बिन्दु पग चलइ-सुनइ बिनु काना

September 1971

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10 अक्टूबर 1966 को सायं 5 बजकर 20 मिनट पर न्यूटन एलिनाथ (अमेरिका) नामक स्थान पर पाँच व्यक्ति एक साथ घूमने के लिए निकले। अचानक उनकी दृष्टि धरती से मात्र 15 मीटर ऊपर उड़ती एक यान जैसी वस्तु पर पड़ी। कुछ ही मिनट बीते होंगे कि उड़ती हुई वस्तु का अगला हिस्सा ऊपर की ओर उठा और देखते ही देखते वह अदृश्य हो गई। देखने वाले उन व्यक्तियों ने बताया कि वह उड़ने वाली वस्तु लगभग 6 मीटर लम्बी, 2 मीटर व्यास वाली, एल्युमिनियम जैसी चमकदार धातु से बनी सिगार जैसी शक्ल की थी। उसके अगले हिस्से में छोटा सा छेद था जो प्रवेश द्वार जैसा लगता था। पेंदे के पिछले भाग का रंग हल्का हरा भूरा था। उसके चारों ओर हल्की नीली धुँध थी। यान से किसी प्रकार की ध्वनि तो सुनाई नहीं पड़ रही थी किन्तु वातावरण में एक विचित्र प्रकार के कम्पन का आभास मिल रहा था। उस स्थान से दस किलोमीटर दूर भी कुछ व्यक्तियों ने ऐसे ही यान को कुछ ही सेकेंड के अन्तर से देखा। उनके द्वारा बताये गये विवरण भी ठीक उसी प्रकार के थे।

लेकन हीथ (इंग्लैण्ड) में रात्रि को तीन बजे रायल एयर फोर्स के राडार संयंत्रों ने तेज गति से उड़ती हुई कई उड़नतश्तरियों को देखा। पृथ्वी से 1200 मीटर ऊँचाई पर साढ़े तीन हजार किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से वह पश्चिम दिशा की ओर उड़ रही थी। इतनी ही ऊँचाई पर उड़ते हुए एक विमान के चालक ने पाया कि उड़न तश्तरी जैसे यान किन्हीं-किन्हीं स्थानों पर धीमी गति करके किसी वस्तु का निरीक्षण करते प्रतीत हो रहे हैं। रायल एयर फोर्स के एक लड़ाकू विमान ने उनका पीछा किया किन्तु कुछ ही दूरी पर जाकर वे अदृश्य हो गई। इंग्लैण्ड के अनेकों स्थानों पर उसी रात उड़न तश्तरियों को अनेकों व्यक्तियों ने देखा। तथ्य की खोज करने वालों ने जितने भी प्रत्यक्षदर्शियों के बयान लिए उन सबने घटनाक्रम का विवरण एक ही जैसा सुनाया।

सैकड़ों वर्ष से संसार के अनेकों देशों में उड़न तश्तरियों के विषय में समय-समय पर प्रमाण मिलते रहे हैं किन्तु आश्चर्य यह है कि उनका रहस्य अभी रहस्य ही बना हुआ है। वैज्ञानिकों के अनेकों प्रयास भी इस रहस्योद्घाटन में असमर्थ सिद्ध हुए है। ऐसी सम्भावना है कि जिस प्रकार पृथ्वी के वैज्ञानिक अन्य ग्रह नक्षत्रों की टोह लेने के लिए समय-समय पर अपने उपग्रह भेजते रहते हैं उसी तरह अन्य ग्रहों के निवासी भी पृथ्वी पर खोज के लिए अपने यान भेजते हैं। तथ्य जो भी हो। इतना तो सुनिश्चित कि उड़न तश्तरियों की अद्भुत बनावट, तीव्र गति एवं स्वनियन्त्रित प्रक्रिया को देखकर ऐसा लगता है उनका संचालन कुशल मस्तिष्क द्वारा हो रहा है। इनके आविष्कारों की असाधारण वैज्ञानिक प्रगति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अकस्मात दिखायी पड़ती है और बिना कोई प्रमाण छोड़े देखते ही देखते अदृश्य हो जाती है। उनका अचानक गायब हो जाना इस बात का प्रमाण है कि उनके बनाने वालों ने ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जिससे वस्तु को किसी ऐसी अवस्था में पहुँचा दिया जाय कि वह दिखायी न पड़े।

