सन् 2000 के आने में अब समय नहीं है। मात्र 25 वर्ष शेष रह गये है। उसके आने के साथ ही संसार इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करता है। विश्व के मूर्धन्य विचारक अभी से वह मानचित्र तैयार कर रहे हैं कि यह पच्चीस वर्ष पूरे होते-होते जिस नई सहस्राब्दी संसार प्रवेश करेगा उसका स्वरूप क्या होगा।
यों शताब्दियाँ ही अपना इतिहास प्रस्तुत करती रहती हैं, सहस्राब्दियों का लेखा-जोखा तो और भी अधिक विलक्षण है। सन् 1000 और 2000 के बीच में जो कुछ बीता है, उसे देखा जाय तो लगेगा कि प्रगति और परिवर्तनों की इतनी बड़ी धारा इस अवधि में बह गई जिसे सृष्टि के आदिकाल से लेकर अब तक के प्रवाह में अनुपम कहा जा सकता है। हजार वर्ष पूर्व का कोई व्यक्ति यदि जीवित अवस्था में कहीं रह रहा हो तो और उस समय की तथा अबकी परिस्थितियों की तुलना करें तो प्रतीत होगा कि वह किसी सपने के लोक में आ पहुँचा है। उन दिनों रेल, मोटर, तार, रेडियो, टेलीविजन, वायुयान, जलयान, बिजली, अन्तरिक्ष यात्रा, कल-कारखाने, कंप्यूटर, विशालकाय पुल, सड़कें, बैंक, डाकखाना, करेंसी, तिजोरी, आदि के साधन देखना तो दूर विश्वास करने योग्य कल्पना भी नहीं थी। पर आज तो इतना वैभव बिखरा पड़ा है कि हजार वर्ष पूर्व की स्थिति से आज की स्थिति की तुलना किसी भी तरह नहीं की जा सकती। ठीक इसी तरह अगली सहस्राब्दी के अन्त तक स्थिति क्या पहुँचेगी, आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।विज्ञान और बुद्धिवाद जिस क्रम से विकसित हो रहा है उसे देखते हुए परिवर्तन का क्रम इतना तेज चलेगा कि सहस्राब्दियाँ-शताब्दियाँ तो दूर प्रत्येक दशाब्दी ही पिछली दशाब्दी की तुलना में आश्चर्यजनक गति से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ गई होगी। अब से तीस वर्ष पहले अणुशक्ति का हलका-फुलका आभास भर था। अणु चालित बिजली घर, अणु आयुध तो पिछले ही दिनों सामने आये है और विकास अथवा विनाश के सबसे बड़े माध्यम बन गये हैं। दस वर्ष पहले अंतरिक्ष यात्रा एक कल्पना भर थी पर अब तो उसके माध्यम से मनुष्य जाति का भाग्य निर्धारण हो सकने की सम्भावना है।
सन् 2000 एक सहस्राब्दी का अन्त और दूसरी सहस्राब्दी का शुभारम्भ है। यह संध्याकाल गणना की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। आशा की गई है कि इसके आस-पास के कुछ वर्ष अत्यन्त महत्वपूर्ण होंगे। युगान्तरीय परिवर्तनों का अद्भुत स्वरूप सामने आवेगा। यों जो 25 वर्ष ही अगली सहस्राब्दी के स्वरूप की आधारशिला रखेंगे। इस अवधि में परिवर्तनों की गति इतनी तीव्र हो जायेगी कि उसमें विश्व को अनेकों नई-नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जबकि पिछली विकट समस्याएं पिछड़ी हुई प्रतीत होंगी और वे अपने आप ही हल हो जायेंगी।
इक्कीसवीं सहस्राब्दी किस रूप में किन सुविधाओं और समस्याओं के साथ संसार के-मनुष्य जाति के सामने आ रही है उसका आभास प्राप्त करने के लिए संसार की कितनी ही साधन सम्पन्न मूर्धन्य संस्थाएं भारी अनुसंधान कर रही हैं। उनकी भविष्य कल्पना ज्योतिष के आधार पर नहीं प्रस्तुत प्रयासों और परिवर्तनों की प्रक्रिया का सही रूप में मूल्याँकन करते हुए विशुद्ध गणित और तर्क प्रमाणों के आधार पर की जा रही हैं। इंग्लैंड की समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत भावी तीस वर्ष समिति बनी है। फ्रांस में फ्यूचर विल्स संस्थान काम कर रहा है। अमेरिका में कला और विज्ञान एकेडेमी के अंतर्गत सन् 2000 आवेगा का कार्यक्रम इसी प्रयोजन के लिए बहुत दिलचस्पी के साथ चल रहा है। उनके सुविस्तृत कार्यालय संसार भर की साँख्यिकी की हर शाखा के साथ सम्बन्ध स्थापित करके किन्हीं निष्कर्षों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। रूस, जापान, जर्मनी आदि में भी इस कार्य के लिए साधन सम्पन्न संस्थान काम कर रहे हैं।
