काम लेने की नीति

May 1968

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एक खेत में कुछ मजदूर निराई-गुड़ाई का काम कर रहे थे। एक घण्टा काम करने के बाद वे सब बैठ कर सुस्ताने और गप हाँकने लगे। खेत के मालिक ने उनसे कहा कुछ नहीं, खुद खुरपी लेकर काम करने लगा। मजदूरों ने स्वामी को काम करते देखा तो शरमा गये और दौड़ कर काम में जुट गये।

दोपहर हुआ। स्वामी मजदूरों के पास गया और बोला- भाइयो, काम बन्द कर दो और खाना खा लो और आराम कर लो। मजदूर खाना खाने चले गये और शीघ्र ही थोड़ा आराम करने के बाद फिर काम पर आकर डट गये। शाम को छुट्टी के समय पड़ौसी खेत वाले ने देखा कि उसका काम उससे दो गुना हुआ है। वह बोला- ‘‘भाई! तुम मजदूरों को छुट्टी भी देते हो और डांटते-फटकारते भी नहीं, तब भी तुम्हारा काम मुझसे ज्यादा होता है, जबकि मैं मजदूरों को छुट्टी नहीं देता और हर समय डांटता-फटकारता रहता हूँ।”

साधु स्वामी, बोला- ‘‘भैया, काम लेने की नीति में, मैं सख्ती से अधिक स्नेह एवं सहानुभूति को पहला स्थान देता हूँ। इसीलिए मजदूर पूरा जी लगा कर काम करते हैं, इससे काम ज्यादा भी होता है और अच्छा भी।’’


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