भावना बल (kavita)

March 1980

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हो न निराश कभी, हमारी इच्छा-शक्ति प्रबल हो हो शरीर बल चाहे कम, पर सुदृढ़ भावना-बल हो।

पूरे करे सदा हम अपने ऊँचे-नेक इरादे। चाहे घन घिर आये, अम्बर बड़ी मुसीबत ढा दे॥

ऊँचा रहे हौसला, साहस कभी न चुकने पाये। अपने प्रबल मनोबल का सिर कभी न झुकने पाये॥

अपने पास हरेक समस्या का सुनियोजित हल हो। हो शरीर बल चाहे कम, पर सुदृढ़ भावना-बल हो॥

बढे भावना का बल अपना, देवी गुण हम धारें। मूल्य दिव्यता का समझे, उस पर भौतिक बल वारे॥

सद्भावना बढाने में उत्साह सहित जुट जायें। र्स्वग कही भी हो उसको उर में उतार हम लाये।

द्वेष, दम्भी की गन्ध न आये, अपना मन निरछल हो। हो शरीर बल चाहे कम पर सुदृढ भावना बल हो॥

करुणा, ममता को विकसाकर कोमल हृदय बनाये। सेवा करे दीन-हीनों की, स्नेह-दया अपनायें॥

त्याग हमारा धर्म बने, कर्त्तव्य हृदय की शोभा। प्यार भरा हो इतना, उसकी मुख पर छाये आभा॥

सम्वेदन इतना-कि समूचा जीवन ही उज्जवल हो। हो न निराशा कभी, हमारी इच्छा शक्ति प्रबल हो। हो शरीर बल चाहे कम पर सुदृढ भावना बल हो॥

*समाप्त*


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