औषधियों का अत्याचार

September 1971

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सिद्धान्तों-आदर्शों की चर्चा करना एक बात है और उनका परिपालन दूसरी। चर्चा एवं व्यवहार में इनकी एकरूपता स्थापित हो जाने पर महानता के पथ पर अग्रसर होने का सुदृढ़ आधार बन जाता है। यह न हुआ तो स्थिति उपहासास्पद हो जाती है। सिद्धान्त एवं आदर्श आचरण में न उतर पाने के कारण कोई प्रभाव नहीं दिखा पाते और वाक् विलास के साधन मात्र बनकर रह जाते हैं। इसके विपरित जब ये वाणी तक ही सीमित न रह कर चरित्र में घुलकर व्यवहार के अंग हो जाते हैं तो जनमानस को सत्प्रेरणा देने के सशक्त आधार बन जाते हैं।

ईमानदारी, प्रमाणिकता, चरित्रनिष्ठा की परख तो विशिष्ट अवसरों पर हुआ करती है। परीक्षा की घड़ियों से गुजरने के पूर्व तो हर व्यक्ति ईमानदार चरित्रनिष्ठ है। किन्तु इस यथार्थता का बोध कसौटी पर कसने से होता है। सोने की वास्तविक परख अग्नि में तपने के बाद होती है। आग से दूर रहकर तो हर चमकदार वस्तु सोना होने का दावा कर सकती है, किन्तु अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद यह प्रामाणित होता है कि वस्तुओं का दम्भ कितना मिथ्या था। प्रायः अधिकाँश व्यक्ति बातें आदर्शों एवं सिद्धान्तों की करते हैं। किन्तु देखा यह जाता है कि अवसर प्रस्तुत होते ही उनमें से अधिकतर टिके नहीं रह पाते। लोभ-मोह के प्रवाह उन्हें बहा ले जाते हैं। उस समय तात्कालिक लाभ ही सूझता और उपयोगी प्रतीत होता है। लाभ उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पाते। इस युग प्रवाह में डूबते-उतरते-बहते समाज के विपुल समुदाय को आज सर्वत्र देखा जा सकता है।

थोड़े से व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनकी ईमानदारी अडिग और अटूट होती है। बड़ी से बड़ी हानि उठाकर भी वे अपनी इस विशेषता की रक्षा करते हैं। लोभ-मोह के अवसर उन्हें विचलित नहीं कर पाते। अपनी प्रामाणिकता को हर कीमत पर अक्षुण्ण रखने का प्रयास करते हैं चाहें इसके लिए कितनी भी कष्ट कठिनाइयाँ क्यों न उठानी पड़ें। यह वर्ग ही समाज का मेरुदण्ड होता है। देश-जाति और इतिहास ऐसे ही व्यक्तियों से धन्य बनता और आगामी पीढ़ियों के श्रद्धा सुमन चढ़ते हैं।

प्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ जीवन भर घोर विपन्नता और अभावों से ग्रस्त रहे। यहाँ तक कि पेट भरने के लिए भोजन और ठंड से बचाव के लिए वस्त्रों तक की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में न हो सकी। जीवन भर कठोर श्रम करते हुए किसी तरह आजीविका का प्रबन्ध करते रहें। वे चाहते तो अपनी साहित्य कृतियों के आधार पर सम्पदा अर्जित कर सकते थे लेकिन यह तो उनके आदर्शों के खिलाफ था। उन्हीं दिनों राबर्ट वाल्पोल अपनी पार्टी के प्रचार के लिए 50 हजार पौंड प्रतिवर्ष लेखन कार्य पर खर्च करता था। उसने गोल्डस्मिथ को भी इस कार्य के लिए आमंत्रित किया। तब गोल्डस्मिथ ने उत्तर दिया-”किसी पार्टी के लिए अपनी कलम बेचने की अपेक्षा में अपनी आवश्यकताएँ स्वयं पूरी कर सकता हूँ। आपकी सहायता की मुझे कोई जरूरत नहीं।”

चार्ल्स द्वितीय ने अपने ऐश्वर्य-विलास के साधन जुटाने के लिए राजकीय सम्पति को बेचना आरम्भ किया। उसने चंद चाँदी के टुकड़ों के सहारे राज्य के सभी प्रमुख व्यक्तियों को अपने साथ मिला लिया। लेकिन संसद सदस्य मार्बल एक ऐसा दृढ़ चरित्र सम्पन्न व्यक्ति था जिसे चार्ल्स को कोई भी प्रलोभन नहीं खरीद सका। उसने राजा की अनैतिक गतिविधियों के विरुद्ध जन आन्दोलन खड़ा किया। चार्ल्स के संकेत पर राज्य के कोषाध्यक्ष ने मार्बल को भारी रकम देकर डिगाना चाहा। एक हजार पौंड की उस समय बड़ी कीमत थी - उसे लौटाते हुए मार्बल ने कहा-”मुझे पता है आप मुझ पर यह कृपा क्यों कर रहे हैं, लेकिन में भी कर्त्तव्य पय से किसी कीमत पर विचलित नहीं हो सकता। ईश्वर ने जीवन-निर्वाह की पर्याप्त सामर्थ्य मुझे दी है।” मार्बल मृत्युपर्यन्त अवाँछनीयता के विरुद्ध लड़ता रहा। उसकी समाधि पर अब भी ये शब्द अंकित है- “सदाचारी व्यक्ति उसके प्रति श्रद्धा रखते थे लेकिन दुराचारी डरते थे। कई लोग उनके अनुयायी थे लेकिन उसकी महानता की तुलना कोई नहीं कर सकता।”

