उस समय महात्मा भगवानदीन की आयु लगभग आठ वर्ष की थी। वे गाँव के जिस दुकानदार से पास जाया करते थे, उसे चाचा कहा करते थे। वह पारसी था और बहुत समय से उनके गाँव में दुकान किये हुए था।
एक दिन भगवानदीन की माँ ने उन्हें चार पैसे के बादाम लेने के लिये भेजा। बालक भगवानदीन चाचा की दुकान पर पहुँचा और चार पैसे के बादाम माँगे उस समय उसकी दुकान पर बहुत भीड़ थी। चाचा ने बहुत से बादाम भगवानदीन को दे दिये।
बालक भगवानदीन ने घर आकर जब बादाम माँ को दिये तो वे बहुत नाराज होने लगीं और चार पैसे के इतने बादाम आते हैं? इतना सयाना हो गया है और जरा भी असर न आया। जा फेर कर आ!
बालक भगवानदीन ने बादाम लेकर चाचा को दिये और माँ की बात कही। चाचा ने वे बादाम लेकर एक थैले में अलग रख लिये और चार पैसे के बादाम देते हुए कहा—बेटे, तुमने मुझे चिन्ता में डाल दिया, कहीं ऐसा हुआ हो कि चार आने वाले को मैं चार पैसे बादाम दे गया होऊँ?
बालक भगवानदीन पर चाचा की इस बात का बहुत प्रभाव पड़ा और उसी दिन से वह ईमानदारी का महत्व समझ गया।