सन् 62 का भयंकर ग्रहयोग

February 1960

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(श्री योगेशकुमार जोशी मंड्रोला)

विक्रम सम्वत् 2018 की पौष मास की अमावस्या तद्नुसार दि. 5 फरवरी 1962 ई. को इस शताब्दी में ही नहीं अपितु हजारों वर्षों में अद्वितीय ग्रहयोग हैं।

वैसे तो 6 या 7 ग्रह एक राशि पर कुछ वर्षों के अन्तर से एकत्रित होते ही रहते हैं। इसी शताब्दी में ही 1910, 1921 और 1934 ई. 6 या 7 ग्रहों का योग था। यद्यपि ये योग भी कोई शुभ फलप्रद नहीं थे तथापि इनसे इतनी हानि नहीं हुई जितनी तृतीय विश्व युद्ध में होगी या महाभारत युद्ध में हुई थी। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से सम्वत् 2018 की ग्रह स्थिति केवल महाभारत युद्ध कालीन ग्रह स्थिति से ही समीचीन प्रतीत होती है।

वैसे तो त्रेतायुग का राम-रावण का संग्राम भी बहुत ही भीषण था। उस संग्राम की भीषणता जो इस लोकोक्ति से ही ज्ञात होती है जिसमें उपमा होने तक का कोई दूसरा युद्ध दिखाई नहीं दिया। राम रावणयोर्युद्ध रामरावणयोरिव” अर्थात् राम रावण का युद्ध तो राम रावण की तरह ही था।

परन्तु इतने भयंकर युद्ध को भी विश्व युद्ध की संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि उस युद्ध का परिणाम सार्वभौमिक न होकर कुछ साम्राज्यों तक ही सीमित था। विगत दोनों विश्व युद्धों की तुलना न तो महाभारत कालीन युद्ध से की जा सकती है और न सम्वत् 2018 की ग्रह स्थिति से ही।

ज्योतिर्विज्ञानानुसार जो विशेषतायें महाभारत और सं. 2018 के साथ संलग्न हैं वे विगत दोनों युद्धों के साथ नहीं है। साथ-साथ यह भी निर्विवाद सत्य है कि महाभारत के भीषण युद्ध की भयंकर ज्वालाओं ने अधिकाँश ,जन, धन, ज्ञान, विज्ञान और कला कौशल की कथा मात्र ही अवशेष छोड़ी थी।

उसी महाभारत युद्ध कालीन ग्रह स्थिति के उपमन अनुरूप खेट कौतुक वि सँ. 2018 में होगा। निम्न चक्र में महाभारत युद्ध और सं 2018 की ग्रह स्थिति इत्यादि का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।

महाभारत युद्ध

1. सभी ग्रह तुला राशि में स्थित थे।

2. शनि तुला राशि में उच्च थे।

3. तुलाचर राशि है।

4. मार्ग शीर्ष शुक्ला त्रयोदशी का क्षय था।

5. क्षयी त्रयोदशी से पूर्व चन्द्रवार था।

6. क्षयी त्रयोदशी से पूर्व भरणी नक्षत्र था।

7. कार्तिक में दो ग्रहण थे।

8. क्षयी अमावस्या को सूर्य ग्रहण था।

वि. सम्वत् 2018

सभी ग्रह मकर राशि में स्थित हैं।

शनि मकर में होता है।

मकर चर राशि है।

मार्ग शीर्ष शुक्ला त्रयोदशी का क्षय होगा।

क्षयी त्रयोदशी से पूर्व चन्द्रवार है।

श्रावण में दो ग्रहण हैं।

माघ अमावस्या क्षयी होगी।

क्षयी अमावस्या को सुर्य ग्रहण होगा।

5 फरवरी 1962 का सूर्य ग्रहण भारत में दृष्टि गोचर नहीं होगा। ग्रहण बेला भारत में सूर्योदय से पूर्व सार्वदेशिक भारतीय समय 3 बजकर 30 मिनट से 4 बज कर 54 मिनट तक है। यह ग्रहण पूर्वी एशिया प्रशान्त क्षेत्र और अमेरिका के पूर्वी तट पर दिखाई देगा। इससे एक वर्ष पूर्व खग्रास सूर्यग्रहण 15 फरवरी 1961 को सोवियत भूमि पर दिखाई देगा। जिसके छाया पथ में क्रिमिया, स्टालिन आड और पश्चिमी साइबेरिया है। इन योगों के साथ-2 सन् 1962 के कूट योग के साथ एक अन्य विशेषता यह भी है 1962 के पश्चात् 12 वर्षों में दो बार (सन् 1964 तथा 1973 ई.) में मास क्षय है।

