खोटे सिक्के

May 1968

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एक दिन एक साहूकार को शक हुआ उसके खजाने में कहीं खोटे सिक्के तो नहीं आ गये। यह जाँचने के लिये उसने सब सिक्के एक जगह इकट्ठे किये और उनकी पड़ताल शुरू की।

अच्छे सिक्के तिजोरी में और खराब सिक्के एक तरफ पटके जाने लगे तो खोटे सिक्के घबराये। उन्होंने परस्पर विचार किया- ‘‘भाई! अब तो अपने बुरे दिन आ गये, यह साहूकार अवश्य हम लोगों को छाँट-बीन कर तुड़वा डालेगा, कोई युक्ति निकालनी चाहिये जिससे इसकी नजर से बच कर तिजोरी में चले जायें।”

एक खोटा सिक्का बड़ा चालाक था। उसने कहा- ‘‘भाइयो, हम लोग अगर जोर से चमकने लगें, तो यह साहूकार पहचान नहीं पायेगा और अपना काम बन जायेगा।”

बात सबको पसन्द आयी। सब खोटे सिक्के दिखावटी चमकने लगे और सेठ की तिजोरी में पहुँचने लगे। खोटे सिक्कों को अपनी चालाकी पर बहुत अभिमान हुआ।

गिनते-गिनते एक सिक्का नीचे जमीन पर गिर पड़ा। नीचे पत्थर पड़ा था सिक्का उसी से टकराया। साहूकार चौंका- हैं यह क्या, चमक तो अच्छी है पर आवाज कैसी थोथी है। उसे शंका हो गई। दुबारा उसने फिर से सब सिक्के निकाले और पटक-पटक कर उनकी जाँच शुरू की। फिर क्या था असली सिक्के एक तरफ, नकली सिक्के एक तरफ।

खोटों की यह दुर्दशा देख कर एक नन्हा सा असली सिक्का हँसा और बोला- ‘‘मेरे प्यारे खोटे सिक्को! दिखावट और बनावट थोड़े समय चल सकती है, खोटाई अन्ततः इसी तरह प्रकट हो जाती है। कोई भी मनुष्य अपनी कमजोरी नहीं छिपा सकता।


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