मानवी सत्ता समुद्र जैसी विशाल और महान् है।

March 1975

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जब तक समुद्र की खोज नहीं की गई थी, तब तक वह जहाँ-तहाँ भरा हुआ पानी का एक छोटा-सा खड्डा मात्र था। जिन देशों की सीमा से समुद्र लगता है वे समझते थे उनके यहाँ से कुछ ही मील तक यह पानी का उथला सा गड्ढा भरा है। हाथ से चलने वाली नावों की पहुँच से कुछ और अधिक दूरी तक उनका विस्तार होगा, ऐसी मान्यता थी। हर देश के निकट एक प्रथक समुद्र है, ऐसा लाखों वर्षों तक मनुष्य ने जाना और माना।

अब जबकि ज्ञान की सीमा और खोज की तत्परता बढ़ी है तो समुद्र के बारे में नये-नये एक से एक अद्भुत तथ्य सामने आये और भूतकालीन मान्यता की तुलना में उसे इतना अधिक महत्व मिला है जो अपनी पृथ्वी से भी कहीं अधिक है।

धरती का तीन चौथाई भाग पानी में डूबा पड़ा है। थल सम्पदा का तो दोहन होता रहा है, पर इस जल क्षेत्र के गर्भ में छिपी हुई लक्ष्मी का किसी ने स्पर्श भी नहीं किया है। अब इस ओर ध्यान दिया जा रहा है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए इस सम्पदा को उपलब्ध किया जाय। पिछली शताब्दियों में समुद्र से मछलियों की ही सम्पदा समेटी जाती रही है। अब प्रमुख उपलब्धि तेल की होगी जो गहरे गर्तों को छेद कर ऊपर निकाला जाने वाला है। ऐसे उपकरण बनाये जा चुके हैं जो 12000 फुट गहरे समुद्र तल में बिखरी सम्पदा को समेट कर ऊपर लावें। 6000 मीटर गहरे समुद्र तल में जाकर 1000 मीटर गहरा छेद करने और वहाँ जो कुछ मिले उसे खींच लाने के साधन बन गये हैं। मैक्सिको की खाड़ी में 3582 मीटर गहराई में जाकर 200 मीटर गहरा छेद करने और वहाँ से बहुमूल्य संपत्ति ऊपर लाने में जो सफलता मिली है उससे इस दिशा में उत्साह और भी अधिक बढ़ा है।

धरती की ऊँचाई का कीर्तिमान एवरेस्ट की चोटी है। उसकी ऊँचाई 29000 फुट है। यदि उसे उठा कर समुद्र के सबसे गहरे गड्ढे में डाल दिया जाय तो वह ने केवल डूब जायगी वरन् उसके ऊपर 6000 फुट पानी और भी चढ़ा होगा। समुद्र में हिमालय जैसे कितने ही पर्वत ऊँचाई 2000 फुट है। जबकि समुद्र की औसत गहराई 12000 फुट। 6000 फुट तो उसकी छिछली गहराई मानी जाती है।

सभी समुद्रों का सम्मिलित जल 32 करोड़ घन मील है। इसकी विशालता इस आधार पर नापी जा सकती है कि यदि समुद्र पूरी तरह खाली हो जाये तो उसे पूरी करने में धरती की समस्त नदियों का वर्तमान प्रवाह कोई 800 वर्षों में उसे पूरा कर सकेगा।

समुद्र तल में न केवल जलचर, पर्वत और खड्ड हैं वरन् उसमें विशालकाय वन-प्रदेश भी हैं। वृक्षों और वनस्पतियों की कमी नहीं। इनमें से अधिकाँश ऐसे हैं जो पानी में तैरते रहते हैं इन्हें कहीं जड़ जमाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। समुद्र-तल में यों खनिज पदार्थों की पर्तें ही अधिक हैं फिर भी वहाँ काई सरीखी वनस्पति पाई जाती है। ईल घास के फूल और बीज भी होते हैं और वे पानी में ही जन्म लेते बढ़ते और मरते हैं

औषधियों में काम आने वाले रसायन धरती की अपेक्षा समुद्र में से प्राप्त करने पर उनकी प्रभाव शक्ति कहीं अधिक पाई गई है। उदाहरण के लिए जमीन पर पाये जाने वाले सोडियम, साइनाइड विष की तुलना में समुद्र में पाया जाने वाला वही विष दस हजार गुना अधिक प्रभावोत्पादक होता है।

यों समुद्र बँधा हुआ मालूम पड़ता है, पर वस्तुतः वह भी नदियों की तरह चलता-फिरता है अन्यथा उस जल में सड़ांध पैदा हो जाती। ज्वार-भाटों की हलचलें कारणों से समुद्र-तल में प्रचण्ड जल-धाराएँ बहती हैं जो पानी को इधर से उधर बहाती रहती हैं।