5 फरवरी 1962 का ग्रहयोग अमेरिका के अधिपति मिथुन से अष्टम एवं रूस के अधिपति कुम्भ राशि से 12 वें है। सामान्यतया इस योग का प्रभाव न्यूनाधिक रूपेण सभी राष्ट्रों पर पड़ेगा। किन्तु इंग्लैण्ड, जर्मनी, सीरिया, अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, चीन, फ्राँस, इटली, रूस, भारत, हंगरी, संयुक्त राज्य, अरब और पाकिस्तान आदि देशों पर विशेष प्रभाव पड़ेगा।

इस योग का फल ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार अतीव अशुभ फलप्रद है। यथा-

यदा षठणाँ योगो भवतीह यदैकत्र भवने

तदा गोलो योगः प्रलय पद मिन्द्रोऽपि लभते।

भवेल्लो को रंकस्त्यजति खलु पुत्रञ्च जननी

नृपाणाँ हानिस्याच्चलति वसुधा शुष्यति नदी॥

अपिच-

सप्तचाष्टौ ग्रहावापि यद्येकत्र समाश्रिताः।

मन्त्रीनाशो भवेत्तत्र मित्रभेदः परस्परम्॥

इन श्लोकों का तात्पर्य यह है। गोल या कूट योग होने से मानव स्वार्थ सिद्ध के वशीभूत होकर भेद बुद्धि के द्वारा मित्रता भंग करते हैं। आये दिन असुरता के साम्राज्य का विस्तार होता है। उसके फलस्वरूप परस्पर कलह, क्लेश, रोग, शोक, भय दुःख और दरिद्र की वृद्धि होती है। कहीं तो दरिद्रता इतनी अधिक हो जाती है कि माताएं अपने पुत्रों तक का परित्याग कर देती हैं। यत्र तत्र अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प महामारी रेत, विमान दुर्घटना प्रकृति के माध्यम से अधि दैहिक, अधि भौतिक, अनुतापों का भीषण प्रकोप होता है। चतुर्दिशक अशान्ति के वातावरण का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। कई देशों के प्रधान नेताओं की मृत्यु होती है। सैनिक गठबन्धन और शस्त्रास्त्र की प्रतिद्वंद्विता में अहर्निश वृद्धि होती है। सम्भव है कि शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों के नायक अपना मानसिक सन्तुलन व्यवस्थित न रख सके और विश्व युद्ध की घोषणा कर दें।

यदि मानवता के दुर्भाग्य से विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया तो सर्वनाश सन्निकट ही दृष्टिगोचर होता है। विषाक्त यम और घातक अणु-परमाणुओं की वर्षा करके जो युद्ध लड़ा जावेगा वह अत्यन्त भयानक होगा यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आधुनिकतम शस्त्रास्त्रों से केवल भूमण्डल ही नहीं सुदूर ऊपर अंतरिक्ष में भी मारण शक्ति व्याप्त हो जावेगी। चारों ओर हाहाकार और त्राहि त्राहि की चीत्कारें होने लगेंगी। दग्ध अर्धदग्ध, विषमूर्च्छित और स्वाँसावरुद्ध जनता के करुणा क्रन्दन से दिशायें प्रतिध्वनित हो उठेंगी तथा सर्वत्र संहार व प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जावेगा। प्रलयंकारी तृतीय विश्व युद्ध में केवल विपुल जन धन की ही नहीं किन्तु विश्व की सर्वोत्तम निधि सभ्यता और संस्कृति का भी विनाश हो जायेगा।

भावी विश्व युद्ध की कल्पना या भविष्य वाणी केवल ज्योतिर्विद् ही करते हों ऐसी बात नहीं है, किन्तु न्यूनाधिक रूपेण सभी जानते हैं कि विश्वयुद्ध की विभीषिका शिर पर मंडरा रही है। विश्व के कर्णधार राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, शिक्षाशाली, आदि सभी प्रयत्न भी करते हैं कि विश्व युद्ध की भावना को ही समाप्त कर दिया जावे। विश्वयुद्ध के मूलभूत कारण मतभेद और साम्राज्य लिप्सा के त्यागने का विफल प्रयत्न सभी करते हैं आशा निराशा के पंक में निमग्न भयंकर शस्त्रास्त्रों के निर्माता संसार को तथा अपने आप को धोखा देने के लिए निशस्त्रीकरण सम्मेलन भी बारम्बार करते हैं, किन्तु उनमें से सफल एक भी एक नई होता। इसका कारण यह है कि इनकी बुद्धि को प्रेरित करने वाले ग्रह युद्ध कारक स्थिति में जा रहे हैं। ग्रह प्रेरणा देते हैं पर बाध्य नहीं करते। आप क्या चाहते हैं यह अधिकतर आप पर ही निर्भर है। ग्रहों से प्रेरित बुद्धि को सद्बुद्धि में परिवर्तित या परिवर्धित कर दे यह शक्ति केवल बुद्धि दाता सर्वशक्ति सम्पन्न गायत्री मन्त्र और गायत्री यज्ञ में ही है।


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