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डा. ग्लेन टी. सी. वोर्ग ने भविष्य की विचित्र सम्भावनाओं पर कई भाषण दिये हैं। विज्ञान शास्त्री डा. इजाक एसिमोव का एक दिलचस्प लेख ‘न्यूयार्क पोस्ट’ में प्रकाशित हुआ था स्टैनल कुव्रिक और आर्थर सी. क्लार्क द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत ‘2001’ ए स्पेस ओडिसी संसार भर की चर्चा का विषय बना। ऐसे ही प्रस्तुतीकरण अनेक देशों में अपने-अपने ढंग से हुए हैं। इन लोगों ने जो कहा लिखा है वह अटकल–पच्चू कल्पनाओं के आधार पर नहीं वरन् तथ्य और कारण बताते हुए प्रस्तुत आंकड़ों को साक्षी देते हुए, सम्भावनाओं का निर्धारण किया गया है।
इंग्लैण्ड की ‘जाड्रल बैक रेडियो आवजरेटरी के डायरेक्टर ‘प्रो0 वर्चर्ड लावेल’ ने परिवर्तनों की वर्तमान गति की समीक्षा करते हुए लिखा है। पिछले दिनों प्रत्येक दशाब्दी पिछली दशाब्दी की तुलना में प्रायः दूनी गति से परिवर्तन प्रस्तुत करती रही है। दो को दूना चार, चार का आठ, आठ, का सोलह, सोलह का बत्तीस क्रम से यह तीव्रता क्रमशः इतनी गति पकड़ेगी कि कुछ समय उपरान्त कुछ ही वर्षों में इतने परिवर्तन हो जायेंगे मानो कितना ही युग आगे बढ़ा चला गया हो, इस आधार पर सन् 2000 के जो 25 वर्ष शेष हैं उन्हें भी कम महत्वपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए। इसमें भी अणु युद्ध जैसी अप्रत्याशित घटनायें घटित हो सकती हैं और संसार का नकशा एकदम उलटा हो सकता है। इसी प्रकार कोई अन्य आविष्कार मनुष्य के हाथ में संसार के भविष्य निर्धारण की शक्ति दे सकते हैं। (1) जनसंख्या वृद्धि का प्रवाह (2) तकनीकी विकास (3) सामाजिक ढांचे में चल रहे परिवर्तन (4) संपत्ति उपार्जन की सुविधा और उस पर अधिकार (5) राष्ट्रों के बीच आपसी सम्बन्ध। इन पाँचों बातों पर संसार का भविष्य बहुत कुछ निर्भर रहेगा। इनमें जैसा प्रवाह इन दिनों रहा है उसके आधार पर निकट और सुदूर भविष्य की कल्पनाओं के भवन खड़े किये जा रहे हैं, पर इन या अन्य क्षेत्रों में ऐसे अप्रत्याशित परिवर्तन भी हो सकते हैं जिससे सोचे हुए आधार निरर्थक सिद्ध हों और कोई प्रचण्ड धारा नये स्वरूप में ही प्रवाहित होकर नया नक्शा बनाकर खड़ा कर दे।
हडसन इन्स्टीट्यूट अमेरिका के विज्ञानी हर्मन कान का कथन है कि परिवर्तनों की उस गति का समझना अति सूक्ष्म बुद्धि का काम है जो कल महत्वपूर्ण प्रस्तुतीकरण के रूप में आने के लिए बेतरह तिलमिला रही हैं। यदि उसका सही मूल्याँकन किया जा सके तो भविष्य को- सम्भावनाओं को बहुत कुछ सही रूप में जाना जा सकता है और उनके साथ तालमेल बिठाने के लिए समय रहते कदम उठाया जा सकता है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए भूतकालीन सूक्ष्म हलचलों और उनकी प्रतिक्रियाओं का लेखा-जोखा लेने से बहुत कुछ सीखा जा सकता है और भविष्य कल्पनाओं के सूत्रों को उपलब्ध किया जा सकता है।
भविष्य की सम्भावनाओं का स्वरूप प्रस्तुत करने के लिए अकेला भौतिक विज्ञान नहीं वरन् चिन्तन की प्रत्येक धारा का योगदान लिया जा रहा है। दर्शन, मनोविज्ञान, इतिहास, समाज शास्त्र, नीतिशास्त्र राजनीति, भू-भौतिकी आदि चिन्तन की अनेकों धाराओं का सम्मिलित प्रयास ही भविष्य सम्भावनाओं को सही रूप में प्रस्तुत कर सकता है। उपरोक्त प्रयत्नों में यह सभी धाराएं समन्वित रखी गई हैं।