युग-सन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त-प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में

March 1980

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युग सन्धि की अवधि में कितनी ही उथल पुथल होने की सम्भावना है। इस सर्न्दभ में प्रख्यात ज्योतिषियों ने कुछ महत्वपूर्ण अभिमत व्यक्त किये हैं। इनमें से कई समयानुसार सही सिद्ध हो चुके। कुछ ऐसे हैं जिनका सम्बन्ध भविष्य से है। कुछ अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से सम्बन्ध रखते हैं कुछ भारत से। समय आने पर यह विदित होगा कि भूत काल की तरह उनके भविष्य कथन भी सही सिद्ध होते हैं या नहीं।

इन कथनों में से जिनका भारत से सीधा सम्बन्ध हैं उन्हें देखते हुए इस नतीजे पर पहुँचना पड़ता है कि अगले दिन भारी कठिनाइयों के हैं। इन से भारत को भी बहुत कुछ सहना पड़ेगा साथ ही एक तथ्य यह भी उभर कर आता है कि समस्त विश्व को नया प्रकाश देने और सृजनात्मक सत्प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनाने में भारत की भूमिका असाधारण रहेगी। भूतकाल में भी विश्वशान्ति के लिए, मानवी प्रगति एवं समृद्धि के लिए भारत ने बहुत कुछ किया है। अब फिर उसी की पुनरावृत्ति होने जा रही है। यहाँ की ऋषि कल्प आत्माएँ प्राचीन काल की तरह लोक कल्याण के लिए बहुत कुछ करने की तैयारी में जुटी हुई हैं। समय बतायेगा कि इन प्रयासों के फलस्वरुप सृजन को कितना बल मिला और संकटों को टालने में इस तत्परता ने कितना चमत्कार उत्पन्न किया। इस सर्न्दभ में प्रख्यात ज्योतिर्विदों के कुछ कथन चीने प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

सितम्बर 72 में दुनिया के प्रमुख ज्योतिषियों का एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में ऐसे ज्योतिषी सम्मिलित हुये थे जिनकी 80 प्रतिशत से भी अधिक भविश्यवाणियाँ सही निकलती रही हैं। कोरिया ने स्यूत नगर में सम्पन्न हुए इस सम्मेलन में 104 भविष्यवक्ता सम्मिलित हुए थे, सबने आम सहमति से, अपने ज्योतिष ज्ञान के अनुसार जो भविष्य कथन कहे, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, सन् 1984 के आसपास अमेकरका और रुस में यु़द्ध तो होगा किन्तु सन् 1984 के पूर्व इस बात की कोई सम्भावना नहीं है। यह युद्ध ‘विश्वयुद्ध हो सकता है।

“आज जो राष्ट्र महाशक्तियों द्वारा विभक्त कर लिए गये हैं, जैसे जर्मनी, कोरिया और वियतनाम वह भविष्य में पुनः संयुक्त हो जायेंगे, उनकी सरकारों दो न होकर एक होगी राष्ट्रवादी और आह्यशक्तियों के दबाव में आये बिना, काम करने वाली होगी,।

“व्यापार, धन-धान्ध, कृषि, गौ विद्या, विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र का एशियाई प्रभुत्व भारतवर्ष में आ सकता है।”

“चीन काफी समय तक जोड़-तोड़ की राजनीति में कामयाव रहेगा और प्रबल शत्रुओं को भी धोखा देने तथा मित्रता का नाटक रचने में वह सफल होगा किन्तु उसकी पोलें जल्दी ही खुलेंगी अपने आन्तरिक विग्रह के कारण ही वह विनाश के गर्त में जा सकता है। विश्व के कई राजनेताओं की हत्याओं के योग हैं

इन भविष्य वाणियों में अधिकाँश का समय 1980 के बाद का बताया गया है। इस सम्मेलन के अध्यक्ष, जो स्वंय भी कोरिया के विश्व प्रसिद्ध, देवज्ञ हैं, श्री हर्सारों असानों ने उस सम्मिलित विज्ञप्ति को प्रसारित करते हुए लिखा है कि इसमें केवल इन्हीं भविष्यवक्तओं को सम्मिलित किया गया है जिनकी भविष्य वाणियाँ 80 प्रति शतसे भी अधिक सत्य हुई हैं। इस सम्मेलन के समाचार और यह भविष्य वाणियाँ दुनिया के प्रायः सभी अखबारों में विवरण् सहित प्रकाशित हुईं। भारत में भी यह विवरण ‘इंडियन ढक्सप्रेस’ दैनिक के 12 सितम्बर में सार रुप में छपा था। इसमें उपरोक्त घटना क्रमों की चर्चा के अतिरिक्त विश्वव्यापी बौद्धिक परिवर्तनों का भी संकेत है। घोषणा में कहा गया है कि, अगले दिनों एशिया में भारी उथल-पुथल होगी। यह उथल-पुथल एक ओर बिचार क्रान्ति के रुप में परिलक्षित होगी तो दूसरी तरफ एक बार भयंकर अकाल पड़ेगा। तीन भयंकर भूकम्प आयेंगे,