वैज्ञानिकों के इतिहास में सर हेंफरी डेवी और फैराडे ने ऐसा आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया जिस पर मानव जाति के श्रद्धा सुमन सदैव चढ़ते रहेंगे। हेफरी डेवी ने खदानों में काम करने वाले मजदूरों को आजीविका उपार्जन के लिए जब जीवन-मृत्यु के बीच झूलते देखा तो सिहर उठे। सोचने लगे-क्या इनके असुरक्षित जीवन के लिए कुछ किया जा सकता है ? इसी दिशा में निरन्तर चिन्तन, प्रयोग परीक्षण और संकल्पबल के सहारे ‘सेफ्टी लैंप’ के आविष्कार में अनन्तः सफलता प्राप्त कर ली। उन्होंने उसे ‘पेटेन्ट करवा कर धन कमाने के बजाय जनता में बिना किसी मूल्य के प्रचलित कर दिया। इस पर उनके मित्र ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा-”यदि इसे पेटेन्ट करवा देते, तो पाँच या दस हजार वार्षिक कमा सकते थे।” तब डेवी ने उत्तर दिया - “मेरा तो उद्देश्य मानवता की सेवा करना है न कि धन कमाना। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मेरे अपने दो हाथ पर्याप्त हैं अधिक धन मुझे पथ-भ्रष्ट कर देगा धन-सम्पत्ति से न तो मनुष्य को यश मिलता है और न ही आन्तरिक सन्तोष।”

डेवी का शिष्य फैराड भी विज्ञान का महान साधक था। उसने भी अपने सभी आविष्कारों को पेटेन्ट न करवा कर निर्धनता को ही स्वीकार किया। मेडम क्यूरी व पेरी क्यूरी ने भी रेडियम के आविष्कार को जन-सामान्य में प्रचलित कर दिया। क्यूरी दम्पत्ति न केवल आविष्कारक थे वरन् महान जनसेवी भी थे। वे अपने आविष्कार से लाखों की सम्पत्ति कमा सकते थे लेकिन उन्होंने अभावपूर्ण जीवन को हँसते-हँसते स्वीकार किया। उन्होंने स्वयं अपने हाथों से कितने ही गरीब रोगियों की उपचार व सेवा सुश्रूषा की।

फ्राँस के प्रसिद्ध वकील चेमिलार्ड के जीवन की एक घटना से उनकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है। चेमिलार्ड एक मुकदमा इसलिए हार गये क्योंकि उन्होंने भूल वश एक महत्वपूर्ण कागज अदालत को नहीं दिखाया। चेमिलार्ड स्वयं अनभिज्ञ थे कि वह कागज उनके पास है। मुवक्किल हानि का यह आघात सहन नहीं कर सका। उसने क्षोभ और क्रोध में भरकर कहा कि “आपकी छोटी सी गलती से मैं बरबाद हो गया।” बाद में ढूँढ़ने पर वह कागज उन्हें अपने बैग में मिल गया। परन्तु उस मुकदमे की पुनः कोई अपील न हो सकी। इस पर वकील ने मुवक्किल की क्षतिपूर्ति अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति देकर की लेकिन प्रामाणिकता पर किसी प्रकार की आँच न आने दी।

ग्राह्य ने घड़ी निर्माण के क्षेत्र में कुछ ही दिनों में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। उसकी यह विशेषता थी कि काम करते समय उसका पूरा ध्यान अपनी बनाई वस्तु के गुण और उपयोगिता पर रहता था। जब तक वह अपने काम को सर्वोत्तम ढंग से नहीं कर लेता तब तक उसे सन्तोष नहीं मिलता। एक बार एक भारतीय ने उससे एक घड़ी खरीदी। ग्राह्य ने घड़ी बेचते हुए कहा “यदि आप इसमें कुछ मिनटों का भी अन्तर पायें तो मैं आपके दाम लौटा दूँगा” सात वर्ष बाद वह व्यक्ति भारत से लौटा। उसने ग्राह्य से कहा-”घड़ी में कुछ सेकेंडों का अन्तर हो जाता है फिर भी घड़ी बहुत अच्छी है अन्तः इसे वापिस नहीं करूंगा।” लेकिन ईमानदारी की कसौटी पर हर बार खरा सिद्ध होने वाला ग्राह्य इस पर कैसे सन्तोष करता ? बहुत कहने समझाने के बावजूद भी ग्राह्य ने घड़ी वापिस ले ली और उसके दाम लौटा दिये।

ईमानदारी, प्रामाणिकता और चरित्रनिष्ठा की कसौटी पर खरे उतरने वाले व्यक्ति जनसामान्य के बीच प्रकाश स्तम्भ की तरह होते हैं। अपनी दृढ़ चरित्रनिष्ठा पर स्वयं गौरव और आत्म सन्तोष तो अनुभव करते ही हैं, देश, जाति और इतिहास भी ऐसे व्यक्तियों से धन्य बनता है।


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