प्रजानाँ रक्षणं दानमिज्याऽध्ययनमेव च। विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समावतः ॥
प्रजा की रक्षा करना, दान करना, यज्ञ करना, पढ़ना, और विषयों में न फंसना उनसे विरक्त होना यह सब कर्म संक्षेप से क्षत्रिय के लिये बतलाये हैं। यह कर्म क्षत्रिय वर्ण के करने योग्य हैं।