स्वप्नों की निरर्थकता और सार्थकता

December 1982

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सपनों के सम्बन्ध में शरीर शास्त्री इतना ही कह सकते हैं कि वे अधूरी नींद की परिणति होते हैं। गहरी नींद आये तो कोई सपना न दीखे। अपच रहने, दर्द सूजन बुखार आदि होने, मच्छर खटमल, दुर्गन्ध आदि के कारण जब नींद टूटती रहती है तो उसी उनींदी स्थिति में मस्तिष्क सुव्यवस्थिति रूप से कुछ सोचने लगता है। उन्हीं टुकड़ों की शृंखला स्वप्न बन जाती है।

मनोविज्ञानी इसे अचेतन मन का क्रीड़ा कल्लोल कहते हैं। जागृत मन, सचेतन मस्तिष्क दैनिक कार्य व्यवहार में कल्पना करता और काट−छाँट करते हुए बुद्धि संगत निर्णय लेता है। उस अवधि में कोई प्रिय व अप्रिय परिस्थिति मन पर गहरा प्रभाव छोड़े तो सोते समय उसी प्रसंग को उलटा−सीधा व्यक्त करने वाले सपने आने लगते है। अपनी इच्छाएँ, आशंकाएँ भी सपनों में व्यक्त होती हैं। इसके अतिरिक्त एक गहरी परत अचेतन मन की है जिसमें संचित स्मृतियाँ, आदतें, इच्छाएँ, मान्यताएँ, कबाड़ियों के गोदाम की तरह जमा रहती है। वे अनुकूल अवसर ताकती रहती हैं और जब भी दाव लगता है चिन्तन को दृश्य में बदल लेती हैं। यह सपने लाक्षणिक होते हैं। उनमें मनःसंस्थान की स्थिति का पहेली बुझो डाल जैसा संकेत रहता है। विज्ञजन उसका अर्थ लगाते हैं। चिकित्सा शास्त्री सपनों के आधार पर शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण स्वरूप खोजते हैं। कुछ के लिए यह बिना पैसे का सिनेमा हैं।

यह मोटी मान्यताओं की—सामान्य समाधानों की घिसी−पिटी जानकारी है। इसमें आगे की रहस्यपूर्ण गुत्थियाँ तब उत्पन्न होती हैं जब कई सपने पिछले दिनों घटित हुई किसी अविज्ञात घटना का यथावत् परिचय देते हैं। उसी समय जो किसी दूर देश में घटित हो रहा है उससे सही रूप में परिचित कराते हैं। जहाँ तार, बेतार के संचार साधन मौजूद नहीं हैं वहाँ कुछ स्वप्न सन्देश वाहक का काम करते देखे गये हैं। इतना ही नहीं कुछ स्वप्नों में भावी सम्भावनाओं का पूर्वाभास भी होता है। उस समय तो सही गलत होने का कोई प्रमाण नहीं होता किन्तु समय आने पर जब वे स्वप्न सूचनाएँ भविष्यवाणी की तरह घटित होती हैं तो प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र से किसी ऐसी शक्ति का भी सम्बन्ध सूत्र जुड़ा है जो अदृश्य और भविष्य का निर्धारण संचालन करती है।

आत्मवेत्ता इसका समाधान इस प्रकार करते हैं कि सूक्ष्म शरीर में अतीन्द्रिय क्षमताएँ भरी पड़ी हैं। वे अभ्यास से दिव्य दृष्टि के रूप में अविज्ञात को जानती, अदृश्य को देखती हैं, पर सपने में उस क्षेत्र को बिना किसी प्रयास के ही ऐसा अवसर कभी−कभी मिल जाता है जिसमें दिव्यताएँ उन अनुभूतियों का सहज लाभ ले सके जा योनियों और सिद्ध पुरुषों में देखी पाई जाती हैं। चेतना की एक और भी गहरी परत है जो कारण से सम्बन्धित है इसमें मनुष्य की अपनी चेतना से बहुत ऊँचे उठकर दैवी जगत के साथ सम्बन्ध जोड़ने की क्षमता है। उसे जब जितना सुअवसर मिलता है वह उच्चस्तरीय शक्तियों के साथ सम्बन्ध साध लेती हैं और उनके अहेतुकी अनुग्रह से लाभान्वित एवं कृत−कृत्य होती है।