सितम्बर 72 में दुनिया के प्रमुख ज्योतिषियों का एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में ऐसे ज्योतिषी सम्मिलित हुये थे जिनकी 80 प्रतिशत से भी अधिक भविष्यवाणियाँ सही निकलती रही हैं। कोरिया ने स्यूत नगर में सम्पन्न हुए इस सम्मेलन में 104 भविष्यवक्ता सम्मिलित हुए थे, सबने आम सहमति से, अपने ज्योतिष ज्ञान के अनुसार जो भविष्य कथन कहे, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं, सन् 1984 के आसपास अमेरिका और रुस में युद्ध तो होगा किन्तु सन् 1984 के पूर्व इस बात की कोई सम्भावना नहीं है। यह युद्ध ‘विश्वयुद्ध हो सकता है।

“आज जो राष्ट्र महाशक्तियों द्वारा विभक्त कर लिए गये हैं, जैसे जर्मनी, कोरिया और वियतनाम वह भविष्य में पुनः संयुक्त हो जायेंगे, उनकी सरकारें दो न होकर एक होगी राष्ट्रवादी और बाह्यशक्तियों के दबाव में आये बिना, काम करने वाली होगी।’

“व्यापार, धन-धान्य, कृषि, गौ, विद्या, विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र का एशियाई प्रभुत्व भारतवर्ष में आ सकता है।”

“चीन काफी समय तक जोड़-तोड़ की राजनीति में कामयाव रहेगा और प्रबल शत्रुओं की भी धोखा देने तथा मित्रता का नाटक रचने में वह सफल होगा किन्तु उसकी पोलें जल्दी ही खुलेंगी। अपने आन्तरिक विग्रह के कारण् ही वह विनाश के गर्त में जा सकता है। विश्व के कई राजनेताओं की हत्याओं के योग है

इन भविष्य वाणियों में अधिकाँश का समय 1980 के बाद का बताया गया है। इस सम्मेलन के अध्यक्ष, जो स्वयं भी कोरिया के विश्व प्रसिद्ध, देवज्ञ हैं, श्री हर्सारोंअसानों ने उस सम्मिलित विज्ञप्ति को प्रसारित करते हुए लिखा है कि इसमें केवल इन्हीं भविष्यवक्ताओं को सम्मिलित किया गया है जिनकी भविष्य वाणियाँ 80 प्रतिशतसे भी अधिक सत्य हुई हैं। इस सम्मेलन के समाचार और यह भविष्य वाणियाँ दुनिया के प्रायः सभी अखबारों में विवरण सहित एक्सप्रेस’ दैनिक के 12 सितम्बर में सार रुप में छपा था। इसमें उपरोक्त घटना क्रमों की चर्चा के अतिरिक्त विश्वव्यापी बौद्धिक परिवर्तनों का भी संकेत है। घोषणा में कहा गया है कि, अगले दिनों एशिया में भारी अथल-पुथल होगी। यह उथल-पुथल एक ओर बिचार क्रान्ति के रुप में परिलक्षित होगी तो दूसरी तरफ एक बार भयंकर अकाल पड़ेगा। तीन भयंकर भूकम्प आयेंगे,

“बिचार क्रान्ति का असर सारी दुनिया पर पड़ेगा। सन् 2000 से पूर्व ही बौद्धिक क्रान्ति की यह लहर न क्वल दक्षिणपंथी वरन् वामन्थी कम्युनिष्ट देशों में भी फैल जायगी। क्रान्ति का स्वरुप आध्यात्मिक धार्मिक विचार होगा। मत मतान्तरों के वर्ण सम्प्रदाय के भाषा-भेष के भेद मिट जायेंगे और लोगों में धार्मिक समभाव तथा भाई चारे की भावना का व्यापक विस्तार होगा।

