अपना दीप जलाओ (kavita)

December 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अपना दीप जलाओ साथी, करो ज्योति अगवानी। साथी करो ज्योति अगवानी॥

अन्धकार के पाँवह न पूजो, अपनी ज्योति उतारो, श्री प्रकाश के पुँज, जागकर अपनी ओर निहारो।

तुम जागे हो नहीं, इसी से, छाया छद्म अँधेरा, जब प्रकटेगा सूर्य तुम्हारा, होगा नया सवेरा।

तुम सविता के पुत्र तेज की तुमको मिली जवानी। साथी करो ज्योति अगवानी॥

सूर्य सुतों की क्षीण तपस्या, तभी रात ने घेरा, बना अरुणोदय के घर में, है क्या चीज अँधेरा?

काला कौन पहनकर निकला, क्या आलोक निराला, तुम से समझौता कर बैठा क्या सुर−लोक−उजाला?

है अचरज की बात, प्रातः से रात करे मनमानी। भावी करो ज्योति अगवानी॥

सूरज की जिम्मेदारी है हँसता और रचाये, किरणों डडडड दर्शन है, कण−कण को महकाये।

सूरज को भगवन बनाती हँसता मिल ऊषायें, फूल−फूल मुस्कान बिखेरे आती मिले दिशायें।

प्राण बरसती पवन उतार भूपर सुरभि सुहानी। साथी करो ज्योति अगवानी॥

तन−मन जीवन स्वच्छ,तुम्हारा है प्रकाश का गीता, गंगा−गायत्री माता, डडडड देवी सावित्री सीता।

देव शक्ति ने सदा समय है, सुशक्ति हो जीता, शान्ति−साधना−चिरसंगिनी बना रही क्रान्ति परिणीता

कण−कण के आलोक पिलाती है जीवन्त कहानी। अपना दीप जलाओ, साथी करो ज्योति अगवानी॥

—माखन सिंह भदौरिया, सौमित्र,

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles