योगवासिष्ठ के दिव्य सूत्र
आहार का उपयोग प्राण-धारण के लिए है, प्राण-धारण का उद्देश्य तत्व-जिज्ञासा है और तत्व जिज्ञासा की आवश्यकता इसलिए है कि संसार में फिर जन्म-मरण दुःख न भोगना पड़े।
मुक्ति प्राप्त करने के लिए भोगों का त्याग, आत्म-विचार और मन तथा इन्द्रियों का निग्रह आवश्यक है और इनकी पूर्ति अपने पुरुषार्थ के सिवाय अन्य किसी विधि से नहीं हो सकती।
दृष्टा के ऊपर दृश्य पदार्थ की सत्ता रहने का नाम बन्ध है और दृश्य पदार्थ की सत्ता जिस दशा में मिट जाए उसका नाम युक्ति है।
ब्रह्मज्ञान कौन प्राप्त कर सकता है? जिसकी भोगों की इच्छा दूर हो गई हो, जिसके मनोरथ न रहे हो और जिसकी बुद्धि व्युत्पन्न हो गई हो वह ब्रह्मज्ञान का अधिकारी है।