माताजी द्वारा स्नेह भरे आतिथ्य के रूप में दिया गया. गायत्री परिवार की स्थापना का मूलभूत आधार बना। प्रारंभिक स्तर पर मिशन की नींव के पत्थर के रूप में ढेरों कार्यकर्ताओं ने यहीं आत्मीयता भरा प्रसाद माताजी से एवं जीवन. विद्या का शिक्षण पूज्यवर से पाया है। पूर्व में एक छोटे से भवन में आरंभ यह संस्थान जिसने गायत्री महाविज्ञान जैसा गायत्री महाविद्या पर एनसाइक्लोपीडिया पर प्रकाशन किया आज एक विराट रूप ले चुका है। वह कोठरी जहाँ पूज्य गुरुदेव ने अपना अखण्ड दीपक रखा वंदनीया माताजी ने जिसकी रक्षा की एवं पूज्यवर ने कठोर तप-साधना की वैसी ही अन्दर से रखकर बाहर से सुरक्षित ढाँचे से ढंक दी गयी है। अभी भी सैकड़ों व्यक्ति इस ऊर्जाकेन्द्र के दर्शन को नित्य आते हैं। जहाँ अखण्ड ज्योति पत्रिका का कार्यालय था वह अब एक विशाल पत्राचार कार्यालय ही नहीं साढ़े पाँच लाख से अधिक संख्या में प्रकाशित अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्रकाशन वितरण केन्द्र है। कभी यहीं पर गायत्री तपोभूमि के निर्माण की वहाँ चलने वाले सत्रों की एवं क्त्त् कुण्डीय यज्ञ ;क्-भ्त्त्द्ध की रूपरेखा बनी थी। अब यहाँ वाङ्मय जो पूज्यवर की लेखनी साधनामृत अमृतवाणी एवं सूक्तियों के संग्रह के रूप में क्त्त् ब्रिटेनिका साइज के विश्वकोश आकार के खण्डों में प्रकाशित हुआ है का कार्यालय भी है। यह पूज्यवर का दूसरा स्थूल शरीर है।

गायत्री तपोभूमि

गायत्री तपोभूमि वृन्दावन मार्ग मथुरा दुर्वासा ऋषि की तपःस्थली यह पावन स्थापना परमपूज्य गुरुदेव की चौबीस लक्ष की चौबीस महापुरश्चरण पूर्णाहुति पर विनिर्मित की गयी थी। ख्ब् तीर्थों के जल व रज को संग्रहित कर अखण्ड अग्नि को स्थापित कर गायत्री महाशक्ति का एक मंदिर यहाँ विनिर्मित किया गया। यहीं बैठकर पूज्यवर ने गायत्री परिवार रूपी विराट वटवृक्ष का बीजारोपण सतत् जनसंपर्क लोकशिक्षण के माध्यम से किया। क्-भ्फ् में यह स्थापना हुई। क्-भ्म् में यहाँ नरमेध यज्ञ हुआ। जीवन दानी कार्यकर्ताओं के आने का क्रम इसी के बाद आरंभ हुआ। क्-भ्त्त् में यहाँ से सहस्रकुण्डीय विराट गायत्री महायज्ञ की योजना बनायी। प्रायः छह लाख से अधिक कार्यकर्ता यहाँ आए एवं एक सुव्यवस्थित गायत्री परिवार की आधारशिला रख दी गयी। हिमालय प्रवास से लौटकर परमपूज्य गुरुदेव ने युगनिर्माण योजना की घोषणा यहीं से क्-म्ख् में की। शतसूत्री कार्यक्रम के साथ एक सत्संकल्प की घोषणा भी की गयी। छोटे ट्रैक्ट गायत्री यज्ञ की प्रेरणाओं से लेकर क्रान्तिकारी चेतना का संवाहक साहित्य यहीं लिखा गया। मुद्रण हेतु यहाँ एक व्यापक प्रकाशन तंत्र बनाया गया। साथ ही एक स्वावलम्बन विद्यालय भी विनिर्मित हुआ जिसमें बालकों को रोजगार परक अनौपचारिक शिक्षा दी जाती है। यह अभी भी सफलतापूर्वक कुशल मार्गदर्शन में चल रहा है। क्-भ्फ् से क्-स्त्रक् तक परमपूज्य गुरुदेव की कर्मभूमि यही स्थान रहा है। पूज्यवर की विद्या-विस्तार योजना को पूरे भारत में फैलाने हेतु यह संस्थान सक्रिय है। एक विराट सम्मेलन में परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवन्दनीया माताजी को क्स्त्रए क्त्त्ए क्-ए ख् जून क्-स्त्रक् के ऐतिहासिक मर्मस्पर्शी आयोजन में हिमालय तप-साधना हेतु विदाई दी गयी। वंदनीया माताजी के लिए शाँतिकुँज हरिद्वार निर्धारित हो चुका था। पूज्यवर दुर्गम हिमालय चले गए जहाँ से वे हरिद्वार वापस क् वर्ष बाद लौटे। पुनः मथुरा लौटकर न जाने का संकल्प उनने अंत तक निभाया। जिनके कंधों पर गायत्री तपोभूमि संभालने का दायित्व सौंपा गया था उनके माध्यम से एक भव्य निर्माण अब वहाँ हो चुका है। एक विराट प्रज्ञा नगर के साथ विद्यालय की बड़ी इमारत है। साहित्य प्रकाशन हेतु कंप्यूटर्स से लेकर आधुनिकतम तकनीक वाली मशीनें यहाँ पर हैं। पिछले दिनों गायत्री जयन्ती पर यहाँ प्रखर प्रज्ञा सजल श्रद्धा के रूप में ऋषियुग्म के स्मारकों की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा भी एक भव्य समारोह के माध्यम से हो गयी है। इसे परमपूज्य गुरुदेव का तीसरा स्थूल शरीर कहा जा सकता है।