अपने भीतर अगणित रहस्य छिपाये आज भी संसार के वैज्ञानिकों को चैलेंज देती हुई दिखायी पड़ती है। 24 अक्टूबर 1978 ‘मेलबोर्न’ में एक छोटा विमान चालक सहित उड़न तश्तरी को देखने के बाद लापता हो गया। घटना इस प्रकार बतायी जाती है। बीस वर्षीय युवा चालक फ्रेडरिक वालेंटिच ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया के बीच चार्टर्ड उड़ान भरी। चालक फ्रेडरिक ने मेलबोर्न हवाई अड्डे के ऊपर से रेडियो संदेश में हवाई अधिकारियों से पूछा कि 1500 मीटर की ऊँचाई पर उसी क्षेत्र में कोई दूसरा विमान तो नहीं उड़ रहा है। उसने अधिकारियों को सूचना देते हुए कहा कि वह इसलिए पूछ रहा है कि उसे मेलबोर्न से 182 मील दूर किंग आइसलैंड के पास से उड़ते हुए एक लम्बी आकार की कोई वस्तु तेज गति से उड़ती हुई दिखायी पड़ रही है। हवाई अड्डे के अधिकारियों के उत्तर की बिना प्रतीक्षा किए उसने अपना सन्देश जारी रखा। उसने बताया कि लम्बी आकार की वस्तु तीव्र गति से उड़ती हुई मेरे यान की ओर आ रही है। अब मेरे विमान के ठीक ऊपर आकर चक्कर काट रही है। उसके भीतर से हरा प्रकाश निकल रहा है। फ्रेडरिक के अन्तिम शब्द थे कि ‘मेरे विमान के इंजन में रुकावट सी आ रही है। यान अब भी मेरे विमान के ऊपर छाया है। इसके बाद रेडियो पर धातु के टकराने जैसा शब्द तेज शोर सुनाई पड़ा तथा विमान का नियन्त्रण कक्ष से संबंध टूट गया। मेलबोर्न हवाई-अड्डे से अनेकों जहाजों ने खोज के लिए उड़ान भरी किन्तु चालक एवं यान का कुछ भी पत्ता न चल सका और न ही किसी प्रकार की दुर्घटना का कोई चिन्ह ही मिला।

कहीं जासूसी करने की दृष्टि से छोड़े गए किसी देश के विमान तो नहीं हैं, पर प्राप्त तथ्य बताते हैं कि इतने विकसित किस्म के विमान अभी तक धरती पर बने नहीं हैं। कम से कम इंजन के बारे में तो स्थिति सर्वत्र एक जैसी है जबकि यह विलक्षण तश्तरियाँ हर बार किसी अविज्ञात ऊर्जा द्वारा संचालित पाई गई।

5 जनवरी 1979 इंडियन एक्सप्रेस दैनिक पत्र में एक घटना प्रकाशित हुई थी जो इस तरह है। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्स वर्ग नगर के समीप एक महिला एवं उसके पुत्र ने अपने घर के निकट एक उड़न तश्तरीनुमा वस्तु को उतरते देखा। प्रत्यक्षदर्शी श्रीमती भीगन क्वीजेट ने एक इन्टरव्यू में बताया कि उनके लड़के ने रात्रि को कुत्ते को भौंकता देखकर उन्हें जगाया। दोनों बाहर आए तो कुत्ता एक दिशा की ओर दौड़ा। दोनों कुत्ते के पीछे-पीछे चल पड़े। लगभग बीस गज की दूरी पर एक तश्तरी जैसी आकृति की वस्तु खड़ी थी। सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यान से सटे हुए मनुष्याकृति से मिलते-जुलते पाँच व्यक्ति खड़े थे। अलग-अलग लिए गये इण्टरव्यू में उसके पुत्र ने भी यही बात बतायी। श्रीमती क्वीजेट ने अपने पुत्र से कहा कि जल्दी से अपने पिता को बुला लाओ। इतने में ही पाँचों मनुष्याकृतियाँ तश्तरी के खोह में समा गई और देखते ही देखते उड़न तश्तरी हवा में गायब हो गई।

ऐसी घटनाएँ भारत वर्ष में भी घटित हो चुकी हैं। 3 अप्रैल 1978 को रात्रि 9 और 10 बजे के बीच अहमदाबाद, (गुजरात) राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र के अनेकों स्थानों पर सैकड़ों व्यक्तियों ने उड़न तश्तरी देखी। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इसे अपने शोध का विषय बनाया है। उन्होंने इसका नाम यू. एफ. ओ. (अनआइडेण्टीफाइड फ्लाइट आब्जेक्ट) दिया है। शोध के लिए जे. एलन हाइनेक ने नार्थ वेर्स्टन विश्व विद्यालय में यू.एफ.ओ. केन्द्र की स्थापना की है जिसका लक्ष्य है रहस्यमय उड़न तश्तरियों की जानकारियाँ एकत्रित करना।

डॉ. फ्रेडरिक जैसे वैज्ञानिक का विश्वास है कि सभ्यता एवं जीवन का केन्द्र पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है। अन्य ग्रहों की अभी पूरी जानकारी हमें नहीं है किन्तु ऐसा लगता है कि जीवन अन्यत्र भी है। हमारी तुलना में वहाँ सभ्यता कहीं अधिक विकसित है। इसका एक प्रमाण है-उड़न तश्तरियाँ। उन्होंने यह भी कहा कि पृथ्वी ऊर्जा का स्त्रोत है। यह भी सम्भावना है कि अन्य ग्रहों के निवासी पृथ्वी पर ऊर्जा संग्रह करने आते हों और इसकी तकनीक उन्होंने विकसित कर ली हो।

निस्सन्देह अभी भी मानवी जानकारियाँ सीमित हैं। एक सामान्य-सी उड़न तश्तरी वर्षों से रहस्यमय बनी हुई है और तथ्य का बोध कराती हैं कि ब्रह्माण्ड की असीम जानकारियों के लिए उसे पुरुषार्थ की एक लम्बी मंजिल पूरी करनी होगी।


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