सहयोग भावना (kavita)

December 1960

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सहना ववतु सह नौ भुनक्तु, सहवीर्य करवा वहै।

तेजस्विना वघीत मस्तु, मा विद्विषा वहै॥ - ऋग्वेद

प्रभो हमारे मनमानस में, नित्य प्रेम रस लहरावे।

हृदय गगन में भ्रातृभाव की, विजय पताका फहरावे॥

साथ-साथ रह शक्ति बढ़ावें, संजीवन संचार करें।

शुभ तेजस्वी ज्ञान बढ़ावें, निर्मल सत्य प्रसार करें॥

पोषण, मुख, आनन्द आदि का, सब मिलकर उपभोग करें।

सब मिल रक्षा करें परस्पर, हिल-मिलकर उद्योग करें॥

करें परस्पर द्वेष नहीं हम, क्षमा पूर्ण व्यवहार करें।

तुच्छ कलह की बातें भूलें, हृदयों में विश्वास भरें॥

नाथ! करें रक्षा हिल-मिलकर, खान-पान सब संग करें।

मिलकर सब बल-वीर्य बढ़ावें, उन्नति के सब ढंग करें॥

हो तेजस्वी ज्ञान हमारा, नहीं किसी से द्वेष करें।

बढ़े सभी में प्रेम निरन्तर, उन्नत अपना देश करें॥

प्रभो आप की स्नेह प्रभा से, आलोकित हो जग सारा।

प्रेम-सुमन से सुरभित होवे, उन्नति का यह मग सारा॥

-यज्ञदत्त अक्षय

सम्पादकीय


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