परिवर्तन जब एक सुनिश्चित विधान के अनुसार होगा तो उसका सूत्रपात और सूत्र संचालन कौन करेगा, इस बात पर भी विश्व भविष्य वक्ताओं में विचार विमर्श हुआ। दृष्टा इस मामले में एक मत थे कि “एशिया के किसी देश में जन्मा एक महान् सन्त विश्व में भारी परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत है। इस शताबदी के अन्त तक इस सन्त का प्रयास इतना सफल होगा कि उसकी गरिमा का मूल्याँकन करने के लिए उपयुक्त कल्पना नहीं की जा सकती।

प्रसिद्ध भविष्यवक्ता कीरों, जो ज्योतिष शास्त्र के आधार पर भविष्यवाणियाँ करते थें, ने वर्तमान परिस्थितियों के बारे में कहा था, यूरोप की ईसाई जातियाँ एक बार फिर से यहूदियों को पैलेस्टाइन में बसाएँगी जिसके कारण अरब राष्ट्र और उनके इस्लामी मित्र भड़क उठेंगे (द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी आदि देशों से खदेडे गये यहूदियों को पैलेस्टाइन में बमाया गया और एक नया राष्ट्र इजराइल अस्तित्व में आया) वे बार-बार इग्लैंण्ड, अमेरिका आदि के विरुद्ध उत्तेजक नारे बुलन्द करेंगे। यहूदियों से उनकी टक्कर भी होगी, इन सबके बावजूद यहूदियों की शक्ति बढ़ेगी। कम संख्या में होते हुए भी यहूदी अरबों को पीटेंगे और उनका बहुत सा प्रदेश अपने कब्जे में कर लेंगे। 1980 के बाद कभी भी एक बार बहुत ही भयानक टक्कर होगी, जिसमें अरब राष्ट्र बुरी तरह तहस नहस होंगे। यह विनाश पूर्ण होने के बाद एक नई सनातन सभयता का अभ्युदय होगा और सारे विश्व में उसका प्रसार होगा। यह सब सन् 2000 के पूर्व ही हो जायगा।

कीरो ने यह पक्तियाँ सन् 1927 में लिखी थीं तब किसी को इजराइल की कल्पना भी नहीं थी परन्तु करीब बीस वर्षों में ही दुनिया भर के यहूदी पैलेस्टाइन में आये, सचमुच ईसाइयों ने उन्हें मदद दी और इस तरह छोटा सा किन्तु बाघ और बाज की तरह इजराइल एक सशक्त राष्ट्र के रुप में उठ खड़ा हुआ और एक ही मिश्र का सारा सिताई प्रान्त ही हड़प लिया।

प्रो. कीरो ने कहा था, अरबों की नील (नदी) यहूदियों का आदाब बजाएगी” सो भी सच हुआ और अब उस भविष्य वाणी के उत्तरार्ध की प्रतीक्षा की जा रही है। प्रो. कीरो की भविष्यवाणियों की सत्यता का अनुमान किसी को करना हो तो वह सन् 1943 की अखण्ड-ज्योति का जनवरी अंक उठाकर देखें जिसमें पृष्ठ 23 पर छपा है “इग्लैण्ड भारत को स्वतन्त्र कर देगा पर मजहवी फिसाद के कारण भारत तबाह हो जायगा यहाँ तक कि हिन्दू, बौद्ध और मुसलमानों में बराबर बराबर विभक्त हो जायगा।”

जिन दिनों यह भविष्यवाणी प्रकाशित हुई थी उन दिनों ब्रिटिश दमक चक्र अपने पूरे जोर पर था कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, “भारत वर्ष का सूर्य ग्रह बलवान है और कुम्भ राशि पर है परन्तु उसका अम्युदय संसार की कोई ताकत नहीं रोक सकती।” यह कथन सच ही होकर रहा पर दूसरी भविष्य वाणी जिसमें इस देश के बेट जाने की बात थी उस पर तो किसी का कतई विश्वास नहीं था फिर भी सारी दुनिया ने देखा कि भारत के ही बहुत से बौद्ध, मतावलम्बी राज्य अलग हो गए, पाकिस्तान बना और आज तक वह भारत के लिए सिर र्दद पैदा कर रहा है।

लंका के प्रसिद्ध जयोतिषी श्री नटराजन अपनी सफल भविष्यवाणियों के लिए एशिया में तथा अन्य देशों में भी लोकप्रिय हुए हैं। विश्व के घटनाचक्रों के बारे में इनकी भविष्यवाणियाँ बहुधा सही ही निकली हैं। भारत-पाक विभाजन, भारत पाक युद्ध आदि सम्बन्धी उनके भविष्य कथन शत-प्रतिशत सही उतरे। भावी विश्व के बारे में उनकी कुछ विशेष भविष्यवाणियाँ हैं-

