“ऐसे नहीं बनो रे” (Kavita)

September 1973

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तन बूढ़ा होगा, होने दो, लेकिन प्राण जवान चाहिये। महाप्राण से महा मिलन को, अरे! मचलते प्राण चाहिए॥

‘मिलन’ विश्व की तरुणाई से, बूढ़े मन का कब होता है। महाप्राण के आलिंगन में, कब प्राणों का शव होता है॥

महाप्राण से महामिलन को, यौवन भरा उफान चाहिये। तन बूढ़ा होगा, होने दो, लेकिन प्राण जवान चाहिये॥

लेती आई मजा मिलन का, सदा-सदा से नयी जबानी। बूढ़े प्राण रहे बहलाते अपने को, सुन कथा, कहानी॥

अगर चाहिए मजा मिलन का, तो वैसा सामान चाहिये।। महाप्राण से महा मिलन को, अरे! मचलते प्राण चाहिये॥

प्राणवान होने का परिचय दे हम मुस्काने बिखरा कर। संघर्षों की भरी जवानी से अपना यौवन टकराकर॥

महाप्राण दे स्वयं निमन्त्रण, और अधिक क्या मान चाहिये। तन बूढ़ा होगा, होने दो, लेकिन प्राण जवान चाहिये।

महामिलन से मिली सुधा का, जन-मानस को पान करा। जन-मानस के सुप्त प्राण को, शंखनाद कर चलो जगाये।

युग के प्राणों को लहराने, प्राण-सुधा का पान चाहिये। महाप्राण से महामिलन को अरे! मचलते प्राण चाहिये॥

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*समाप्त*


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