शास्त्री जी की सद्भावना

May 1966

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शास्त्री जी की सद्भावना-

घटना उस समय की है, जब श्री लालबहादुर शास्त्री अपने अनेक साथियों के साथ जेल में थे।

राजनीतिक बन्दियों से लिए धोबी का प्रबन्ध होते हुए भी शास्त्री जी अपने कपड़े स्वयं ही धोते थे और अपने भोजन में से सारी अच्छी चीजें अधिकाँश में दूसरे कै दियों को बाँट देते थे।

साथियों ने जब उनके इस विचित्र स्वभाव का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा— ‘मैं धोबी की सुविधा होने के कारण अपने जीवन का नियम तोड़ कर परावलम्बी नहीं बनना चाहता। जब मैं बाहर अपने ही हाथ से कपड़े धोता रहा हूँ, तो यहाँ ही धोबी से क्यों धुलवाऊँ?

‘और कैदियों को अच्छी चीजें इसलिये बाँट देता हूँ कि एक तो मैं अपने स्वाद-संयम को बिगाड़ना नहीं चाहता। दूसरे इन गरीबों को ऐसी चीजें नहीं मिलती। हमारे इस अच्छे व्यवहार से इन पर शुभ-संस्कार पड़ेंगे, जिससे इनका नैतिक-स्तर सुधरेगा। मैं इसे भी देश-सेवा ही समझता हूँ।’

साथी, शास्त्रीजी का उत्तर सुनकर न केवल प्रसन्न ही हुए, बल्कि उनका दृष्टिकोण समझकर उन पर श्रद्धा करने लगे।


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