महिला जागरण अभियान का उद्घोष अखण्ड ज्योति परिजनों का सक्रिय सहयोग आमन्त्रित!

March 1975

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भगवती देवी शर्मा

मानव जाति नर और नारी के दो भागों में विभक्त है। दोनों की संख्या लगभग समान है। इन दो पहियों पर ही मानव समाज की गाड़ी लुढ़कती है। एक पहिया टूट जाय तो फिर समझना चाहिए कि गतिशीलता समाप्त हो गई और पूरा ढाँचा लड़खड़ा गया। भारतीय नारी की दयनीय दुर्दशा किस स्तर पर पहुँच चुकी है यह किसी से छिपा नहीं है। मध्य युग के अज्ञानान्धकार में उसके प्रायः सभी मानवोचित अधिकार छीन लिये गये और खरीदे हुए पशु जैसी उसकी स्थिति बना दी गई। शिक्षा, स्वास्थ्य, अनुभव, अधिकार, स्वावलम्बन आदि सभी क्षेत्रों में वह पुरुष की तुलना में अत्यधिक पिछड़ गई है, जब व्यक्तित्व को स्थिर और विकसित करने के अवसर ही छिन गये तो दुर्बलता और दुर्दशा का गले बंधना स्वाभाविक ही था। यों भारत का पुरुष वर्ग भी वाँछनीय स्तर कहाँ पा सका है? संसार के अन्य देशों की तुलना में अपने देश का पिछड़ापन सर्वविदित है फिर पुरुषों की तुलना में नारी की स्थिति तो और भी अधिक दयनीय है।

इस स्थिति से भारतीय नारी को उबारे बिना हमारी स्वतन्त्रता सर्वथा अधूरी रहेगी। हम राजनैतिक दृष्टि से स्वतन्त्र हुए पर पराधीनता के बन्धनों में आधा समाज ज्यों का त्यों जकड़ा पड़ा है। विदेशी शासन में जो उत्पीड़न और शोषण भारतीय जनता हो होता था उससे कम कुछ अधिक ही नर द्वारा नारी का होता रहा है-हो रहा है। आधे समाज को इस प्रकार बन्धन ग्रस्त होते हुए भी देश के स्वतन्त्र होने का दावा करना एक प्रकार से विडम्बना ही है।

स्थिति यथावत् नहीं रहने दी जा सकती है। विश्व का भविष्य उज्ज्वल बनाने में भारत समुचित योगदान दे सके, इसके लिए अपने समाज को हर दृष्टि से समुन्नत बनाना पड़ेगा और इस दिशा में भयंकर पिछड़ेपन को दूर करने के लिए-नारी उत्कर्ष के लिए घनघोर प्रयत्न करना होगा। गाड़ी के दोनों पहिये ठीक न हो सके तो प्रगति के आधार किसी भी प्रकार अग्रगामी न हो सकेंगे। आधी जनसंख्या को पशु स्तर से ऊंचा उठाकर मनुष्य स्तर पर लाने का काम इतना आवश्यक एवं इतना महत्वपूर्ण है कि उसकी किसी भी प्रकार उपेक्षा नहीं की जा सकती।

कदाचित् यह रहस्य बहुत कम लोगों को विदित होगा कि गुरुदेव के विवाहित रहने का प्रधान उद्देश्य नारी जागरण अभियान के लिए अपना एक तीसरा हाथ उगाना था। भारत में नारी को ही प्रत्यक्ष मोर्चा संभालना पड़ेगा। नर उसमें परोक्ष रूप से ही सहायता कर सकता है। प्रत्यक्षतः तो उसे इस क्षेत्र में प्रवेश ही नहीं मिल सकता। कोई जबरदस्ती से घुसेगा तो लाँछन सहता हुआ निराश वापस लौटेगा। गुरुदेव की नारी जागरण आकाँक्षा का एक नगण्य सा उपकरण यदि मुझ अनुचरी को माना जाय तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी। यों उनके अन्यान्य कार्यों में मुझे समय-समय पर हाथ बंटाने पड़े हैं पर उनकी भूल दृष्टि सदा यही निर्वाह करने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़ा होना है।

शान्ति कुंज निर्माण के विचार की व्याख्या करते हुए आरम्भ से ही यह कहा जाता है कि मथुरा के गायत्री तपोभूमि आश्रम को पुरुष वर्ग प्रधान और हरिद्वार शाँति कुंज आश्रम को नारी वर्ग प्रधान बनाया गया है। यों किसी आश्रम में किसी दूसरे वर्ग के प्रवेश करने का निषेध नहीं हैं; पर प्रधानता अलग-अलग स्तर की ही रहेगी। इससे न केवल कार्य का विभाजन वितरण होगा वरन् अपने-अपने क्षेत्र पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना और अधिक तत्परता से कार्य करना सम्भव हो सकेगा। दोनों आश्रमों में अपने-अपने ढंग के साधन भी जुटते रहेंगे और गति-विधियों का भी संचालन होता रहेगा। शान्ति कुंज की स्थापना-व्यवस्था आदि में मुझे इसी दृष्टि से आगे रखा गया है। यों हर कोई जानता है कि कठपुतली के धागे कहाँ से हिलते हैं और इस सारे तमाशे का सूत्रधार कौन है।

