हम श्रेष्ठ बनें सद्गुणी बनें

March 1975

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भारत ही नहीं विश्व के विभिन्न देशों के भी वे महापुरुष जो सदियों पहले इस संसार से गुजर गये, लेकिन उनकी पावन स्मृति अपने देश में ही नहीं दूसरे-दूसरे देशों में भी बनी हुई है। उनकी स्मृति में अनेक स्मारक बनाये गये हैं जिन पर अभी भी हम श्रद्धा - सुमन प्रतिदिन अर्पित करते हैं और करते रहेंगे।

धर्म की पृष्ठभूमि क्या है? धर्म हमें क्या सिखाता है? इस पर जरा गम्भीरतापूर्वक विचार करना है। अच्छे कार्यों को जीवन का अंग बनाकर उन पर चलना ही तो धर्म कहलाता है। वही स्थान तीर्थस्थान हुए जहाँ हमारे सन्त- महात्माओं तथा महापुरुषों ने संसार के उद्धार के लिए अपने शुभ कर्म किये, तप किये।

आज हम राम की पूजा, बुद्ध की पूजा और गाँधी की पूजा क्यों करते हैं? रावण की पूजा, किसी डाकू की पूजा और नाथूराम गोडसे की पूजा क्यों नहीं करते?

करोड़ों मानव इस धरती पर आते और जाते ही रहते हैं। यह तो प्रकृति का नियम है। लेकिन कोई विरले ही ऐसे होते हैं, जिन्हें युग-युग तक याद किया जाता है।

क्या हम राम और बुद्ध के सुन्दर राजकुमार वाले शरीर की पूजा करते हैं? क्या गाँधी जी की बेडौल काया और हाथ में लिए लाठीधारी की पूजा करते हैं? नहीं। ज्यों ही हमारी दृष्टि राम की मूर्ति पर जाती है या उनके नाम स्मरण करते हैं तो उनके गुणों के समूहों की याद आ जाती है। गलत कार्य करने वाला व्यक्ति भी उनके नाम और काम को स्मरण कर अपनी गतिविधि बदल लेता है।

रावण अपने में कितना समर्थ और शक्तिशाली व्यक्ति था, फिर भी वह राक्षस कहलाया। कोई भी उसके आगे नतमस्तक नहीं होगा। श्रद्धा से कोई एक पुष्प भी समर्पित नहीं करता। रावण का नाम स्मरण आते ही उसके द्वारा किये गये अनर्थ, अत्याचार, अनाचार का दृश्य सामने आ जाता है। मन में घृणा हो जाती है। अश्रद्धा की दृष्टि से उसे देखते हैं।

न आज धनुर्धारी राम है न अनाचारी रावण है फिर भी क्रमशः उनके द्वारा मानवोचित और अमानवोचित जो भी कार्य किये गये उसका असर युग - युग तक रहेगा। राम, बुद्ध और गाँधी के आदर्श मानव उद्धारवादी विचार ही तो पूजे जाते हैं। उनके गुणों का गुणगान करते हैं। सदियाँ बीत चुकीं लेकिन इन महापुरुषों की प्रेरणा आज भी हमें प्रेरित किया करती हैं।

बाग में बहुत तरह के फूल रहते हैं। जिनमें टेसु अपनी सुन्दरता के लिए बेजोड़ है, फिर भी उसे कोई अपनी छाती से नहीं चिपकाता। गुलाब की एक छोटी सी कली भी लोगों को मदहोश बना देती है। उसकी सुगन्ध पाकर उसे कौन अपनाना नहीं चाहता।

यदि हम चाहते हैं कि अपने जीवन को सही दिशा दें तो अपने गुणों की अभिवृद्धि करनी पड़ेगी। गुणों की अभिवृद्धि मात्र से हम किसी की नजर में अच्छे नहीं हो सकते। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि उन गुणों को अपने कर्म में ढाल दें। तभी वस्तुतः व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता है। जीवन से कलुषता, अकर्मण्यता, कटुता, ईर्ष्या-द्वेष, घृणित विचारधारा इन निकृष्टताओं को निकाल कर दूसरों के प्रति ममता, दयालुता, निष्कपटता, सहृदयता, सहानुभूति, सज्जनता ऐसी श्रेष्ठताओं को स्थान देना पड़ेगा। ये सद्गुण जब सहज स्वभाव के रूप में उतर जायेंगे तो कोई वजह नहीं है कि दुनिया हमें सम्मान न दे।

दुनिया में जितने महापुरुष हुए उन सब की एक विशेषता रही है - उनने अपने सुख की कामना न कर लोक-कल्याण के लिए ही अपना सर्वस्व त्याग किया है। ऐसे उदारचेता महामानवों को दुनिया ने सब दिन सम्मानित किया है और करेगी।


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