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May 1966

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बिना चेष्टा के, बिना साधना के, स्वतन्त्रता, पेड़ के फल की भाँति नहीं टपक सकती और बिना स्वतन्त्रता के जीना वृथा है।

—देशबन्धु चित्त रंजन दास


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