ऐसे सार्थक, सारगर्भित सपने कभी−कभी—किसी−किसी को ही आते हैं। अधिकाँश मनःक्षेत्र निरर्थक सपनों का ही जाल−जंजाल बुनता रहता है। सार्थक अवश्य होता है कि दिव्य दर्शन का भी स्वप्न लोक के साथ सघन सम्बन्ध जुड़ा हुआ है।

“दि न्यू फ्रान्टियर्स ऑफ माइण्ड” में उसके लेखक श्री जे.बी. राहन ने दूरदर्शन के तथ्यों का वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके संकलन किया है—एक घटना के सम्बन्ध में लिखा है कि उनके पड़ौस के एक सज्जन की धर्म−पत्नी ने एक रात को स्वप्न देखा कि वहाँ से बहुत दूरी पर रहने वाला उसका भाई घोड़ा गाड़ी से खलियान जाकर मचान पर चढ़कर अपनी पिस्तौल की गोली से आत्म−हत्या कर लेता है और भूसे के ढेर पर लुढ़क पड़ता है। स्त्री घबड़ा गई और अपने पति के साथ भाई के गाँव गई तो खलियान में जाकर पाया कि उसके भाई की मृत्यु ठीक वैसे ही हुई जैसा कि उसने स्वप्न में देखा था।

सन् 1774 में न डाक तार का कोई प्रबन्ध था न यातायात का साधन। इटली के पादरी अलोफोन्सा लिगाडरी ने अर्धतन्द्रित अवस्था में दिवा स्वप्न देखा कि रोम के बड़े पोंप नहीं रहे। उन्होंने यह बात अपने शिष्यों और साथियों को बताई वे इसे निराधार समझते रहे। कुछ ही दिन बाद समाचार मिला कि अलोफोन्सा ने जिस दिन यह घटना सुनाई उसी दिन बड़े पोप चल बसे।

“वाशिंगटन हैराल्ड” की संचालिका स्वर्गीय इलेग्नर मेरिट एक मध्याह्न विश्राम करने के लिए झपकी ले रही थीं। कि उन्हें दिखाई पड़ा कि उनके पति कैसी पास में खड़े हैं अचानक उन्होंने देखा कि वे गायब हो गये। वे विस्मय में पड़ गई क्या करें। दफ्तर गई जहाँ लोगों को स्वप्न सुनाया सबने साधारण माना। किन्तु दूसरे दिन तार आया कि उनके पति की अचानक मृत्यु ठीक उसी समय हुई जब वे स्वप्न देख रही थीं।

फ्राँसिस्को रूसो व्यापार के सिलसिले में कुछ दिनों में बाहर गया था और पत्नी एमेलिया रूसो घर में अकेली थी। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि उसके बड़े खाली कमरे में पड़ा हुआ है और उस शव पर एक युवती बैठी हुई है। यह देखकर एमेलिया चीख निकल गई और उसे लगने लगा कि उसके पति को कुछ हो गया है। तीन दिन बाद जब उससे न रहा गया तो वह पुलिस अधिकारियों के पास पहुँची। आरम्भ में पुलिस अधिकारियों ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु कुछ ही दिन बाद रोम से 50 किलोमीटर दूर तक दुर्घटनाग्रस्त कार में फ्रांसिस्को का शव मिला।

शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह सिद्ध हो गया कि फ्राँसिस्को की मृत्यु दुर्घटना के कारण नहीं विष देने के कारण हुई है। इसके बाद तो एमेलिया द्वारा देखे गए स्वप्न तथा उसके बारे में और अधिक पूछताछ करने के बाद उस स्त्री को गिरफ्तार किया जा सका जिसने फ्रांसिस्को की हत्या की थी। उस स्त्री को देखते ही एमेलिया ने पहचान लिया कि स्वप्न में यही स्त्री शव पर बैठी थी।

अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपनी मृत्यु से तीन चार दिन पहले जो स्वप्न देखा था वह “वार्ड लेमन” जो उनकी जीवनी लिख रहे थे को सुनाया किन्तु वार्ड लेमन ने उसे साधारण स्वप्न कहकर टाल दिया। लिंकन ने बताया कि “गत रात मैं ह्वाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति के निवास) में चारों ओर घूमा किन्तु सभी कमरे खाली पड़े देखे। तभी पूर्वी भाग से कुछ लोगों के रोने की आवाज सुनाई दी जहाँ जाकर देखा तो पाया कि वहाँ मेरे परिवार के सदस्य, दूसरे राजनयिक, भी है। कौतूहलवश मैंने पूछा यह शव किसका है? उनमें से एक आकृति ने मेरी ओर देखकर कहा—राष्ट्रपति की हत्या कर दी गई है और यह शव उन्हीं का है। इतना सुनते ही मेरी नींद टूट गई। अतः इस स्वप्न का मेरे जीवन से कोई घनिष्ठ सम्बन्ध है। वार्ड लेमन ने उक्त घटना को शीघ्र लिपि में लिपिबद्ध तो कर लिया किन्तु अँध विश्वास समझ कर कोई विशेष ध्यान अथवा चौकसी का प्रबन्ध या सुझाव भी नहीं दिया। ठीक तीसरे दिन उन्हीं परिस्थितियों में जो स्वप्न में लिंकन ने बताई थीं, उनकी हत्या कर दी गई, तब से आज तक यह प्रसंग राष्ट्रपति लिंकन की जीवनी के साथ जुड़ा है। और आज तक इसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या भी नहीं की जा सकी।

सन् 1765 की बात है। वाय जैन्टियम के जेलखाने में बन्द एक कैदी ने सपना देखा कि वह उस देश की महारानी का प्रेम पात्र बन गया है। कैदी ने सपना पहरेदार को बता दिया। पहरेदार ने रिपोर्ट राजा से करदी। राजा ने उसे मृत्युदण्ड दिया पर रानी ने सपने के कारण फाँसी देने की बात को अनुचित बताकर राजा से उसे क्षमादान करा दिया।

संयोग की बात दो वर्ष बाद राजा कान्स्टेटाइन दशम की मृत्यु हो गई। कुछ सिलसिला ऐसा चला कि जेल से छूटे कैदी सैनिक रोमेनस के साथ रानी का प्रेम−बन्धन ही नहीं बना उसने उससे विवाह भी कर लिया। फलतः वह सम्राट बना और रोमेनस चतुर्थ डायोजानेस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फ्रांसीसी क्रान्ति के नेताओं में से एक था— जीनपीशना। उसे बचपन से ही एक डरावना सपना आता है कि उस की मित्र मंडली पर हिंसक जानवरों का झुण्ड टूट पड़ता है वह मित्रों के सहित उस दुर्घटना में समाप्त हो जाता है। यह सपना अनेक बार उसने देखा और हर बार मित्र संबंधियों को सुनाया।

संयोग कुछ ऐसा बना कि जून सन् 1764 में एक यात्रा पर जाते हुए भूले−भेड़ियों का झुण्ड उसकी मंडली पर टूट पड़ा और वे सभी उसी प्रकार मारे गये जैसा कि सपने में दीख पड़ता था।

इंग्लैंड के बोस्टन नगर के समाचार पत्र “वोस्टन ग्लेख” में 28 अगस्त 1883 के अंक में एक भयंकर समाचार छपा कि “एक समुद्री द्वीप ‘प्रालेप’ में महाभयंकर ज्वालामुखी फटा और उसने उस क्षेत्र का समुद्र में असाधारण कुहराम मचा दिया।

छपने के बाद यह जाँच−पड़ताल हुई कि वह समाचार इतनी जल्दी कैसे प्राप्त हुआ? जबकि उन दिनों तार बेतार जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर उस विस्फोट का पूरा विवरण क्या है?