शाँतिकुँज

शाँतिकुँज गायत्रीतीर्थ हरिद्वार अखण्ड दीप परमवन्दनीया माताजी के साथ ही शाँतिकुँज हरिद्वार आ गये जो कि सप्त सरोवर क्षेत्र में उस स्थान पर विनिर्मित किया गया था जहाँ कभी ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की तपस्थली थी। यह निर्माण पूज्यवर ने भूमि का चयन कर क्-म् में ही आरम्भ करा दिया था। परमपूज्य गुरुदेव की हिमालय तप साधना की अवधि में ही परमवन्दनीया माताजी के साथ चौबीस कुमारी कन्याओं द्वारा अखण्ड दीपक के समक्ष ख्ब् करोड़ गायत्री मंत्र जप का अनुष्ठान आरंभ कर दिया गया। इसी के साथ नारी जागरण अभियान की आधारशिला रखी गयी। पूज्यवर के एक वर्ष बाद हिमालय से लौट कर आने पर प्राण−प्रत्यावर्तन सत्रों की शृंखला चली। साधकों में प्राणऊर्जा का संचार कर गुरुदेव ने उन्हें भविष्य में महती भूमिका निभाने की प्रेरणा दी। धीरे−धीरे शान्तिकुँज विराट रूप लेने लगा। वानप्रस्थ सत्र लेखन सत्र कल्पसाधना सत्र जीवनसाधना सत्र महिला जागरण सत्र आदि के आयोजन व पूज्यवर की लेखनी के निकलने वाली ऊर्जा ने ऋषि परम्परा के बीजारोपण हेतु स्थापित इस तीर्थ में साधकों शिष्यों के आने का क्रम जारी रखा। स्थान की आवश्यकता पड़ने पर गायत्री नगर की स्थापना की गयी। क्-स्त्रत्त् में स्थापित यह विराट कैंपस अब प्रशिक्षण अकादमी का स्वरूप ले चुका है। यहाँ पूज्यवर ने देव परिवार में बसने हेतु जागृतात्माओं का आह्वान किया। ऐसे व्यक्ति आते चले गए। सप्तर्षियों की मूर्तियों की स्थापना के साथ यहाँ संस्कार संपन्न होने लगे। एक नौकुण्डीय यज्ञशाला बनी। इस प्रकार यह एक समर्थ गायत्रीतीर्थ के रूप में स्थापित हो गया।