नव युग के अवतरण में नारी का अति महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। उसमें अध्यात्म तत्वों की प्रकृति प्रदत्त बहुलता है। यदि ऐसा न होता तो वह पति के लिए, सन्तान के लिए, ससुराल में पराये घरवालों के लिए, इतना असामान्य आत्मदान कर सकने में समर्थ न हो सकी होती। ममता, करुणा, शुचिता और उदारता की उसे मूर्तिमान प्रतिभा कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। उसकी इस मूल भूत विशेषता को उभारे बिना परिवारों के वातावरण में स्वर्ग का अवतरण करने, अगली पीढ़ी में देवत्व की झलक देखने का स्वप्न साकार नहीं हो सकेगा। पशु प्रवृत्ति की मानवी रीति-नीति में बदलने के लिए अगले दिनों नारी की विशेषताओं का समुचित उपयोग किया जाना है। उसे बहुत समय तक हर क्षेत्र में नेतृत्व अपने कन्धों पर वहन करना पड़ेगा। नर का पिछला कर्तृत्व क्रूरता भरा रहा है, उसके खोदे हुए खाई-खन्दकों को पाटने के लिए नारी को आगे आना होगा।

सन् 1975 का बसन्त पर्व इसी के लिए विशेष सन्देश लेकर उतरा है। यों ऐसे सन्देश सदा गुरुदेव भी लपेट लिया गया है। नारी जागरण के लिए इन्हीं क्षणों में ठीक उसी प्रकार शंखनाद किया जा रहा है, जैसा कि कुछ समय पूर्व युग-निर्माण योजना का उद्घोष करते समय किया गया था।

20 जून 71 को मथुरा छोड़कर जब हम लोग हरिद्वार आये तो शान्ति कुंज का उद्घाटन अखण्ड दीपक पर कन्याओं द्वारा महापुरश्चरण के रूप में आरम्भ किया गया। इस धर्मानुष्ठान के पीछे यही घोषणा थी कि इस भूमि से भविष्य में किन गति विधियों का संचालन होना है। इसके बाद एक-एक करके कन्या शिक्षा-योजना प्रशिक्षण सत्र आदि की व्यवस्था क्रमशः बनती चली गई। अब उस संकल्प को अधिक सुव्यवस्थित एवं योजनाबद्ध रूप से अग्रगामी बनाया जा रहा है। इसी बसन्त पर्व का सत्र संचालक शक्ति के निर्देश इस संदर्भ में मिले थे उन्हें कार्यान्वित करने में अविलंब हम लोग जुट गये हैं। गुरुदेव की सत्र शिविर प्रक्रिया भी चलती रहेगी और साथ ही महिला जागरण अभियान की जड़े गहराई तक जमाने का प्रयास बढ़ता रहेगा। आशा की जानी चाहिए कि देशव्यापी संगठन अप्रैल, मई, जून में स्थापित की नहीं गतिशील भी हो जायगा और पत्रिका पुस्तक प्रकाशन कन्या विद्यालय का क्रिया-कलाप 1 जुलाई 75 से चल पड़ेगा। तब तक आवश्यक इमारत बनाने का रुका हुआ कार्य भी किसी न किसी सीमा तक आगे बढ़ ही जायगा।

महिला जागरण अभियान इस वर्ष चार चरणों में आरम्भ किया गया है-

(1) महिला जागरण साहित्य का प्रकाशन। (अ) हिन्दी मासिक पत्रिका ‘महिला जागरण’ का आरम्भ (ब) महिला जागरण की प्रेस की स्थापना (स) महिला जागरण अभियान सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन।

(2) वर्तमान महिला शिक्षण सत्रों की तीन-तीन महीने वाली शिविर व्यवस्था का और भी अधिक सुव्यवस्थित रीति से संचालन।

(3) कन्या प्रशिक्षण का एक वर्ष वाली शिक्षा व्यवस्था का अधिक सुचारु ढंग से अब पुनः प्रारम्भ की स्थापना करना। उनके द्वारा रचनात्मक कार्यक्रमों का व्यापक रूप से संचालन।

इन चारों क्रिया-कलापों का सूत्र संचालन केन्द्र शाँति कुंज रहेगा। इस वर्ष सभी प्रवृत्तियां चल पड़ेगी जड़ जमा लेंगी और गति पकड़ लेगी ऐसी आशा की जा सकती है। अगले दिनों उनका क्रमशः अधिकाधिक विस्तार होता चला जायगा और कुछ ही समय में यह नव आरोपित पौधा विशालकाय वटवृक्ष बनकर महिला जागरण लक्ष्य को गगनचुम्बी बनाता हुआ दिखाई देगा।

उपरोक्त चारों प्रवृत्तियों का विवरण इस प्रकार है-

प्रकाशन-

(1) अखण्ड-ज्योति साइज की, उतने ही पृष्ठों की, उसी कलेवर की, हिन्दी मासिक पत्रिका ‘महिला जागरण’ इसी 1 जुलाई 75 से आरम्भ होगी। मूल्य भी अखण्ड-ज्योति जितना ही रहेगा। महिला जीवन से सम्बन्धित सभी पक्षों पर उसमें आवश्यक मार्ग दर्शन रहेगा। घर और बाहर दोनों ही क्षेत्रों को नारी अपनी गरिमा से किस प्रकार आलोकित कर सकती है इसका सर्वांगपूर्ण प्रशिक्षण लेकर यह पत्रिका भावनाशील जीवन्त महिला समाज के पास पहुँचेगी और परिस्थितियों में व्यापक परिवर्तन लाने योग्य प्रकाश एवं साहस प्रदान करेगी।

