अपना ओछापन क्यों बताऊँ ?

May 1968

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श्री रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया था। इसी समय शशिधर चूड़ामणि उनके पास आये और बोले- ‘‘स्वामी जी! यदि आप अपने मन को एकाग्र करके कहें कि ‘रोग चला जा, रोग चला जा’ तो आपका रोग अवश्य मिट जायेगा।”

परमहंस बोले- ‘‘जो हृदय मुझे सच्चिदानन्द माँ! का स्मरण करने हेतु मिला है, उसे मैं साँसारिक कार्य में क्यों लगाऊँ?” इस पर अनेक शिष्यों को संतोष नहीं हुआ। उन्होंने मिल-जुल कर आग्रह किया कि आप माँ! ही से कहें कि वह आपको रोग मुक्त कर दे।

इस पर रामकृष्ण परमहंस मुस्करा कर बोले- ‘‘मैं ऐसी मूर्खता क्यों करूं? माँ! तो दयामयी, सर्वज्ञ और सर्व-समर्थ है। उन्हें मेरे कल्याण के लिये जो उचित लगा, वही किया, फिर मैं उनकी व्यवस्था में छिछोरापन क्यों लाऊँ? अपना ओछापन क्यों बताऊँ?


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