मनुष्य की सत्ता समुद्र की तरह सुविस्तृत है। उसके बारे में क्षुद्र-बुद्धि बहुत कम जानती है - उसे तुच्छ नगण्य समझा जाता है, पर जब गम्भीर तात्विक दृष्टि से अवलोकन किया जाता है तो प्रतीत होता है कि वह न तो छोटा है, न दरिद्र न विभक्त। एक सार्वभौम चेतना इस विराट ब्रह्माण्ड में संव्याप्त है। उसकी अनेकानेक लहरें अनेक जीवधारियों के रूप में अपनी प्रथक हलचलें करती दिखती हैं। इतने पर भी वे मूलतः एक हैं। चमड़े की आँखों से मनुष्य का आकार और वैभव स्वल्प है, पर तत्व-दृष्टि से प्रतीत होता है कि उसकी ऊँचाई और गहराई इतनी अधिक है कि बुद्धि चकरा जाय। उसके गर्भ में इतनी विभूतियाँ भरी पड़ी हैं जिन्हें यदि ढूंढ़ा और पाया जा सके तो सहज ही इन्द्र और कुबेर से बढ़कर बना जा सकता है। समुद्र मंथन की कथा में बताया गया है कि पुरुषार्थ करके विज्ञात सम्पत्ति को करतल गत किया जा सकता है। मंथन, शोधन, दोहन बड़ी बात है। देवता और असुरों ने मिलकर चौदह रत्न निकाले थे। जीवन समुद्र को यदि मथा जा सके तो उसमें से इतने अधिक और इतने बहुमूल्य रत्न मिल सकते हैं जिनके आगे पौराणिक चौदह रत्नों की सम्पत्ति नगण्य प्रतीत होने लगे।

कहा जाता है कि जब पृथ्वी आग के गोले से क्रमशः ठण्डी होकर ठोस बनती जा रही थी तो उस सिकुड़न के प्रभाव से एक टुकड़ा कटकर उछल गया और चन्द्रमा के रूप में चक्कर लगाने लगा। जो जगह खाली रह गई वहाँ विपुल वर्षा का जल भर जाने के कारण समुद्र बन गये। यह घटना प्रायः 30 खरब वर्ष पुरानी मानी जाती है।

कुछ छोड़ने से कुछ प्राप्त होता है का सिद्धान्त अनभ्यस्त होने के कारण अखरने वाला तो है, पर उससे उसकी उपयोगिता में कमी नहीं आती। यदि चन्द्रमा वाला टुकड़ा पृथ्वी ने छोड़ा न होता तो वह कहीं जमा न हो पाता। चन्द्रमा वाला अंशदान करके पृथ्वी ने अपने लिए एक सुन्दर प्रकाश-दीप पाया। समुद्र की विशाल जल राशि और उसके द्वारा मिलने वाले अनेकानेक लाभों का उपयोग किया। त्याग के फलस्वरूप वरदान इसी नीति के अनुसार पाया जाता है। जिनने त्याग का महत्व जाना उन्हें महामानवों की पंक्ति में बैठने का वह सम्मान-गौरव प्राप्त करने का अवसर मिला जो कृपण एवं स्वार्थी को किसी भी प्रकार नहीं मिल सकता।

स्वजनों की समीपता अधिक प्रभावशाली परिणाम उपस्थित करती है, पर वह सम्बन्ध जब झीना और दूरवर्ती होता जाता है तो उसके लाभ भी घटने लगते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी से दूर तो चला गया पर समुद्र पार बसने वाले प्रवासी भारतीयों की तरह अपनी मातृभूमि की सेवा में अभी भी प्रयत्नशील है। ज्वार भाटे समुद्र की स्वच्छता के लिए तथा ऋतु व्यवस्था बनाये रहने के लिए नितान्त आवश्यक हैं। उन्हें चन्द्रमा ही उत्पन्न करता है। चन्द्रमा जब समीप था तब वे ज्वार-भाटे तेजी पर थे। अब वे मध्यवर्ती बन गये हैं। पर जब कुछ समय बाद वह और भी दूर चला जायेगा तो ज्वार-भाटे अत्यन्त मन्द पड़ जायेंगे तब समुद्री विकृति के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न होंगी और उनसे धरती निवासी बुरी तरह प्रभावित होंगे।

इन दिनों ज्वार-भाटों के बीच प्रायः 20- 30 फुट का अन्तर रहता है। यह इसलिए है कि चन्द्रमा हटते हटते 2॥ लाख मील दूर चला गया है। जब वह अलग हुआ ही होगा और पृथ्वी के नजदीक होगा तो निश्चय ही बड़ी प्रचण्ड लहरें उठाता रहा होगा। जन्म से लेकर अब तक की लम्बी अवधि में ने केवल चन्द्रमा ही दूर हटा है वरन् पृथ्वी के घूमने की गति भी बहुत शिथिल पड़ गई है। प्रारम्भिक दिनों में वह 4 घण्टे में ही अपनी धुरी पर घूम लेती थी। हर चार घंटे बाद दिन और हर चार घण्टे बाद रात का दृश्य सामने आता था। अब तो उसमें तीन गुनी शिथिलता आ गई है और 24 घण्टे का दिन रात होता है। खगोलवेत्ताओं का दिन और इतनी ही बड़ी रात होगी। चन्द्रमा दूर खिसकते-खिसकते इतना हट जायेगा कि उसका प्रभाव ज्वार-भाटे के रूप में नगण्य ही दृष्टिगोचर होगा।