देश व्यापी महिला जागरण आन्दोलन से सम्बन्धित अपने मिशन के आवश्यक समाचारों के लिए इसी पत्रिका में कुछ पृष्ठ सुरक्षित रहेंगे। शाखा संगठनों को इससे एक दूसरे के परिचय एवं अनुभव उठाने का अवसर मिलता रहेगा।

(2) भारतीय नारी और उसके प्रधान क्षेत्र घर-परिवार की अपने देश में अगणित समस्याएं है, उन पर भारतीय ढंग से विवेचन एवं समाधान प्रस्तुत करने वाली पुस्तकें नहीं के बराबर छपी हैं। इस अभाव की अभाव पूर्ति यह प्रकाशन विभाग करेगा। महिला पुस्तकालयों के लिए, महिला विद्यालयों के लिए अभिनव के अंतर्गत तेजी से छापा जायगा।

(3) पत्रिका तथा पुस्तकों के प्रकाशन के लिए एक प्रेस भी शान्ति कुंज में ही लगाया जायगा। इसमें जहाँ अपने प्रकाशन में सुविधा होगी, वहाँ साहित्यिक रुचि रखने वाली महिलाओं को प्रेस उद्योग की आवश्यक शिक्षा प्राप्त करके स्वावलम्बी एवं सम्मानित जीवनयापन का एक नया मार्ग मिलेगा। सुशिक्षित महिलाएं इस विभाग के संपर्क में रहकर पत्रकार, साहित्यकार एवं प्रेस संचालक का महत्वपूर्ण कार्य कर सकने की योग्यता प्राप्त कर सकेंगी।

इसी विभाग के अंतर्गत ‘रबड़ की मुहरें’ बनाने का एक ऐसा उद्योग भी जुड़ा रहेगा जो स्वतन्त्र भी कहा जा सकता है और संबद्ध भी। संबद्ध इसलिए कि उसमें प्रेस के टाइप, कम्पोज आदि के ही उपकरण काम आते हैं और स्वतन्त्र हुए भी कोई व्यक्ति केवल थोड़ा सा टाइप और छोटी सी मशीन खरीद कर आजीवन अच्छी आजीविका कमाते रहने योग्य बन सकता है।

महिला जागरण प्रेस के कम्पोज, बाइंडिंग आदि कार्यों में केवल महिला कर्मचारी ही काम करेगी। यह सीखी हुई महिलाएं कही भी अपना निजी प्रेस खड़ा कर सकेंगी। दहेज देने की अपेक्षा यदि कन्याओं के पिता छह हजार की लागत का एक प्रेस दे दें तो वह पति सहित ससुराल के कई सदस्यों को उसी गृह उद्योग में लगाकर सब की आजीविका का एक नया साधन खड़ा हो सकती है। रबड़ की मुहरें तथा प्रेस उद्योग में उपरोक्त विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता भी पूरी होती है। मिशन का अपना प्रकाशन कार्य तो उससे सुविधापूर्वक चलता ही है।

भविष्य में प्रेस तथा प्रकाशन विभाग से थोड़ी बचत भी हो सकती है और उससे शाँति कुंज की अर्थ व्यवस्था में कुछ न कुछ योगदान मिलता रह सकता है। इससे भावी क्रिया-कलापों के निश्चितता पूर्वक चलते रहने की सुविधा होगी और जिनके कन्धों पर इस मिशन का उत्तराधिकार उत्तरदायित्व पड़ेगा वे थोड़ी राहत अनुभव करेंगे।

युग निर्माण परिवार के लाखों सदस्य जिस श्रद्धा और तत्परता के साथ सृजन सैनिकों की भूमिका निभा रहे हैं वह देखते ही बनती है। पर उसमें उनके घर की महिलाओं का-विशेषता पत्नियों का योगदान नगण्य ही रहता है कई बार तो वे अपनी नासमझी के कारण उस अपने परिवार और समाज को हर दृष्टि से ऊंचा उठाने वाले कार्य में तरह-तरह के अवरोध भी उत्पन्न करती हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि वे अपने घर के लोक सेवी पुरुषों का दाँया बांया हाथ बनकर उन सत्प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने में योगदान करती। इसका कारण उनकी आन्तरिक संकीर्णता ही कही जा सकती है। वे जिस वातावरण में पत्नी और बढ़ी है उसमें वैसा वातावरण मिली ही नहीं जिसमें वे महान आदर्शों का मानव जीवन की सफलता के साथ क्या सम्बन्ध है यह समझ सकतीं।