दुर्लभ वनौषधि उपवन से लेकर प्रायः पाँच हजार व्यक्तियों के रहने योग्य स्थान एक आँवजर्वेटरी के साथ देवात्मा हिमालय की प्रतिमा की स्थापना तथा एक साथ दो से तीन हजार व्यक्ति एक साथ भोजन कर सकें ऐसा माँ भगवती अन्नपूर्णा भोजनालय यहाँ की विशेषता है। निःशुल्क चिकित्सा परामर्श से लेकर संस्कारों की व्यवस्थाएँ भोजन प्रसाद बिना किसी जाति या ऊंच-नीच छोटे-बड़े के भेद के सभी के लिए उपलब्ध है। प्रायः डेढ़ हजार सुशिक्षित कार्यकर्ता यहाँ रहते हैं। सरकारी संस्थानों विभागों के व्यक्तित्व परिष्कार जीवनसाधना सत्र यहाँ चलते हैं। − दिवसीय ऊर्जा अनुदान सत्र सतत् चलते हैं। एक माह के युगशिल्पी सत्रों में कार्यकर्ताओं को स्वावलंबन से लेकर लोकशिक्षण की प्रक्रिया में प्रशिक्षित किया जाता है। कंप्यूटरों से सज्जित विशाल पत्राचार केन्द्र. सारे भारत व विश्व भर के गायत्री परिजनों के संगठनात्मक सुनियोजन का तंत्र आधुनिकतम आडियो-वीडियो एडीटिंग यूनिट से सज्जित इलेक्ट्रानिक मीडिया विभाग एवं शान्तिकुँज फार्मेसी ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्हें देखने-सुनने लाभ उठाने हजारों व्यक्ति नित्य यहाँ आते हैं। मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन द्वारा हिमालय स्मृति भवन में आत्मदेवता की साधना से लेकर पर्यावरण जाग्रति एवं हिमालय की सूक्ष्म चेतन सž का साक्षात्कार का लाइट साउण्ड शो जैसी विलक्षणता अन्यत्र कहीं नहीं है। अखण्ड दीप का प्रात ब्राह्ममुहूर्त में दर्शन परखरपरगया सजल श्रद्धा रूपी भव्य स्मारक यहाँ पूज्यवर एवं वंदनीया माताजी के स्थूलशरीर को अग्नि दी गयी थी एवं जिनके स्मृति चिह्न वहीं स्थापित हैं के समीप बैठकर ध्यान शान्तिकुँज की आध्यात्मिक ऊर्जा में स्नान करने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के समान है। गंगा यहाँ से मात्र ब् मील दूरी पर बहती हैं। इक्कीसवीं सदी की गंगोत्री से प्रसिद्धि यह स्थान गुरुदेव का चौथा स्थूल शरीर कहा जा सकता है।

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान सप्तसरोवर हरिद्वार विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय को संकल्पित यह स्थान परमपूज्य गुरुदेव द्वारा महर्षि कणाद की तपःस्थली में स्थापित सप्त सरोवर में बह रही गंगा की सात धाराओं के सामने शान्तिकुँज से लगभग क्ध्ख् किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसका शुभारंभ क्-स्त्र में हुआ था। परमपूज्य गुरुदेव इसे भविष्य के धर्म की स्थापना हेतु विनिर्मित अपना मस्तिष्क कहा करते थे। तीन मंजिलों का यह भवन अपनी स्थापत्य कला के कारण सभी को आकर्षित करता है। मध्य में यज्ञशाला बनी हुई है जहाँ सतत् वनौषधि यजन प्रक्रिया पर वैज्ञानिक अनुसंधान चल रहा है। यज्ञोपैथी नाम से लोकप्रिय विधा यहीं से प्रचलित हुई है। प्रथम तल पर गायत्री की चौबीस मूर्तियाँ हैं। प्रत्येक के साथ बीज मंत्र यंत्र व उनकी फलश्रुतियाँ लगाई गयी हैं। द्वितीय तल पर चौबीस कमरों में एक विशाल प्रयोगशाला बनी हुई है। रक्त विश्लेषण से लेकर शरीर के विभिन्न एन्जाइम हारमोन्स काया व मन की विद्युत पर मंत्रशक्ति योग साधनाएँ आहार प्रार्थना यज्ञ प्राणायाम आदि के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण अध्ययन करने का एक व्यापक तंत्र यहाँ आधुनिकतम उपकरणों के माध्यम से बनाया गया है। शान्तिकुँज में साधक ठहरते हैं व उनका माह में दो बार परीक्षण होता है। नित्य साधकों पर विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक प्रयोग भी यहाँ संपन्न होते रहते हैं। तीसरी मंजिल पर ब्भ् से अधिक ग्रन्थों वाली एक विशाल लाइब्रेरी है। विश्व भर में वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर हुए कार्य शोध प्रबन्ध प्रकाशित पत्रिकाओं का यहाँ संकलन है। कई दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ यहाँ हैं। वेद उपनिषद् एवं विश्व भर के वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहता है। इसे पूज्य गुरुदेव का स्थूल शरीर माना जा सकता है।

इस परिचय मात्र से ही किसी को अनुमान हो सकता है कि परमपूज्य गुरुदेव. माताजी का व्यक्तित्व कर्तृत्व कितना विराट रहा होगा। वे जो भी कुछ स्थापनाएं कर गए आज सारे भारतवासियों विदेश के संस्कृति प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। यदि इन पाँच स्थापनाओं पाँच स्थूल शरीरों के साथ वे सभी स्थापनाएं जोड़ ली जाएँ जो क्षेत्र में फैले भारतवासी शक्तिपीठों के तंत्र के रूप में विद्यमान है तो हिमालय के समान एक गगनचुम्बी व्यक्तित्व के रूप में ऋषियुग्म की सž का बोध होता है। ऐसी महान गुरुसत्ता के हम लीला सहचर रहे हैं यह सोच-सोचकर ही मन प्रमुदित होता रहता है।


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