अपनी-अपनी विचारणा और भावना के अनुरूप हर व्यक्ति स्वयं अपने भाव-लोक का सृजन करता है। ब्राहा परिस्थितियां कुछ भी हो, जैसी तरंगें अपने चहुँ ओर आन्दोलित होती रहेगी, वैसी ही अनुभूतियां होगी, मनः स्थिति की प्रतिक्रिया बाहर आकर परिलक्षित होगी। परोक्ष जगत की यह एक अद्भुत संरचना है जिसे स्वतः आंखें देख तो नहीं सकती, उनकी अनुभूति अवश्य कर सकती है। इसे बदलना, अनुकूल बना लेना हर मनुष्य के लिए अपने पुरुषार्थ के बलबूते सम्भव है।