जीवन कला एवं परिवार निर्माण विद्या की समुचित जानकारी के बिना कोई नारी सच्चे अर्थों में गृह लक्ष्मी नहीं बन सकती और न नारी सुलभ उत्तरदायित्वों को वहन कर सकती है। स्कूली शिक्षा ऊंची से ऊंची क्यों न हो वह नौकरी दिलाने आदि में सहायता कर सकतीं है पर सुगृहिणी बनाने में उसका कोई विशेष योगदान नहीं रहता। सफल जीवन के लिए पग-पग पर काम आने वाले ज्ञान का आज सर्वथा अभाव है। इसके बिना साधन सम्पन्न घर परिवार भी नरक बने रहते हैं। जबकि नारी जीवन का तत्वज्ञान समझने वाली महिलाएं अभाव ग्रस्त और अन्यान्य कठिनाइयों से भरे हुए परिवार में भी स्वर्गीय वातावरण का सृजन कर सकने में पूरी तरह सफल हो सकती है और दूसरों को भी सुखी बना सकती है। किन्तु उस स्तर का न कहीं शिक्षण मिलता है और न वातावरण। अस्तु प्रतिभा सम्पन्न, सुयोग्य एवं सुशिक्षित महिलाएं भी अपने मूल प्रयोजन में प्रायः असफल ही रहती है।

नारी जीवन अपने आप में एक अगणित विशेषताओं से भरा ईश्वरीय वरदान है। उसका स्वरूप और उप और उत्साहवर्धक हो सकती है जिसकी कल्पना मात्र से सिहरन उत्पन्न हो। पति, परिवार और पीढ़ी के निर्माण में सुसंस्कृत नारी का कितना बड़ा योगदान हो सकता यह आज सुखद कल्पना मात्र तक सीमित रहना वाला विषय बना हुआ है उसे मूर्त रूप में प्रस्तुत कर सकने वाले साधन अभी बने ही कहाँ हैं?

इस अभाव में पूर्ति के लिए तीन-तीन महीने के महिला प्रशिक्षण सत्रों की व्यवस्था की गई है जो सिखाया जाना चाहिए उसके लिए यह समय अत्यन्त स्वल्प है पर बाल बच्चे वाले-गृहस्थ संभालने वाले विवाहित महिलाओं से इससे अधिक समय की आशा भी तो नहीं की जा सकती।

युग निर्माण परिवार के सदस्यों को ध्यान में रखते हुए यह शिविर व्यवस्था बनाई गयी कि वे पत्नियों का बहिनों को, पुत्रियों को अथवा अपने घर परिवार की अन्य महिलाओं को इन सत्रों में भेजें और उन्हें सुगृहिणी बन सकने का आवश्यक ज्ञान एवं वातावरण प्रदान करने का एक अवसर प्रस्तुत करें। स्वयं कुछ न करें-जैसी कुछ है उसे निबाह न सकें, आये दिन घर में कलह प्रस्तुत करें तो यह उचित न होगा।

आशा की गई है कि अपने परिवार के सदस्य इन प्रशिक्षणों के लिए अपने घरों की प्रतिभा सम्पन्न महिलाओं को को भेजने की तैयारी करेंगे।

इन तीन महीनों में नारी जीवन को सफल समुन्नत बना सकने योग्य प्रायः सभी जानकारियों का समावेश किया गया है। स्वास्थ्य रक्षा, सन्तान पालन, पारिवारिक सौजन्य, मधुर दाम्पत्य सम्बन्ध, अर्थ सन्तुलन, सुखाद्य, चिन्तन में दूरदर्शिता का समन्वय, सौम्य शिष्ट व्यवहार हंसी-खुशी का हलका-फुलका वातावरण स्वच्छता एवं सुसज्जा, सद्गुणों का संवर्धन, कलह का समाधान, सफल संयुक्त परिवार के आधार भूत तथ्य, कुरीतियों के दुष्परिणाम, जीवन कला का सामान्य ज्ञान, पग-पग पर विवेकशीलता का उपयोग जैसी अनेकों महत्वपूर्ण जीवन क्रम में कायाकल्प प्रस्तुत कर सकने वाली शिक्षाओं का आवश्यक समावेश करने का प्रयत्न किया गया है और आशा की गई है कि तीन महीने में उत्साहवर्धक तत्वों का समावेश करके घर वापस लौटेंगी।

यो इन्हीं तीन महीने की अवधि में कपड़ों की सिलाई रंगाई-घरेलू शाक ,वाटिका, टूट-फूट की मरम्मत, साबुन, मोमबत्ती, सुगन्धित तेल, शरबत स्याहियाँ आदि व्यापार योग्य रसायन बनाना जैसे कला-कौशल एवं गृह उद्योग भी सम्मिलित रखे गये हैं।

अपने क्षेत्र में महिला जागरण के लिए संगठनात्मक प्रचारात्मक कार्य करने के लिए प्रवचन देने की, संगीत के माध्यम से कथा-कीर्तन कर सकने की, हवन संस्कार कराने की, प्रौढ़ महिला विद्यालय चलाने की एवं यथा स्थिति अन्य रचनात्मक प्रवृत्तियों के संवर्धन की शिक्षा भी इस तीन महीने के प्रशिक्षण में सम्मिलित है ताकि शिक्षार्थी महिलाएं अपने-अपने क्षेत्र में नारी जागरण अभियान को सफलता पूर्वक अग्रसर कर सकने में समर्थ हो सकें।

कन्या शिक्षा-

कन्या पाठ्यक्रम एक वर्ष का रखा गया है। 1 जुलाई से आरम्भ होकर 31 मई को समाप्त हुआ करेगा। पढ़ाई 11 महीने चलेगी। 14 वर्ष से अधिक आयु की और आठवें दर्जे से अधिक शिक्षा प्राप्त लड़कियों को ही प्रवेश मिलेगा।

