अर्न्तग्रही परिस्थितियों की प्रभावी प्रतिक्रिया

March 1980

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अन्तग्रही प्रवाहों का प्रभाव धरती के वातावरण पर उसके पदार्थों और प्राणियों पर असंदिग्ध रुप से पड़ता है। सौर मंडल से जो अदृश्य विवरण प्रवाहित होते हैं उन्हें अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण नवजात शिशु असाधारण रुप से ग्रहण करता है फलतः उसके व्यक्तित्व में उस स्थापना का प्रभाव एक स्थायी तथ्य बन कर जमा रहता है। यों प्रबल पुरुषार्थ से उसे मिटाया या घटाया भी जा सकता है।

अन्तरिक्ष विद्या के दो स्वरुप हैं एक ग्रह नक्षत्रों की गतिविधियों का निर्धारण और उसके प्रत्यक्ष प्रभावों का आकलन। मौसम, तूफान, ज्वारभाटा, चुम्बकीय विकरण जैसे आकलन इसी प्रत्यक्ष अन्तरिक्ष विद्या के अंग है। परोक्ष खगोल विद्या वह है जिसमें ग्रह नक्षत्रों के विकरण का मनुष्यों के व्यक्तित्वों और भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलाया जाता है। ग्रहों का गतिचक्र के वातावरण पर प्रभाव पड़ता हे और प्राणियों की मनोदशा तथा गतिविधियों पर उसका दबाव अनुभव किया जाता है। अनतरिक्ष के प्रत्यक्ष निर्धारण को ऐस्ट्रोनोमी और परोक्ष आकलन को-एस्ट्रोनोमी कहते है।

इन दोनों प्रसंगों पर बहुत समय से ऊहा पोह होता रहा है और प्रतिपादन तथा मतभेद का क्रम चलता रहा है। फिर भी दोनों का अपना-अपना पक्ष है। कटु आलोचना और विरोध भर्त्सना का प्रसंग वहाँ खड़ा होता है जहाँ तीरतुक्का मिलाने वाले ज्योतियों अनजान होते हुए भी उस विज्ञान का आवरण ओढ़ कर लोगों को डराते और पूजा पाठ के नाम पर जेब काटते है। अन्धविश्वास भाग्यवाद और निहित स्वार्थों का दबाव यदि हटाया जा सके तो ज्योति र्विज्ञान अपेन आप में एक उच्चस्तरीय विज्ञान है। उसकी गणना अनादिकाल से एक मान्यता प्राप्त शास्त्र के रुप में होती रही है।

आधुनिक शोधकर्त्ता और विज्ञान वेत्ता जैसे-जैसे तथ्यों की गहराई में उतरते जाते हैं वैसे-वैसे उन्हें यह स्वीकारना पड़ रहा है कि ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव प्राणियों की मनःस्थिति एवं परिस्थितिया पर पड़ता है। साथ ही उसके दबाव से पृथ्वी के वातावरण तथा पदार्थों के स्तर में अनुपेक्षित परिवर्तन आते हैं।

जान एण्टनी वेस्ट और जान गेरहार्ड टुण्डा नामक दो पत्रकारों ने फलित ज्योतिष की वैज्ञानिकता प्रमाणित करने का एक अभिनव प्रया किया है। उनकी नवीनतम पुस्तक ‘द केस फाँर एन्ट्रालाजी’ में यही प्रतिपादन हैं। उनके अनुसार तर्क और वैज्ञानिकता के उदयकाल से लेकर वर्तमान तक ज्योतिष विज्ञान के विरोध एवं पक्ष में लगभग एक सी बातें कही जाती रही हैं।

लेखकों के अनुसार एक ही जगह, एक ही समय में जन्में लोगों में बहुत कुछ साम्य होता हैं। यहाँ तक कि थोड़े से अन्तर से पैदा हुए जुड़वाँ बच्चों का भी। सैमुअल हेमिंग और जार्ज तृतीय दोनों एक ही दिन जन्में (4 जून 1738)। एक ही दिन उन्हें विरासत में राज मिला। (सैमुअल को लुहारी दुकान, जार्ज को इंग्लैण्ड की गद्दी। दोनों देखने में और स्वभाव में एक से थे। दोनों का विवाह एक दिन हुआ एवं दोनों की सन्तानों की संख्या भी एक सी थी। दोनों एक ही समय बीमार पड़ते रहे और दोनों एक ही दिन (21 जनवरी 1820) मरे।

हालही के वर्षों में एक ही दिन, एक ही समय, एक ही जगह जनमें वैज्ञानिक आइंस्टाइन और ओटोहान लेखक जेम्स स्टीफेन्स और जेम्स जायस जैसी कई जोड़ियों के जीवन में अद्भूत साम्य देखा दिखाया गया है। आमतौर से एक ही समय जन्मने वाले अनेकों बालकों की मनः स्थिति एवं परिस्थिति में कोई साम्य नहीं होता। लेखकों के अनुसार व्यक्ति का एकाकी- भाग्य-पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं है, वह समूह के भाग्य के साथ भी जुड़ा है। ऐसे कई वैज्ञानिक अनुसन्धानों के भाग्य के साथ ही जुड़ा है। ऐसे कई वैज्ञानिक अनुसन्धानों की चर्चा लेखक करते हैं, जिससे सिद्ध होता है कि प्रकृति के अनुकानेक कार्यकलाप कुछ सधे-बँधे समय चक्रों में होते हैं।

