संग्रह का अन्त बिखराव है। अभ्युदय के अनन्तर अवसान आता है। संयोग की परिणति वियोग है। इस परिवर्तन चक्र पर घूमते हुए संसार में स्थिर तो एकमात्र “धर्म” ही है।