इस प्रशिक्षण में निम्न लिखित वर्ग हैं

(1) सफल गृहिणी बन सकने के लिए वे सभी आवश्यक जानकारियों जिन्हें तीन महीने वाले महिला प्रशिक्षण सत्रों में समाविष्ट किया गया है।

(2) व्यक्ति और संसार के सामान्य किन्तु प्रत्येक आवश्यक विषय की समुचित जानकारी, ब्रह्मांड विश्व, भूगोल, पदार्थ विज्ञान, जीव विज्ञान, वनस्पति शास्त्र, शरीर रचना, आरोग्य शास्त्र, चिकित्सा समाज शिक्षा, अर्थ नीति, राजनीति, कानून, मनोविज्ञान, शिष्टाचार आदि विषयों की सभी जानकारियाँ दी जायेगी जिन्हें जाने बिना मनुष्य कूप-मंडूक की स्थिति में पड़ा हुआ ही कहा जा सकता है।

(3) आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी जीवनयापन कर में फिलहाल इन उद्योगों की व्यवस्था की गई (अ) प्रेस उद्योग- किसी प्रेस में नौकरी कर सकने या स्वयं प्रेस चला सकने की शिक्षा (आ) हर प्रकार की रबड़ की मुहरें बनाकर अच्छा गुजारा कर सकना। (इ) कपड़ों की इस स्तर की सिलाई की, कि दर्जी की दुकान चलाई जा सके, और मशीनों से कपड़ों पर वेल बूटे काढ़ना। (ई) ड्राई क्लीनिंग पद्धति से रेशमी, ऊनी, सूती कपड़े तत्काल धोकर देने की आधुनिक पद्धति तथा नवीन एवं सुगम विधि से कपड़े धोने की वे विधियाँ जिनके अनुसार धुलाई, रंगाई की अच्छी फाउन्ड्री चलाई जा सके (उ) मशीनों की सहायता से एक दिन में कई-कई ऊनी स्वेटर तथा मफलर, टोपे, मोजे आदि बुन सकने की कारीगरों सीख कर अच्छी आजीविका कमा सकना (ऊ) फाउन्टेन पेन तथा बाल पेन्सिलें बनाने का शिल्प तथा उद्योग व्यवसाय स्तर का ज्ञान (ए) कई स्तर के कई प्रकार के खिलौने बनाने और बेचने की जानकारी (ऐ) डबल रोटी, बिस्किट, कोक, नान खताई आदि बनाने की ‘बेकरी शिक्षा’ (ओ) साबुन, मोमबत्ती, अगरबत्ती, तरह-तरह की स्याहियाँ, सुगन्धित तेल, फलों के शरबत आदि रासायनिक वस्तुएं व्यवसाय स्तर पर बनाना (औ) हाथ के बने यज्ञोपवीत उस स्तर पर बनाना जिससे बिना पढ़ी महिलाएं रोजी रोटी कमा सके। उपरोक्त दस शिल्प इस स्तर के हैं जिसमें से किसी को भी स्वावलंबी आजीविका के रूप में चुना और अपनाया जा सकता है। कन्या शिक्षा के एक वर्ष में सामान्य जानकारी तो इन सभी की करा दी जायेगी। पर विशेष कुशल उनकी रुचि के किन्हीं दो विषयों में ही बनाया जा सकेगा।

(4) सामान्य गृहशिल्प की दृष्टि से बर्तनों की टूट-फूट ठीक करना, जूतों की पालिस तथा मरम्मत, चारपाई पलंग बुनना, स्टोव, लालटेन, टार्च, फाउन्टेन पेन आदि उपकरणों की मरम्मत, चाकू-कैंची आदि पर शान रखना, फर्नीचर पर पालिस, किवाड़ों पर रंग मकान पोतना, मकान की टूट-फूट सुधारना, तरह -तरह के अचार, स्वादिष्ट व्यंजन घर में साग भाजी, फूल-बेले उगाना, पुस्तकों की जिल्द बाँधना, रद्दी चीजों के नये उपयोग करना जैसे कार्य सम्मिलित रखे गये हैं।

(5) संगीत अच्छे स्तर पर रखा गया है। हारमोनियम, तबला, ढोलक, मजीरा, घुंघरू, वेंजों वंशी जैसे वाद्य-सुगम संगीत की गायन प्रक्रिया-नाटक, अभिनय, गीत नाटिकाएं, प्रहसन भी इसी वर्ग में सम्मिलित हैं।

(6) खेलकूद, व्यायाम, फौजी कवायद, आसन, प्राणायाम, लाठी, तलवार, भाला, छुरा तीर कमान, हवाई बन्दूक चलाने एवं निशाने लगाने की शिक्षा। सरकारी स्वीकृति मिल सकी तो कारतूसों वाली असली बन्दूक चलाने का प्रबन्ध किया जायगा।

(7) महिला जागरण अभियान को चला सकने के लिए भाषण, संगठन, संस्कार, हवन, कथा का अभ्यास। महिला विद्यालय चला सकने की जानकारी। अपने क्षेत्र में नारी उत्कर्ष की अन्यान्य रचनात्मक प्रवृत्तियों के संचालन की क्षमता का विकास।