वैज्ञानिकता के इस दौर में फलित ज्योतिष जैसी विद्या के सम्बन्ध में यह प्रश्न स्वाभाविकताः उठता है कि क्या इस पुरातन विद्या में कोई वैज्ञानिक तत्व है? कोपर निकस, कैपलर तथा गैलीलियों जैसे खगोल विदों ने सूर्य को सौर मण्डल का स्थिर केन्द्र सिद्ध करके प्राचीन ज्योतिष को ध्वस्त तो किया पर साथ ही वे स्वयं फलित ज्योतिष के परम भक्त भी रहे। स्चयं न्यूटन जिन्होंने आधुनिक भौतिक शा़ बड़ी रचना में भारी योगदान दिया है। फलित ज्योतिष के आधार पर कितने ही निर्धारण किय करते थे। एक वैज्ञानिक प्रयोग में फ्रेंक ब्राउन ने यह सिद्ध किया हे कि मटर के दाने हो, या आलू के कड़े हाँ या सीपियाँ, सभी की भतरी घड़ियाँ (बायलाँजीकल क्लाँक) सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। इस प्रभाव का रोशनी से कोई सम्बन्ध नहीं। यदि अन्धेरे में बन्ध कर दिया जाये, तो भी इनका क्रम सूर्य चन्द्र की स्थिति के अनुसार चलता रहता हैं। पड़वा के चाँ में शिथिल और पूर्णिमा के चाँद में सक्रिय गतिविधियाँ रहती हैं। सीपियाँ ज्वार-भाटे से कोई सम्बन्ध न रख चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार खुलती बन्ध होती हैं। यह भी परीक्षणों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है।

वैज्ञानिक जान नेलसन के अनुसार आयनमण्डल में तूफानों का, जो रेडियों प्रसारणों में बाधा डालते हैं, सूर्य के सर्न्दभ में ग्रहों की स्थिति से सीधा सम्बन्ध है। जब भी दो या दो से अधिक ग्रह, सूर्य की राशि में होते हैं या उससे 180ह् अथवा 90ह् दूर राशि में तब भी ऐसे ही तूफान आते हैं। जब भी बहुत से ग्रह सूर्य की राशि से 60ह् या 120ह् की दूरी पर होते हैं, आयनमण्डल शान्त रहता है। इस सर्न्दभ में यह याद रखने योग्य है कि पाश्चात्य ज्योतिष के अनुसार 90ह् और 180ह् का सम्बन्ध कठोर और 60ह् या 120ह् का सम्बन्ध कोमल माना जाता रहा है।

इटली के रासायनल विच्चार्दी के अनुसार रसायनों एवं विशेषकर पानी पर चफमबकीय क्षेत्रों और तरंगों का बहुत असर पड़ता है।

वैज्ञानिक द्वष ड्यूवी एवं इंटिग्टन के अनुसार प्रकृति के सधे बँधे चक्रों के उदाहरण हमें हैरत में डाल देते हैं।

प्रति 6-6 वर्ष बाद सालमन मछली बड़े पैमानों पर जाल में फँसती हे, हर 6-6 वर्ष बाद पेड़ों पर छाल का छल्ला मोटा हो जाता है। सूर्य के धब्बों के भड़कने का 11-1 एवं 22-2 वर्ष का चक्र है और इस चक्र का सृष्टि के कई व्यापारों के चक्र से सीधा सम्बन्ध है। पैदावार मन्दी, तेजी, सर्दी-गर्मी, सूखा बरसात सभी के ऐसे चक्र खोज डाले गये हैं।

अस्पतालों में मानव शरीर और मन पर मौसम, चन्द्रकला, सूर्य की प्रखरता आदि के प्रभावों के बारे में एवं प्राणियों के शरीर की भीतरी विद्युत एवं आकाशीय विद्युत से उसके सम्बन्ध के बारे में भी इस पुस्तक में चर्चा ज्योतिषी द्वय ने की है। वे ‘सायमेटिक्स’ नामक एक नये विज्ञान का प्रतिपादन करते हुए कहते है कि हर स्वर, हर नाद, हर कम्पन एक विशेष प्रकर को जन्म देता है। ग्रह नक्षत्रों का एक अपना वायुमण्डल है और उसका अपना इलेक्ट्रोनिक नाद है और यही नाद जातक को प्रभावित करता है। गर्भाधान के समय जब माता-पिता से मिले जीन नये शिशु की नींव रखते हैं, तब यही ब्रह्माण्ड व्यापी नाद जीनों के क्रम को वह विशिष्टता प्रदान करता है जो जातक के जीवन और भाग्य में परिलक्षित होती है।

प्रस्तुत अन्तर्ग्रही परिस्थितियों पर दृष्टिपात करने वाले इस निर्ष्कष पर पहुँचते हैं कि युगसन्धि के अवसर पर जैसी उथल पुथल होती है वैसी ही सम्भावना इन दिनों भी उभरने के लक्षण प्रतीत हो रहे हैं। इनमें विनाशकारी घटना क्रमों की प्रखरता तो उनके कष्टकारक होने के कारण मानी ही जायेगी किन्तु साथ ही उसके पीछे उज्जवल भविष्य का आश्वासन भी सुनिश्चित रुप से विद्यमान है।


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