1-तिब्बत सन्1982 में स्वतन्त्र हो जायेगा। 2-अगले भारत-पाक युद्ध में या उसके पूर्व पाँकिस्तान का एक हिस्सा पृथक बिलोचिस्तान के रुप में बदल जायेगा। 3 भारत का गौरव निरन्तर बढ़ता ही जायेगा 4 जापान निरन्तर औद्योगिक प्रगति करता रहेगा। 4.1980 में भारत का अपने एक ऐसे पड़ौसी देश से एक छोटे भूखण्ड को लेकर विवाद बढ़ेगा, जिससे अभी उसके मधुर रिश्ते हैं। पर यह विवाद युद्ध का रुप लेने के पहले ही मामला सुलझ जायेगा। 6. सन् 1987 में एक भयंकर तूफान आयेगा, जिसमें असंख्य प्राणियों का संहार हो जायेगा।

राजस्थान के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी डा. नारायण दत्त श्रीमाली की ज्योतिष से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें प्रसिद्ध हैं। अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने उनकी वार्ता ‘शेष शताब्दी का विश्व’ पर टेप की है। इसमें से कुछ प्रमुख भविष्यवाणियाँ ये हैं-

अमरीका 1980 में चन्द्रमा के अतिरिक्त अन्य ग्रहों से भी सर्म्पक स्थापित कर सकने में समर्थ होगा। 2,1981 में पाकिस्तान का अस्तित्व नगण्य हो जायेगा। 3. 1982 तक भारत भी अपना एक नागरिक अंतरिक्ष में भेज सकेगा। 4.1983 में एक व्यापक युद्ध प्रायः 19 वर्षों तक चलेगा। 5-24 जुलाई 1984 विश्व इतिहास में ‘अशुभ दिन’ अशुभ दिन’ के रुप में अंकित होगा। र्क्योंकि उस दिन विश्व में बहुत अधिक प्राणी मौत के मुँह में समा जायेंगे। 6.1985 से 1988 तक का समय जापान के लिए विशेष कष्टकर रहेगा। 7. चीन महाशक्ति बनकर उभरेगा। उसके विरुद्ध अमरीका तथा रुस एक होंगे। 8.1987 में एक अति भयंकर तूफान आयेगा, जिसमें करोड़ों लोग पेड़ों की जड़े खाकर जीवित रहने का प्रयास करेंगे। 10 1991 में फरवरी महीने में पहली बार अंतरिक्ष के किसी ग्रह का प्राणी इस धरती पर कदम रखेगा। 11 भारत निरन्तर प्रगति प्रगति करेगा तथा विश्व की प्रमुख हस्तियों में से एक होगा।

बराबर के विद्धान ज्योतिषी श्री गोपीनाथ शास्त्री चुलैट ने एक रात स्वप्न देखा कि ‘नये युग का आविर्भाव सन्निकट है। “उठ कर उनने उस स्वप्न समय की कुण्डली बनाई है।

इस लग्न कुण्डली को बनाने और अध्ययन के बाद इन निष्कर्षों पर पहुँचने के बाद शास्त्री जी ने ‘युग परिवर्तन’ नामक एक पुस्तक लिखी जो अकोला (महाराष्ट्र) से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में उन्होंने ज्योतिष गणना के आधार पर बताया है कि इस समय युग संधि चल रही है, जिसमें पिछले अज्ञानान्धकार का अन्त और नवयुग की अरुणिमा निरंतर बढ़ती ही जाएगी। यह समय एक ओर जहाँ भारतर्तनों का है। वहीं सारे विश्व के लिए भी कम कष्टप्रद नहीं है।

शास्त्रीजी द्वारा समय-समय पर की गई भविष्यवाणियाँ सही सिद्ध होती रही हैं। इस आधार पर उनका युग परिवर्तन कथन भी विश्वसनीय ही माना जा सकता है।

