यह सोने का पिंजड़ा है

September 1971

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(लाखन सिंह भदौरिया)

दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो।रात से मत तिलमिलाओ, प्रात की हंसती किरण दो॥

भावनाओं से भरा मन,साधनाओं से हरा मन,हारते पग को समय की चेतना के नव चरण दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

तप प्रभा से फट रही पौ,युग निशा में जल रही लौ,तुम सृजन के देवता को खिलखिलाता आचरण दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

यदि पिघल कर प्राण बहने,चल पड़े हो लहर बनने,हो जगी बैचैनियां तो दर्द दुख को सन्तरण दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

व्यष्टि में जो बिन्दु बन्दी,कर सके जो सिन्धु बन्दी,उस समष्टि उपासना को, भक्ति के गीले नयम दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

व्यक्ति में विस्तार कितना,बूँद, पारावार जितना,प्यास कुँभज सी जगाकर, तुम तुषा की तृप्ति कण दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

प्यास को वरदान कर दे,तृप्ति की जो दान कर दे,त्यागमय उस चेतना को भावनाओं के नमन दो।दो न आँसू की दुहाई, साधनों के सुमन दो॥

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118