अनियन्त्रित उफान और उत्साह - जिसे अनुकूल दिशा न मिली हो कई बार घोर दुष्परिणाम उत्पन्न करता है - जैसा कि ज्वार-भाटों द्वारा नदियों के मुहानों पर उठी हुई जल भित्तियाँ भयंकर परिणाम उपस्थित करती हैं।

नदियाँ जमीन का नमक तथा मिट्टी बहा-बहाकर लगातार समुद्र में पटकती रहती हैं? अस्तु वह दिन-दिन खारा ही नहीं उथला भी होता चला जा रहा है। यों समुद्र का खारी होना हमें निरर्थक लगता है और अखरता है, पर वस्तुतः उससे बहुत लाभ है। सूर्य ताप कर खारा पानी जल्दी भाप नहीं बनता और ठण्डक में जल्दी बर्फ नहीं बनता। यदि पानी मीठा रहा होता तो बादलों का कोई ठिकाना न रहता और लगभग आधा समुद्र हर साल बर्फ बनकर जम जाया करता। खारी समुद्र का भी कहीं-कहीं यह हाल है कि वहाँ सूर्य किरणें सीधी पड़ने से बेहिसाब बादल उठते हैं। लाल सागर के और अटलाँटिक महासागर के धुँआधार बादल वहीं-वहीं बरस कर क्षति पूर्ति न करते रहते तो वे समुद्र कब के सूखकर बादलों में उड़ गये होते। यदि पानी मीठा होता तब तो न जाने क्या विपत्ति हम धरतीवासियों पर आती।

सदा मीठापन ही नहीं कभी-कभी खारीपन और कटु व्यवहार भी आवश्यक होता है। मिठास की ही तरह कटुता की भी अपनी उपयोगिता है। आत्म-रक्षा के लिए प्रायः आक्रमणकारियों के प्रति ऐसी ही कठोरता भरा कडुआपन आवश्यक होता है। समुद्र का पानी यदि खारी न होता तो सूर्य अब तक उसे कब का भाप द्वारा उड़ा ले गया होता। भारी पानी ही अपनी सत्ता को बचाये रखने में सफल रह रहा है। हलके व्यक्तित्वों को अपनी आत्म-रक्षा तक कठिन हो जाती फिर वे बड़े काम तो कर ही कैसे पावेंगे।

लाल सागर के गरम गड्ढों का तापमान 60 अंश तक प्राचीन शोध संकेतों के अनुसार पूर्वी अफ्रीका के तट पर वह क्षेत्र डूबा हुआ है जो कभी ‘लिमूरिया’ के नाम से सम्बोधित किया जाता था। आजकल जिस क्षेत्र में सीशेल्स द्वीप समूह है वहाँ प्राचीन काल में एक विशाल महाद्वीप था। इस क्षेत्र की समुद्री तलहटी में तेल मिलने की पूरी सम्भावना है। अरब देशों में पाई गई तेल पट्टी इसी क्षेत्र में होकर प्रवाहित हो रही है।

मनुष्य की अन्तः सत्ता को यदि टटोला और उभारा जा सके तो भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को समुन्नत बनाने वाले उन साधनों की कमी नहीं रहेगी जिनके अभाव में आज हम असहाय, दीन-दरिद्र बने दयनीय जीवन जी रहे हैं।

समुद्र की लहरों में कई बार भयंकर भँवर पड़ जाते हैं। उनकी चपेट में कोई नाव आ जाय तो उसका बच निकलना असम्भव है। चतुर नाविक इस विपत्ति से भी बच निकलते हैं। वे कोई बड़ी वस्तु इस भँवर में फेंक देते हैं फलतः पानी का क्रम टूट जाता है और कुछ समय के लिए भँवर की सत्ता समाप्त हो जाती है, इसी बीच मल्लाह अपनी नावें निकाल ले भागते हैं।

विपत्ति आने पर यदि हम घबराये नहीं और सन्तुलित मति से उसके निवारण का उपाय सोचें तो कोई ऐसा छोटा आधार ही उस संकट के निवारण का मिल सकता है जैसा कि समुद्री भँवर की सर्वभक्षी विभीषिका से बचने के लिए एक मामूली सा लकड़ी का टुकड़ा काम दे जाता है।

समुद्र जितना महान है उतनी ही बड़ी उसकी क्षमता, सम्पदा और शिक्षा भी है। समुद्र खोजा जाना चाहिए और उससे साधन सम्पदा प्राप्त की जानी चाहिए। मानवी अस्तित्व को गहराई तक समझा और उभारा जाना चाहिए ताकि सुख-शान्ति का अक्षय भण्डार हाथ लग सके।


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