सन् 1945 और 1950 के मध्य भारतवर्ष के स्वतन्त्र होने की भविष्य वाणी की थी, वह सच हुई, उन्होंने सन् 1938 में ही महात्मागाँधी की मृत्यु का ठीक ठीक समय वता दिया था, यह भी सही सिद्ध हुआ, शास्त्रीजी ने भविष्य वाणी की थी कि सन् 1970 के आस-पास अमेरिका का कोई मनुष्य चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। ‘कलिवर्ज्य प्रकरण में पृथ्वी की प्रदक्षिणा नहीं करनी चाहिए इसका खंडन करते हुए शास्त्री जी ने लिखा था कि ‘भारतीय विमान आदि काल से ही पृथ्वी और अन्य ग्रहों की प्रदक्षिणा करते हुए उड़ते तथा वहाँ की यात्रा करते रहे हैं। निकट भविष्य में यह स्थिति भी देखने में आएगी जब सन् 1970 तक अमेरिका, नवासी चन्द्रमा पर उतर जाएँगे। इसलिए हम भारतीयों को भी प्रदक्षिणा (अंतरिक्ष) विज्ञान की शोध करनी चाहिए, शास्त्रीजी की अनेक भविष्यवाणियों में अत्तरी सीमान्त से आक्रमण (चीन के हमले) आदि की भविष्य वाणी भी ‘सही सिद्ध हो चुकी है। ऐसी दशा में उनका युग परिवर्तन सम्बन्धी विश्वस्त समझा जा सकता है।

हरियाणा के प्रसिद्ध सन्त बाँगड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है- संवत बीसा द्धौ बीसा कूँ असा जोग अनौखा आवै सै, नौ ग्रह मिलसी एक राशि पर गुरु दशा विचलावें सै। फाल्गुण मासै सूर्य ग्रहण दृश्य दिखावै सै,

राजा प्रजा का घणा दुःखनू सौ, कोहराम मचावै सै। पड़सी विकट अकाल बाद सूँ अनावृष्टि दिखलावै है, धरती फटै, आकाश टूटि के महाणास समहावै है। असा वखत नो ज्योति प्रगट्या सबको राह-यह दिखावै है

कह बाँगड़ की बात झूँठना कतै कणै ह्वै पावै है। लड़सी दयाख्या गोरा तुरकाँराज राजसा धणी धणी, तुरक तबारा मिटसी देखी अमरीसा घेर छणी। उसै जंगड़ी जंग चबारा धरणी कोय देखावेणी, दुःख पर दुःख पावसी दुणियाँ धुन्ध कोण ली छावैसी।

अकबर के समकालीन इन महान संत का उल्लेख “फरमान-ए रशीदी” पुस्तक में भी मिलता है उपरोक्त छन्द में जो स्थितियाँ बताई गई हैं, उनकी संगति वर्तमान परिस्थितियों से बहुत मिलती जुलती है। लोक श्रुति के रुप में प्रचलित यह पंक्तियाँ कई पुराने लोगों को कंठग्र हैं और “फरमान ए रशीदी” में भी संत बाँगड़ की इसी तरह की भविष्यवाणियाँ मिलती है। इस छन्द का अर्थ इस प्रकार है, सम्वत् 2040 (बीसा द्वी बीसा) को ऐसा विचित्र संयोग पड़ने वाला है, जिसके कारण दुनिया पर अगणित आपदाएँ और भयंकर विपदाएँ आयेंगी इस तरह की संम्भावना उस समय प्रत्यक्ष होने लगेगी जब नौ ग्रह एक ही राशि में स्थित होंगे तथा फाल्गुन मास में पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा (उल्लेखनीय है कि 16 फरवरी को पड़ा सूर्य ग्रहण फाल्गुन मास में ही था, तथा नौ ग्रह भी अगले दिनों सूर्य के एक सीध में आ रहे हैं) इस योग से शासन चलाने वालों के साथ-साथ जनता को भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। अकाल अतिवृष्टि’ अनावृष्टि, भूकम्प, उल्कापात आदि प्राकृतिक विपदाओं के अतिरिक्त विभिन्न देशों में युद्ध की भी संम्भावना है। अँग्रेज (गोरा) और तुरका (मुस्लिम) राष्टा्रें के बीच संघर्ष की पूरी-पूरी सम्भावना संत बाँगड़ ने बताई है। मनुष्य कृत उत्पातों और प्राकृतिक बिपदाओं के कारण कई देशों के तहस-नहस हो जाने तथा जनःजीवन के बुरी तरह अस्त व्यस्त होने की बात उपरोक्त पंक्तियों में स्पष्ट कही गई ळे