उपरोक्त प्रशिक्षण एक वर्ष के स्वल्प समय को देखते हुए कठिन प्रतीत होता है, पर शिक्षा विधि सरकारी स्कूलों की तरह 4-5 घण्टे की न रखकर पूरे आठ घण्टे की रखी गई है। कन्याओं को व्यस्त तो बहुत रहना पड़ेगा, पर जिस मनोयोग से उन्हें शिक्षण मिलना है उसे देखते हुए यही आशा की जा सकती है कि वे इतना सीख लेंगी।

यों यह प्रशिक्षण इतना उपयोगी है कि जिन्हें नौकरी नहीं करनी करानी है, सफल समर्थ और सुसंस्कृत प्रतिभा का विकास करना है वे इसी पाठ्यक्रम की 12 वर्ष से 20 वर्ष की आयु तक पूरे आठ वर्ष में विस्तारपूर्वक और निष्णात अभ्यास के साथ पूरा करें। इसके लिए अपने ही परिवार की ढेरों कन्याएं मिल सकती हैं। पर शान्ति कुंज के स्वल्प साधन को सुविस्तृत अखण्ड ज्योति परिवार की आवश्यकता को देखते हुए फिलहाल इतना ही बन पड़ा है कि एक-एक वर्ष का पाठ्य-क्रम रखा जाय जिसमें थोड़ा उथला ज्ञान सही पर अनेक बालिकाओं को लाभान्वित होने का अवसर मिल सके। प्रयत्न यह किया जायेगा कि एक वर्ष में ही चार वर्ष की पढ़ाई जितना लाभ शिक्षार्थी को मिल सके।

महिला और कन्या शिक्षण सत्र में सम्मिलित होने वाली छात्राओं को भोजन व्यय 60) मासिक लगेगा। जिन्हें सम्मिलित होना हो उन्हें। (1) अपना पूरा नाम (2 पूरा पता (3) पिता या पति का नाम (4) आयु (5) शिक्षा (6) घर का व्यवसाय (7) अब तक के जीवन काल का विवरण लिखकर आवेदन पत्र हरिद्वार भेजना चाहिए और जिस सत्र में आने की स्वीकृति मिले उसमें आने की तैयारी करनी चाहिए।

बच्चों समेत आने की किसी को भी स्वीकृति न मिलेगी। शिक्षार्थियों का शारीरिक मानसिक रोगों से मुक्त, अनुशासन प्रिय-कम से कम आठवीं कक्षा की शिक्षा योग्यता का होना आवश्यक है।

महिला जागरण अभियान-

उपरोक्त तीनों प्रवृत्तियों की व्यवस्था शान्ति कुंज में है। महिला पत्रिका एवं साहित्य का प्रकाशन-तीन महीने का महिला प्रशिक्षण -एक वर्ष का कन्या शिक्षा पाठ्य क्रम यह तीनों ही विभाग हरिद्वार में रहेंगे शान्ति कुंज इन्हीं प्रवृत्तियों का केन्द्र बनता चला जायगा। इसके अतिरिक्त देश-व्यापी, महाअभियान के रूप में नारी-जागरण की विविध प्रवृत्तियों के साथ सुविस्तृत से किया जायेगा। इसका संचालन सूत्र शान्ति कुंज सम्भालेगा, पर उसका विस्तार शाखा, प्रशाखाओं, केन्द्र संगठनों के रूप में व्यापक बनेगा। आन्दोलन को - संघ, संस्था, परिषद, सभा आदि का रूप न देकर ‘अभियान’ माना जायेगा। इसका पूरा नाम ‘महिला जागरण अभियान’ है। जहाँ भी शाखाएं स्थापित होंगी वे अपना नामकरण ‘महिला जागरण अभियान’ शाखा ........... के रूप में करेंगी। उनके साइन बोर्ड, लेटर पैड, रबड़ स्टैंप इसी नाम से बनेंगे।

यह संगठन युग-निर्माण योजना के सृजन सैनिकों को अपनी-अपनी महिलाएं आगे करके यथा सम्भव जल्दी ही आरम्भ कर देने चाहिए। जो भी महिला नारी जागरण की आवश्यकता अनुभव करती है, उसमें दिलचस्पी रखती है और इसके लिए तैयार है वह संगठन की सदस्य बन सकती है। इसका आर्थिक शुल्क नहीं है। ये सदस्यता पत्र भरेगा। उन्हें सदस्य स्वीकार करके शाखा द्वारा सदस्यता का प्रमाण पत्र दिया जायेगा। इन सदस्यों द्वारा अधिक से अधिक दस वयस्क एवं शिक्षित महिलाओं की कार्यकारिणी समिति बना लेनी चाहिये। वह समिति अपने में से एक कार्यवाहक एवं एक कोषाध्यक्ष नियुक्त करेगी। इसकी सूचना हरिद्वार भेजकर शाखा का पंजीकरण प्रमाण पत्र एवं कार्यवाहक का नियुक्ति पत्र मँगा लें। पदाधिकारियों की भीड़ अपने संगठनों में नहीं लगाई जाती, इससे व्यर्थ का ईर्ष्या-द्वेष फैलता है। शाखा संचालन की दृष्टि से एक कार्यवाहक पर्याप्त है। सभी सदस्याएं टीम स्प्रिट से मिल जुलकर अपनी योग्यता का लाभ संगठन को देती रहेंगी।