पूछताछ अखबार के समाचार सम्पादक से हुई। उनने हड़बड़ाते हुए इतना ही कहा कि रात को वह दफ्तर में ही सोया हुआ था। अचानक वह भयंकर उसे सपना दिखा। उनींदी स्थिति में उसे चेत किया और पता लगाने के लिए सुरक्षित रखे जाने वाले स्थान पर रख दिया। दुबारा नींद आई और वह सो गया। दूसरे संपादक ने उसे विश्वस्त समाचार समझा और विस्तारपूर्वक मुख पृष्ठ पर छाप दिया।

प्रतिष्ठित अखबार के लिए ऐसे बेबुनियादी समाचार छापना बड़ी लज्जा की बात थी। दिन भर संसार भर से बेतार द्वारा पूछताछ चलती रही कि वैसा कहीं कुछ हुआ है क्या। दूसरे दिन वह समाचार सही निकला। अखबार में पहले दिन वह समाचार गलत होने की क्षमा याचना पाठकों से की। किन्तु दूसरे दिन फिर उस क्षमा याचना को छापा कि समाचार सपने के माध्यम से मिला होने पर भी अक्षरशः सही निकला। मात्र उस द्वीप के नाम से ही एक दो अक्षरों का अन्तर पाया गया।

कई सपने बड़े प्रेरणा प्रद सिद्ध हुए हैं। उनने इतना उत्साह प्रदान किया कि देखने वालों ने उसे संकल्प की तरह अपनाया और असम्भव जैसा लगने पर भी पूरा करके ही दम लिया।

फ्राँस के एक ग्रामीण डाकखाने का पोस्ट मैन प्रायः 20 मील रोज चलता था। उसी कठोर परिश्रम से उसका परिवार पलता था। एक दिन उसने सपना देखा कि उसने पास के पहाड़ की चट्टानें काट कर एक भव्य उसका नाम पैलाइस आइडियले रखा गया।

सपने से वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने बचे समय में वैसा ही भवन अपने हाथों बनाने का निश्चय कर लिया। वह जुट पड़ा और अपनी सारी पूँजी और मेहनत लगा कर लगातार 33 वर्षों के परिश्रम से उस सपने को साकार कर दिया। हैटोराइव—फ्राँस का वह स्वप्न महल अभी भी दर्शकों के लिए कौतुक और आकर्षक का विषय है।

ये समस्त प्रसंग एक ऐसे अदृश्य लोक का वर्णन करते हैं जो मानवी मन के रूप में हम सबके अन्दर विद्यमान है। स्वप्नों में पूर्वाभास से लेकर महत्वपूर्ण गुत्थियों के समाधान मिलते रहे हैं। परामनोविज्ञान का यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ समष्टि एवं व्यष्टि मन के परस्पर आदान−प्रदान का लीला सन्देह चलता रहता है। मस्तिष्क के शान्त प्रसुप्त पड़े क्षेत्रों की निद्रा की स्थिति में जागृति यही सम्भावना बताती है कि प्रयासपूर्वक साधना पराक्रम से उन्हें जगाकर व्यक्तित्व−दैवी क्षमता सम्पन्न भी बना जा सकता है। अध्यात्म क्षेत्र की विज्ञान को चुनौती के रूप में स्वप्न विद्या का यह क्षेत्र इतनी असीम सम्भावनाओं से भरा है जिसकी कोई परिधि सीमा नहीं।


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