‘ज्योतिष बाध’ मासिक पत्रिका के जनवरी 80 अंक में भविष्य में क्या होगा? शीर्षक एक लेख प्रकाशित हुआ है। इस लेख में कहा गया है कि, ‘शनि एक राशि पर लगभग ढाई वर्ष तक रहता है अतएव प्रत्येक राशि पर वह 12+2॥ अर्थात् तीस वर्ष पश्चात् आता है कर्क, सिंह व कन्या राशि के शनि भयंकर परिवर्तन प्रस्तुत करते हैं। सन् 1857, 1917, 1947 और 1977 से अब तब के तीन चार वर्षों की अवधि में घटी घटनाएँ स्पष्ट हैं। सन् 1982 में शनि के चित्तार्द्ध कन्या राशि पर रहने तक भारत ही नहीं अपितु विश्व में भयंकर परिवर्तन होते रहेंगे। अनिश्चितता कनी रहेगी। भारत में अशान्ति तथा उपद्रवों में वृद्धि ही होगी।

पटना की “खुदाबख्श औरियण्टल लाइब्रेरी” में फारसी कसीदों (कविता) की पुस्तक है, जो बुखारा के सुप्रसिद्ध सन्त शाहनिया मतुल्ला वल्ली साहब की लिखी हुई है।इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है, ‘जापान और रुस में युद्ध होगा (1904 में रुस और जापान में युद्ध हुआ भी जापान में में भयंकर भूकम्प आयेगा (1913 में भूकम्प आया) प्रथम विश्व युद्ध में अलफ (अँग्रेज) और जीम (जर्मन) लड़ेंगे उसमें अँगेज जीतेंगे पर युद्ध में एक कराड़ इकस्तीस लाख व्यक्ति मारे जायेंगे (ब्रिटिश कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सचमुच इस युद्ध में एक करोड़ तीस लाख लोगों की मृत्यु का विवरण दिया गया है) दो जीम जर्मनी दो भागों में बँट गया आपस में तनावपूर्ण स्थिति में आ आएँगे। द्वितीय विश्व युद्ध में उनके द्वारा बम विस्फोट की-की गई भविष्य वाणी अभी तक गलत नहीं हुई है।

भारत के प्रसंग में वली साहब ने लिखा है, मुसलमानों के हाथ से यह मुल्क विदेशियों के हाथ चला जायगा, फिर हिन्दू मुसलमान मिल कर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेगें। विदेशी यहाँ से चले तो जाएगे पर हिन्दुस्तान को दो टुकड़ो में बाँट जाएँगे। दोनों ही देश बन जायेंगे और परस्पर इतनी शत्रुता बढ़ जायगी कि दोनों में युद्ध का तनाव तब बना रहेगा जब तक मुसलमान भू भाग पुरी तरह पराजित नहीं हो जायगा।

तृतीय विश्वयुद्ध के सम्बन्ध में वल्ली साहब ने लिखा है, ‘यह युद्ध बड़ा भयंकर होगा। श्वेत जातियाँ बहुत कमजोर पड जायेंगी। भारत का अभ्युदय एक सर्वोच्च शक्ति के रुप में हो जायगा, पर उसके लिए उसे बहुत कठोर संघर्ष करने पड़ेंगे देखने में यह स्थिति कष्टकारक होगी, पर इस देश में एक फरिश्ता आयगा जो हजारों छोटे-छोटे लोगों को इकट्ठा करके उनमें इतनी हिम्मत पैदा कर दगा कि वही नन्हे-नन्हे लोग ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर देंगे जिससे संसार में सीधे सच्चे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अमन चैन फैलत चला जायगा।

मिश्र की एक बहुत प्राचीन मीनार पर यह भविष्य वाणी अंकित है जिसमें कहा गया है कि चौदहवीं सदी बीत जाने पर (हिजरी सन् के अनुसार चौदहवीं सदी अब बीत चुकी है) कयामत आयेगी अर्थात् भीषण विनाश और सघर्ष उत्पन्न होगा। इसी मीनार पर जल्द ही एक नया जमाना आने की बात भी लिखी है जिसमें सत्य ही धर्म होगा, न्याय ही कानून होगा सारी पृथ्वी के लोग एक परिवार की तरह रहेंगे तथा कोई किसी से वैर-भाव नहीं रखेगा। सब और सुख शान्ति रहेगी किन्तु इससे पहले भयंकर युद्ध अकाल और प्राकृतिक प्रकोज इतने सघन होंगे कि संसार की आबादी का एक बड़ा भाग नष्ट-भ्रष्ट हो जायगा। इस नये युग का आरम्भ थोड़े से लोगों के द्वारा किये जाने की भविष्यवाणी भी उस मीनार पर अंकित है।


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