(1) हर शाखा संगठन सप्ताह में एक बार अपनी एक विचारगोष्ठी, मीटिंग करता रहेगा। उसमें चार कार्यक्रम होंगे (1) सामूहिक गायत्री जप (2) संक्षिप्त गायत्री हवन (3) सहगान कीर्तन - यह तीन कृत्य प्रायः एक घण्टे में पूरे कर लिये जायेंगे और शेष एक दो घण्टे में यह चर्चा होगी कि स्थानीय शाखा द्वारा महिला जागरण की प्रवृत्तियों को किस प्रकार अग्रगामी बनाया जाय। (4) इसे कार्यक्रम परक प्रवचन कह सकते हैं। सामान्यतया शाखाओं को अपने साप्ताहिक कार्यक्रम इन्हीं चार प्रक्रियाओं के साथ आरम्भ करने चाहिए। यह साप्ताहिक कार्यक्रम एक केन्द्र पर भी होते रह सकते हैं और बारी - बारी आमन्त्रण करने वाली महिलाओं के घरों पर भी हो सकते हैं।

(2) सदस्य महिलाओं के जन्म दिन मनाना। इसके लिए उनके घरों पर जाकर आयोजन करना। स्मरण रहे बच्चों के जन्मदिन निजी रूप से भले ही मनाये जायें शाखा की ओर से अनेक आयोजन न हों।

(3) जहाँ सम्भव हो वहाँ रामायण कथाओं का रात्रि में अथवा दिन में तीसरे प्रहर कार्यक्रम चलाया जा सकता है। यह सप्ताह के रूप में या महीने पन्द्रह दिन में जैसी सुविधा हो वैसे क्रम से चलाया जा सकता है।

(4) सत्य नारायण कथा एक दिन की अथवा पाँच जाय।

(5) पुँसवन संस्कार, नामकरण, अन्न-प्राशन, मुण्डन, विद्यारम्भ यह पाँच संस्कार सदस्याओं के बालकों के मनाये जा सकें ऐसा प्रबंध किया जाये।

(6) तीसरे प्रहर 2 से 5 बजे तक चलने वाले प्रौढ़ महिला विद्यालय के संचालन की व्यवस्था बनाई जाय। उसके लिए अध्यापिका का एवं छात्राएँ जुटाने का प्रयत्न किया जाये।

(7) शाखा में महिला पुस्तकालय आरम्भ किया जाय। उसकी पुस्तकें अपने नगर की शिक्षित महिलाओं के घर पर पहुँचाने एवं वापस लाने का प्रबन्ध किया जाये।

(8) स्कूलों में जाने वाली लड़कियों की शिक्षा को परिपक्व कराने के लिए जहाँ सम्भव हो वहाँ रात्रि पाठशालाएं चलाई जायं।

(9) संगीत एवं भाषण में रुचि रखने वाली महिलाओं को उस प्रकार का अभ्यास कराया जाये ताकि वे स्थानीय शाखा में प्रवक्ता की आवश्यकता पूरी कर सकें।

(10) पर्व त्यौहार आदि पर स्थानीय महिलाओं के सामूहिक आयोजन किये जायें और वर्ष में एक बार वार्षिकोत्सव के रूप में बड़ा आयोजन करने की तैयारी करते रहा जाय।

भविष्य में अपने महिला जागरण अभियानों को बड़े-बड़े काम करने हैं पर अभी आरम्भिक कार्य पद्धति के रूप में दस-दस सूत्री योजना को ही कार्यान्वित करना चाहिए। जब यह क्रम चल पड़े और संगठन में स्थिरता प्रौढ़ता एवं गतिशीलता उत्पन्न हो जाये तो उस परिपक्व पृष्ठभूमि पर आगे की दीवार चुनी जाय और विशाल भवन बनाने का ढाँचा खड़ा किया जाये।

निकट भविष्य में दूसरे चरण के रूप में महिला जागरण अभियान की शाखाओं को जो करना है वह यह है कि जिस प्रकार हरिद्वार में तीन तीन महीने वाले पूर्ण तो नहीं पर उसी आधार पर - उसी से मिलते -जुलते पाठ्यक्रम चलाये जायें। तीन महीने की शिक्षा में प्रायः 75 बौद्धिक प्रवचन महिलाओं को मिलते हैं। उन्हें जल्दी ही छाप दिया जायेगा। हर दिन एक प्रवचन एक लाख शाखाएं अपनी सदस्याओं को सुनावेंगी तो उन्हें यह आभास मिल जायेगा कि शान्ति कुंज से प्रौढ़ महिलाओं को क्या सोचने के लिए - क्या बनने के लिए और क्या करने के लिए कहा जा रहा है। हरिद्वार पाठ्यक्रम का संगीत, शिल्प आदि व्यवस्थाएं भी बन पड़े तब तो सोना सुगन्ध वाली बात रहेगी अन्यथा कम से कम बौद्धिक प्रकाश एवं प्रेरणात्मक मार्ग दर्शन तो मिल ही जायेगा। उतना भी कुछ कम नहीं है।

