अयशः प्राप्यते येन येन चायगति भवेत्। स्वर्गाच्च भ्रश्यते येन तर्त्कमन समाचरेत॥
जिसके करने से अयश प्राप्त हो तथा जिस कर्म से बुरी गति हो और जिस कार्य से र्स्वग से भ्रष्ट हो उस कर्म को कभी नहीं करना चाहिए।