ठीक इसी प्रकार शान्ति कुंज में चल रही एक वर्षीय कन्या शिक्षा की बौद्धिक शिक्षाएं भी 300 पाठों के रूप में छाप दी जायेंगी। उन्हें भी शाखाएं अपनी कक्षाओं में चला सकती हैं। कुछ गृह उद्योग भी यथा सम्भव उनमें सम्मिलित किये जा सकते हैं और किसी कदर छोटा पूरा एक वर्षीय शिक्षण क्रम भी हर शाखा में चल सकता है। एक बार तीन महीने वाला, दूसरी बार एक वर्ष वाला या फिर जैसा भी जहाँ जो बन पड़े वह शिक्षण क्रम भी किसी न किसी रूप में चलना है। महिला पुस्तकालयों का घर - घर पहुँचाने वापस लाने का क्रम अगले दिनों और भी अधिक सुव्यवस्थित रूप से गतिशील किया जाना है। गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में, प्रभात फेरी, जुलूस, प्रदर्शन से आरम्भ करके आवश्यकता पड़ने पर दहेज, मृत्यु भोज, पशु बलि जैसे अवाँछनीय कृत्यों के विरुद्ध सत्याग्रह तक उस प्रखरता को विकसित करना है। इससे आगे की और भी बहुत सी योजनाएं जिनकी समय पूर्व चर्चा करना अनुपयुक्त ही रहेगा।

जिन शाखाओं में अधिक जीवन दिखाई पड़ेगा उन्हें अपने कार्य को अधिक गति देने के लिए एक दस दिवसीय शिविर सम्मेलन करने के लिए कहा जायेगा। उसकी रूप-रेखा समयानुसार बता दी जायेगी। इसके लिए हरिद्वार से दो प्रचारिकायें भेज दी जायेंगी और भरसक प्रयत्न करेंगी। विश्वास किया जाना चाहिए कि वह दो प्रचारिकाओं का जत्था निर्धारित लक्ष्य को बहुत हद तक पूरा करा सकने में सफल होकर रहेगा।

तीन महीने वाले सत्रों के लिए - एक साल वाले पाठ्यक्रमों के लिए, महिला पुस्तकालयों के लिए जिस साहित्य की आवश्यकता पड़ेगी उसे लिखने और प्रकाशित करने की योजना अत्यन्त गम्भीरता पूर्वक बनाई जा रही है और उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए घोर प्रयत्न करने की ठान ठानी गई है। यही सामग्री गोला बारूद का काम करेगी और उस असुरता के किले पर धुँआधार बरसेगी जिसने नारी की गरिमा एवं क्षमता को पैरों तले रौंदकर रख दिया है। जिसने स्वर्ग का सृजन कर सकने में सर्वथा समर्थ देवी को वासना की कठपुतली और पराधीनता के निविड़ बन्धनों में जकड़ी हुई क्रीत दासी मात्र बनाकर रख दिया है।

महिला जागरण अभियान आरम्भ करने के लिए तत्काल कुछ सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। जैसे (1) सदस्यता के आवेदन पत्र और स्वीकृति के 25 प्रमाण पत्रों वाली सुन्दर सदस्य पुस्तिका (2) शाखा के नियम, संगठन, कार्यक्रम एवं विभिन्न हलचलों के सम्बन्ध में आने वाली समस्याओं का समाधान बताने वाली मार्ग दर्शक पुस्तिका (3) आवश्यक कार्यों के लिए धन संग्रह की रसीद बही (4) छपे हुए लेटर पैड, अंतर्देशीय, कार्ड, लिफाफे आदि तथा रबड़ की मुहर जो रसीद बही समेत इन सभी पर स्थान वाली खाली जगह पर लगाई जा सकें। इस पद्धति से थोड़े से पैसों से ही सब आवश्यक स्टेशनरी शाखाओं को उपलब्ध हो जायेंगी।

यह सभी वस्तुएं महिला शाखाओं को अति स्वल्प मूल्य में उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनाई जा रही है और यह प्रयत्न किया जा रहा है कि शाखा के लिए साइन बोर्ड भी सस्ते मूल्य में मिल सकें।

इनके अतिरिक्त महिला आन्दोलन से सम्बन्ध रखने वाले छोटे प्रचार पत्रक, पोस्टर, कार्ड, रबड़, स्टैंप आदि की एक शृंखला बनाने की योजना है। स्लाइड प्रोजेक्टर पर महिला समस्याओं को रंगीन प्रकाश चित्रों के रूप में प्रदर्शित किये जा सकने के उपकरण जुटाये जायेंगे और संभव हुआ तो चलते-फिरते, बोलते, गाते फिल्म भी शान्ति-कुंज से ही बनने लगेंगे जिनके आधार पर गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले, गाँव- गाँव आकर्षक मनोरंजन के साथ -साथ महिला जागरण का सन्देश सुनाया जा सके और युगान्तर चेतना का पांचजन्य बजाया जा सके। अभी यह योजनाएं तैयारी के क्षेत्र में पक रही हैं। पर आशा की जानी चाहिए कि मनुष्य की कल्पनाएं निष्फल हो सकती हैं, पर महाकाल के संकल्प तो मूर्तिमान होकर ही रहते हैं। आज नहीं तो कल इन योजनाओं को भी कार्यान्वित होना उसी प्रकार देखा जा सकेगा जिस प्रकार भूतकाल में असम्भव समझे जा सकने वाले कार्य एक के बाद एक क्रम से सम्भव होते चले गये हैं।

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